हड़प्पा सिन्धु घाटी सभ्यता

हड़प्पा सिन्धु घाटी सभ्यता मुख्य रूप से एक नगरीय सभ्यता थी l हड़प्पा सभ्यता नगरीय सभ्यता होने के कई कारण है l वर्तमान से लगभग 53 00 वर्ष पहले सभ्यता का अस्तित्व शुरू हुआ l पुरातत्ववेताओं में जोह्न मार्शल, आर. ई. एम. व्हीलर, दयाराम साहनी, राखालदास बनर्जी के साथ साथ आधुनिक पुरातत्ववेत्ताओं का योगदान सराहनीय है l

  • हड़प्पा सभ्यता की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्तित्व
  • सैन्धव या हड़प्पा सभ्यता का विस्तार
  • सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण नगर
  • हड़प्पा सभ्यता नगरीय सभ्यता होने के प्रमाण
  • सैन्धव सभ्यता का सामाजिक ताना बाना
  • हड़प्पा सभ्यता की आर्थिक गतिविधियाँ और मापक प्रणाली
  • महत्वपूर्ण शिल्प कलाकृतियाँ
  • प्रमुख नगर और उनके महत्त्व
  • हड़प्पा सभ्यता का पतन
  • मैप कार्य

हड़प्पा सभ्यता नगरीय सभ्यता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्तित्व

हड़प्पा सिन्धु घाटी सभ्यता
सिन्धु घाटी सभ्यता में प्राप्त मनके

एलेग्जेंडर कनिंघम

भारतीय पुरातत्व विभाग के जनक और प्रथम जनरल डायरेक्टर बने l सन 1861 में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की l हड़प्पा की सबसे पहली मोहर इनके पास पहुची l हड़प्पा के महत्त्व को समझने में भूल की l परिणामस्वरूप लोगो ने कालान्तर में अपने घर बनाने के लिए हड़प्पा के अवशेषो से ईंटों का चुराना जारी रखा l जिससे हड़प्पा की जानकारी हमेशा के लिए नष्ट हो गयी l

जॉन मार्शल

सन 1921 में जॉन मार्शल भारतीय पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर जनरल बने l इनका कार्यकाल भारतीय इतिहास के लिए सुनहरा काल था l कनिंघम के विपरीत हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खोज के लिए दयाराम साहनी और राखाल दास बनर्जी को मौका दिया l सन 1924 में दुनिया के सामने एक नयी संस्कृति का उद्भव हुआ l जॉन मार्शल में हड़प्पा सभ्यता के बारे में पूरी दुनिया को बताया गया l

आर.ई.एम. व्हीलर

आज नगरीय सभ्यता को लेकर जो जानकारी है उसमे व्हीलर का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है l व्हीलर सेना में ब्रिगेडियर थे l टीलों की खुदाई के लिए एक नए दृष्टिकोण को अपनाया l टीलों के क्षैतिज स्तर विन्यास की स्थान पर टीलें के समान्तर स्तर विन्यास की खुदाई करवाई जिससे विभिन्न कालखंड की वस्तुएँ अलग अलग रखी जा सकी l इससे पहले विभिन्न कालखंड की वास्तुओं को एक ही समूह में रख दिया जाता था जिससे पुरातत्व की सटीक जानकारी हमेशा के लिए विलुप्त हो जाती थी l

सिन्धु या हड़प्पा सभ्यता का विस्तार

हड़प्पा सभ्यता का विस्तार आज के पाकिस्तान के बलूचिस्तान, पंजाब और सिंध राज्य से लेकर भारत में जम्मू, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक था l उत्तर में जम्मू के गुमला और दक्षिण में गुजरात सूरत जिले के हलवाना में, पश्चिम में उत्तर प्रदेश के अलमगीरपुर तथा पूर्व में पाकिस्तान के सुतकागेंडोर तक फैला था l उत्तर-पश्चिम का सबसे सुदूर क्षेत्र शोर्तुघई था l

हड़प्पा सिन्धु घाटी सभ्यता
हड़प्पा से प्राप्त मेसोपोटामिया की एक मुहर

हड़प्पा सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण नगर

पुरातात्विक खोजो से निकलकर जो जानकारी सामने आयी है l उसके आधार पर हड़प्पा सभ्यता के नगरो को निम्नलिखित भागो में वर्गीकृत किया जा सकता है :

  1. महानगर – हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, राखीगढ़ी, कोटदीजी l
  2. उत्पादन नगर – चाहुँदडो, नागेश्वर, बालाकोट, लोथल और धौलावीरा l
  3. बंदरगाह नगर – सुतकागेंडोर, नागेश्वर, बालाकोट और लोथल l

और अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए पढ़ें हमारा यह आर्टिकल : ईंधन के रूप में एथेनोल

हड़प्पा या सभ्यता के नगरीय सभ्यता होने के प्रमाण

हड़प्पा सिन्धु घाटी सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग है इसकी जल निकास प्रणाली l इसके बाद भवन और सड़क नियोजन प्रणाली l आइये अब उन सभी बिन्दुओं पर प्रकाश डालते है जो हड़प्पा सभ्यता को एक नगरीय सभ्यता बनाती है l

  • नगर नियोजन व्यवस्था – नगरो को ग्रिड प्रणाली के अनुसार बसाया गया था l ऐसा प्रतीत होता है की पहली नाली और सड़कों को निर्माण किया गया l इसके बाद घरों को निर्माण किया गया था l
  • नगरों को दो भागों में निर्मित किया गया था l इनको दुर्ग और निचला नगर कहा जाता है l नगर को किलेबंद किया गया था l दुर्ग मिटटी के बने उच्चे चबूतरे पर होता था l जबकि निचला शहर भी किलेबंद होता था l
  • प्रत्येक भवन की कम से कम एक दीवार सड़क के साथ प्रत्यक्ष संपर्क में थी l सड़के एक दुसरे को समकोण पर काटती थी l
  • जल निकास प्रणाली – सिन्धु घाटी सभ्यता के लगभग सभी नगरो में जल निकास प्रणाली विकसित थी l इसके व्यापक प्रमाण मिलते है l
  • मोहनजोदड़ो में सड़क के बीचो बीच नाली का निर्माण किया गया था l नालियों का निर्माण इस प्रकार से किया गया था की सफाई के लिए इन्हें खोला जा सके l
  • मोहनजोदड़ो में नालियों के किनारे कही कही गाद मिली है जो इस ओर इशारा करती है की नालियों की सफाई नियमित रूप से की जाती थी l
  • भवन निर्माण – सिन्धु घाटी सभ्यता के नगरों में भवनों ज्यामिति आकृतियों का उपयोंग कम किया गया है l लगभग सभी भवन चकोर बनाये जाते थे l भवनों में बेलनाकार स्तम्भ देखने को नहीं मिलते है l
  • तौल और नाप में परिशुध्द्ता– हड़प्पा सभ्यता में बाँटो का उपयोग किया जाता था l बाँट चर्ट नामक पत्थर से बनते थे l जो प्रायः घनाकार होते है l बाँटो की छोटी इकाई द्विआधारी और बड़ी इकाई दशमलव प्रणाली पर आधारित थी l
  • मुहरों का उपयोग – हड़प्पा सभ्यता में सेलखड़ी नामक पत्थर से मुहरों का निर्माण किया जाता था l व्यापर में वस्तुओं को पैककर के उनके मुहाने को बान्धकर मुहर लगा देते थे l
  • विलासिता की वस्तुएँ – कार्ललिनियन और लाजवर्द जैसे कीमती पत्थरों का उपयोग आभूषण बनाने में किया जाता था l फ्यांस से रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग की जाने वाले बर्तनों को निर्माण किया जाता था l मनको का उपयोग होता था l विलासिता की वस्तुएँ प्रायः बहुत कम मात्रा में मिलती है l जिससे यह पता चलता है की ये वस्तुएँ विशेष लोगो के लिए ही बनाई जाती थी l
हड़प्पा सभ्यता
हड़प्पा सभ्यता में प्राप्त एक शावाधन

गुप्तकालीन वास्तुकला

गुप्तकालीन वास्तुकला नोट्स मुख्य रूप से UPSC के मैन्स के एग्जाम को देखते हुए बनाये गए है l

गुप्त काल का समय काल लगभग 200 से 325 ईसवी के मध्य है l  गुप्त काल राजनीतिक और आर्थिक रूप से स्थिर और समृद्ध था l इसकी समृद्धि इसके व्यापार के कारण थी l और इसका श्रेय गुप्त काल के योग्य शासकों को जाता है l इसी समय भारत के सबसे समृद्ध वास्तुकला  अपने चरमोत्कर्ष पर थी l  गुप्त काल की वास्तुकला अन्य वास्तुकला से इस मायने में अलग है की इसमें विदेशी तत्वों का प्रभाव नहीं दिखता है l  वास्तु कला का विकास जैसा गुप्त काल में हुआ है वैसा इतिहास के किसी और काल में नहीं हुआ l 

गुप्तकालीन वास्तुकला

गुप्तकालीन वास्तुकला को मुख्य रूप से राज प्रसाद या राजमहल, स्तंभ, स्तूप, बिहार, गुफाएं और मंदिर में बांटा जाता है l  गुप्तकालीन वास्तुकला पूर्ण रूप से स्थानीय कला है l   स्तंभ और स्तूप निर्माण में इसकी झलक मिलती है l  आइए प्रत्येक भाग पर एक संक्षिप्त चर्चा करते हैं:

 स्तंभ

गुप्तकालीन वास्तुकला में स्तंभों की मुख्य विशेषता इनका गोल आकार के साथ-साथ  चारों तरफ ज्यामितीय आकृतियों का उपयोग भी किया गया है l  षट्भुज अष्टभुज  इत्यादि आकृतियों का कार्य भी देखने को मिलता है

  • महरौली का लौह स्तंभ,  भिलसद स्तम्भ,  कहौम और भीतरी स्तंभ,  एरण स्तंभ  इत्यादि गुप्त काल की वास्तुकला  का नमूना है l 
  •  महरौली का लौह स्तंभ चंद्रगुप्त द्वितीय के द्वारा बनवाया गया था l 
  • इसकी खास विशेषता यह है कि इस पर कभी भी जंग नहीं लगता है और सैकड़ों वर्षो से विभिन्न प्रकार के मौसम में यह अडिग खड़ा है l 
  •  भीलसद स्तंभ का निर्माण लाल बलुआ पत्थरों के द्वारा कुमारगुप्त प्रथम के काल में हुआ था l यहां पर 4  स्तंभ अभिलेख मिलते हैं l  
  • कहौम और भीतरी स्तंभ  स्कंद गुप्त के द्वारा बनवाया गया था l 
  •  एरण स्तंभ बुध गुप्त और भानु गुप्त के द्वारा बनवाए गए थे l 

गुप्तकालीन सारनाथ का धमेख स्तूप

सारनाथ का धमेख स्तूप मौर्य काल में बनाए गए स्तूपो से अलग है l  जहां मौर्यकालीन स्तूपो का निर्माण ऊंचे चबूतरे पर किया गया है वही धमेख स्तूप का निर्माण धरातल पर किया गया है l मौर्यकालीन स्तूप का शीर्ष अर्ध गोलाकार है जबकि गुप्तकालीन धमेख स्तूप का शीर्ष दंड आकार शिखर का है l इस स्तूप का निर्माण 500 ईसवी के आसपास किया गया था l  इस स्तूप के दीवारों पर उन्नत किस्म की चित्रकारी की गई है l  

बौद्ध विहार

गुप्त काल में दो प्रसिद्ध बौद्ध विहार  सारनाथ और नालंदा प्रमुख हैं l  बिहार में बौद्ध भिक्षु निवास करते थे और ज्ञान प्राप्त करते थे l  गौरतलब है कि नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था l जहां चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी शिक्षा ग्रहण की थी l 

गुफाएँ :गुप्तकालीन वास्तुकला में चित्रकारी और मूर्तिकला

कृत्रिम गुफाओं का निर्माण मौर्य काल से ही प्रारंभ हो गया था l गुप्तकालीन वास्तुकला में  कृत्रिम गुफाओं का निर्माण मुख्य रूप से उदयगिरि और रत्नागिरी में किया गया l  अजंता की गुफा नंबर 16 और 17 गुप्त काल से संबंध रखते हैं l  इन गुफाओं में  त्रिआयामी चित्रकारी और मूर्तिकला गुप्त काल के उन्नत वास्तुकला को दर्शाती है l 

 मंदिर

गुप्तकालीन वास्तुकला में मंदिरों का निर्माण बहुत बड़े स्तर पर देखने को मिलता है l मंदिर निर्माण इस काल में अपने चरमोत्कर्ष पर था l  इन मंदिरों में गर्भ गृह का निर्माण भी किया गया l चारों तरफ परिक्रमा मार्ग भी बनाए गए l  

गुप्तकालीन मंदिर वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएँ:

  • गुप्तकाल के मंदिरों में गर्भ गृह बनाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ l इस गर्भ गृह के चारों ओर परिक्रमा मार्ग बनाया गया l 
  • प्रारंभ में इन मंदिरों के शीर्ष सपाट बनाए जाते थे l बाद में इनमें शिखर बनाए जाने लगा l 
  • देवगढ़ का दशावतार मंदिर पहला शिखर वाला मंदिर है l 
  • इन मंदिरों का निर्माण मुख्य रूप से  ईटों से किया गया है l 
  • भीतरगांव का लक्ष्मण मंदिर पूरी तरह ईटो से बना है l  
  • मंदिरों को ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है और चबूतरे के चारों दिशाओं से चिड़ियों का निर्माण किया गया है l

गुप्तकालीन  मंदिर वास्तुकला के उदाहरण:

  • देवगढ़ का दशावतार मंदिर – ललितपुर उत्तर प्रदेश
  • भूमरा का शिव मंदिर – नागौर राजस्थान 
  • तिगवा का विष्णु मंदिर – जबलपुर 
  • नाचना कुठार पार्वती मंदिर – अजयगढ़ मध्य प्रदेश
  • खोह का शिव मंदिर – नागौद मध्य प्रदेश
  • सिरपुर लक्ष्मण मंदिर – छत्तीसगढ़
  • भीतरगांव लक्ष्मण मंदिर –  कानपुर

Basic Polity Notes For UPSC

हड़प्पा सभ्यता: ईंटें मनके और अस्थियाँ:

हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता: ईंटें, मनके और अस्थियाँ l हड़प्पा सभ्यता की खोज सर्वप्रथम दयाराम साहनी ने की थी l अध्याय में सिन्धु घाटी सभ्यता के बारे में विस्तार से चर्चा की गयी है l नोट्स समझने के लिए कृपया पूरा पेज ध्यान से पढ़े और समझे

हड़प्पा सभ्यता क्या है?

हड़प्पा सभ्यता प्राचीन भारत की पहली सभ्यता है जिसमें नगरीकरण के अवशेष मिलते हैं l  इसका समय काल  वर्तमान से 4620 वर्ष से लेकर 3920 वर्ष तक निर्धारित किया गया है l  यह एक ऐसी सभ्यता है जो पूर्ण रूप से नियोजित थी l  हड़प्पा सभ्यता को कई चरणों में बांटा गया है l ऐसा देखा गया है कि यह सभ्यता अस्तित्व में आने से पहले क्षेत्र में कई बस्तियां अस्तित्व में थी l  हड़प्पा सभ्यता के पश्चात भी क्षेत्र में  बस्तियों का बसना प्रारंभ रहा है l  हालांकि नवीनतम खोजों से पता चलता है राखीगढ़ी जैसे हड़प्पाई नगरों की खुदाई में कुछ रोचक तथ्य निकल कर सामने आये है l इसके अनुसार यह सभ्यता आज से 8000 से 9000 वर्ष पहले अस्तित्व में थी l 

हड़प्पा सभ्यता के इतिहास के साक्ष्य

 हड़प्पा सभ्यता की जानकारी मुख्य रूप से भौतिक साक्ष्यों पर आधारित है l प्राचीन वस्तुओं को पूरा वस्तुएँ कहा जाता है l

सिन्धु घाटी सभ्यता
सिन्धु घाटी सभ्यता

हड़प्पा सभ्यता इतिहास के बारे में हमें मुख्य रूप से जानकारी निम्नलिखित पुरा-वस्तुओं से मिलती है:

  • ईंटें
  • मनके
  • अस्थियाँ
  • आवास 
  • मृदभांड
  • मृणमूर्तियाँ  और खिलौने 
  • आभूषण 
  • औजार 
  • मुहरे
  • वनस्पति 
  • शावाधन 
  • अनाज के दाने 
  • जंतुओं के अवशेष 

हड़प्पा सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता के इस अध्याय को अच्छी तरह से समझने के लिए यह बहुत जरूरी है कि इस अध्याय में आए सभी प्रकार के कठिन शब्दों को हम अच्छी तरह से समझ ले l 

 तो आइए ऐस ही कुछ शब्दों के बारे में चर्चा करते हैं और उनको समझने की कोशिश करते हैं :

सिन्धु घाटी सभ्यता अध्याय से जुड़े कुछ प्रमुख शब्द

पुरातत्व विज्ञान 

विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत पुरा वस्तुओं या प्राचीन वस्तुओं के विश्लेषण के आधार पर इतिहास का पुनर्निर्माण किया जाता है उसे पुरातत्व विज्ञान कहते हैं l 

पुरातत्व विद 

विद्वान जो पुरा वस्तु की खोज और पुरा वस्तु का अध्ययन करके इतिहास का पुन: निर्माण करते हैं उन्हें पुरातत्व विद कहते हैंl 

पुरा वस्तुएँ

वे वस्तुएँ  जो प्राचीन सभ्यताओं के खोज के दौरान खुदाई में प्राप्त होती हैं उन्हें पूरा वस्तुएँ कहा जाता है 

संस्कृति

संस्कृति शब्द का प्रयोग पूरा वस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं l सामान्य रूप से एक साथ एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा कालखंड से संबंधित होते हैं l 

पूरा वनस्पतिज्ञ

वैज्ञानिक जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं l उन्हें पूरा वनस्पतिज्ञ  कहते हैं l ये प्राचीन वनस्पति के विभिन्न पेड़ पौधों की खोज करते है l 

पूरा प्राणी विज्ञानियों अथवा जीव पुरातत्व विद

वे पुरातत्व विद जो प्राचीन जीव जंतुओं की प्रजाति का अध्ययन करते हैं और अन्वेषण के द्वारा उनका पता लगाते हैं l उनको जीव पुरातत्वविद् जीव प्राणीवज्ञानी कहते हैं l 

सभ्यता का काल निर्धारण

एनसीईआरटी पुस्तक के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का समय काल 2600 ईसा पूर्व से 1920 अपूर्व बताया गया है l  वर्तमान समय के अनुसार बात करें तो आज से लगभग 4600 वर्ष से लेकर 3900 वर्ष तक यह सभ्यता अस्तित्व में थी l 

नवीनतम खोजो और अन्वेषण से यह पता चला है कि भारतीय क्षेत्र में पाई जाने वाली राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता में सबसे प्राचीन नगर है l  वैज्ञानिकों ने पता लगाया है राखीगढ़ी के किसानों का डीएनए किसी से भी नहीं करता है l  पुरातत्व विधु के अनुसार राखीगढ़ी का समय काल आज से लगभग 8500 वर्ष पहले का है  अर्थात 6500 ईसा पूर्व का समय निर्धारित किया गया है l 

अन्वेषण इस बात की ओर इशारा करती है की  एशिया में आर्यन नहीं आए थे बल्कि यही के लोग मध्य एशिया में फैले थे l 

हड़प्पा सभ्यता का वर्णन

  • आरंभिक हड़प्पा सभ्यता : हड़प्पा सभ्यता क्षेत्र में ऐसा देखने में आया है कि विकसित हड़प्पा सभ्यता से पहले भी क्षेत्र में कई प्रकार की बस्तियां अस्तित्व में थी l  इन बस्तियों को आरंभिक हड़प्पा सभ्यता कहा गया है
  •  विकसित हड़प्पा सभ्यता: विकसित हड़प्पा सभ्यता हड़प्पा सभ्यता है जिसमें इस सभ्यता का विकास अपने चरम पर था l जिसमें नियोजन मुख्य विशेषता थी l  मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता हड़प्पा नगर पूर्ण रूप से नियोजित थे l  जो वास्तुकला और शहरीकरण का विकसित रूप था l 
  • पूर्ववर्ती हड़प्पा सभ्यता: सिंधु घाटी और उसके आसपास के क्षेत्रों में विकसित हड़प्पा सभ्यता के पश्चात भी बसी थी इन बस्तियों को पूर्वर्ती हड़प्पा सभ्यता कहा गया है l
सिन्धु घाटी सभ्यता
सिन्धु घाटी सभ्यता

हड़प्पा सभ्यता की आर्थिक व्यवस्था

हड़प्पा सभ्यता की  अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि और पशुपालन पर आधारित थी l इसके अलावा आसपास और सुदूर क्षेत्रों से व्यापार भी किया जाता था l 

कृषि और पशुपालन

  • पुरा वनस्पतिज्ञो के अनुसार हड़प्पा स्थलों से अनाज के दानों में गेहूं, दाल, सफेद चना तथा तील के अवशेष प्राप्त हुए हैं l
  • इसके साथ ही यहां पर बाजरे और चावल के दाने के अवशेष भी प्राप्त हुए हैंl  जिससे यह पता चलता है कि इन फसलों की खेती बड़े स्तर पर की जाती थी l 
  • चावल और बाजरे की खेती गुजरात में होती थी l 
  • पशुपालन में मुख्य रूप से भेड़ बकरी तथा सूअर और मवेशियों का स्थान महत्वपूर्ण था l
सिन्धु घाटी सभ्यता
सिन्धु घाटी सभ्यता
  • पालतू पशु भोजन के साथ साथ दूध और पोषक तत्वों के अच्छे स्रोत थे l 
  • हड़प्पा सभ्यता में कुछ जंगली जानवरों के अवशेष भी प्राप्त होते हैं l
  • जैसे: वराह, हिरण तथा घड़ियाल l 
  • सिंचाई के लिए सम्भवतः नहरों, कुओं और जलाशयों का उपयोग किया जाता था l
धौलावीरा के जलाशय
धौलावीरा के जलाशय

कृषि प्राद्यौगिकी

  • कृषि के तरीकों के बारे में कुछ खास पता नहीं चलता है और ना ही ऐसा कोई सबूत मिलता है जिससे यह पता चल सके कि किस प्रकार से कृषि की जाती थी l 
  • फिर भी मुहरों पर प्राप्त चित्रों से यह ज्ञात होता है की खेती के लिए बैलों का इस्तेमाल किया जाता था l हरियाणा के बनावली और राजस्थान के कालीबंगन नामक स्थान से जूते हुए खेतों के अवशेष प्राप्त हुए हैं l 
  • फसलों की कटाई के लिए लकड़ी के हत्थे वाले औजारों का उपयोग किया जाता था l  कुछ धातुओं के औजारों का प्रयोग देखने को मिलता है l  जिसमें मुख्य रुप से ताबा महत्वपूर्ण हैं l 
हड़प्पा सभ्यता में उपयोग होने वाले औजार
हड़प्पा सभ्यता में उपयोग होने वाले औजार

सुदूर क्षेत्रों से व्यापार (अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान )

  • पुरातात्विक साक्ष्यों और अन्य स्रोतों से यह सिद्ध होता है कि हड़प्पा सभ्यता का व्यापार सुदूर क्षेत्रों से था l  
  • इसमें मुख्य रूप से ताँबा, कार्नेलियन, लाजवर्द मणि, सोना तथा अन्य प्रकार की लकड़ियों का व्यापार होता था l
  • ऐसा संभव है कि ओमान, बहरीन और मेसोपोटामिया से संपर्क सामुद्रिक मार्गों से था l 
  • ओमान में हड़प्पाई मर्तबान प्राप्त हुआ है l
बहरीन में मिली मुहर
बहरीन में मिली मुहर
  • मेसोपोटामिया की मुहरों से हड़प्पाई वृषभ और नाव के चित्र मिलते है l मेसोपोटामियाई हड़प्पा वासियों को सम्भवतः मेलुहा वासी कहते थे l
  • संभवत मेलूहा शब्द हड़प्पा लोगों के लिए प्रयुक्त होता था l
सिन्नाधु घाटी सभ्वयता
नाव के चित्र वाली मुहर
हड़प्पा सभ्यता में व्यापार
हड़प्पा सभ्यता में व्यापार

सिन्धु घाटी सभ्यता में सामाजिक विभिन्नता

सिन्धु घाटी सभ्यता
शावाधान हड़प्पा सभ्यता में मिली कब्र
  • सिंधु घाटी सभ्यता में सामाजिक विविधता का पता कई प्रकार से चलता है l
  • ऐसे कई साक्ष्य मिलते हैं जिससे सिद्ध होता है कि समाज विभिनता थे l 
  •  पुरातत्व विद हड़प्पा सभ्यता में सामाजिक विविधता का पता लगाने के लिए शावाधन का उपयोग करते है l 
  • हड़प्पा सभ्यता से मिले शावाधानो में आमतौर पर मृतकों को गड्ढों में दफनाया गया है l 
  • कभी-कभी शावाधन गर्तों की बनावट एक दूसरे से भिन्न होती थी l 
  • कुछ कब्रों में मृदभांड तथा आभूषण मिले हैं जो संभवत एक ऐसी मान्यता की ओर संकेत करते हैं
  • जिसके अनुसार इन वस्तुओं का मृत्यु प्राप्त उपयोग किया जा सकता था l 
  • पुरुषों और महिलाओं दोनों के शवाधानों के पास से आभूषण प्राप्त हुए हैं l
  • जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनों ही आभूषणों का उपयोग करते थे l 
  • कहीं-कहीं पर मृतकों को ताबे के दर्पण के साथ दफनाया गया है l 

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सिन्धु घाटी सभ्यता
कब्र से प्राप्त तांबे का दर्पण
  • सामाजिक विभिनता को पहचानने की एक और विधि है ऐसी पुरा वस्तुओं की खोज जिन्हें पुरातत्व विद मोटे तौर पर उपयोगी तथा विलास की वस्तुओं में वर्णित करते हैं l  
  • इनमें चकिया, मृदभांड, सुईया और झावाँ इत्यादि रोजमर्रा की वस्तुएं हैं और आसानी से प्रत्येक बस्ती में उपलब्ध हैं l 
  • वहीं पर कुछ ऐसी वस्तुएँ है जो दुर्लभ और महंगी थी और जिनका पाया जाना मुश्किल माना जाता था l 
  • फ्यांस से बनी वस्तुएं मुख्य रूप से बड़े नगरों जैसे मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में पाई गई हैं l
  • जो इस ओर इशारा करती हैं कि यह महंगी और दुर्लभ हुआ करती थी l 
फ्यांस का बना पात्र
फ्यांस का बना पात्र

राजनैतिक व्यवस्था

  • हड़प्पा सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है l 
  • हड़प्पा सभ्यता में पाई जाने वाली वस्तुओं जैसे मृदभांडों, बाँटों, फलको और ईंटों के उत्पादन में समानता मिलती है l 

  • कश्मीर से लेकर गुजरात तक सभी वस्तुओं का एक सामान होना एक ही शासक की और इशारा करता है l
  • और राज्य की और इशारा करती है परन्तु इसके कोई ठोस साबुत प्राप्त नहीं हुए है l 
  • कुछ पुरातत्व विद इसपर एकमत हैं कि हड़प्पा समाज में शासक नहीं थे
  • सभी की सामाजिक स्थिति समान थी l 
  • दूसरी पुरातत्व यह मानते हैं कि यहां कोई एक नहीं बल्कि कई शासक थे l
  • जैसे मोहनजोदड़ो हड़प्पा राखीगढ़ी इत्यादि के अपने अलग-अलग राजा होते थे l 

  • कुछ यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था जैसा कि पूरा वस्तुओं में समानता से पता चलता है
  • नियोजित बस्तियों के साथियों के आकार में निश्चित अनुपात तथा उनके स्रोतों के समीप स्थापित होने से स्पष्ट है l
  • मोहनजोदड़ों से एक मूर्ति मिली है जिसे पुरोहित राजा की संज्ञा दी गयी है l
  • जिसे पुरातत्वविदो ने प्रसाद या शासक कहा है l
  • परन्तु कोई कीमती वस्तु प्राप्त नहीं होती है l
सिन्धु घाटी सभ्यता
पुरोहित राजा

हड़प्पा सभ्यता में मुहरे,बाँट और लिपि

बाँट

  • हड़प्पा सभ्यता में मुहर और मुद्रांकन का उपयोग लंबी दूरी के संपर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था l गीली मिट्टी का उपयोग कर मुहर लगायी जाती थी l 
  • मुहर मुहर इस बात का साबुत थी की माल के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है और मुहर से मालिक की पहचान का भी पता चलता था l 
फलक और बाँट
हड़प्पा सभ्यता में उपयोग होने वाले बाँट और फलक

लिपि

  • हड़प्पा लिपि को अब तक पढ़ा नहीं जा सका है और यह आज भी एक रहस्य बनी हुई है l 
  • इस लिपि में 375 से लेकर 400 अक्षर मिलते हैं
  • जो यह दर्शाते हैं कि साक्षरता बहुत बड़े स्तर पर उपलब्ध नहीं थी l  
  • हड़प्पा लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मोहरों पर दाएं और चौड़ा अंतराल है l 
  • बाएं और यह संकुचित है l 
  • यह लिपि मुहरे,तांबे के औजार, मर्तबान तथा मिट्टी की लघु पट्टिकाएँ, आभूषण पर मिलती है l
  • एक प्राचीन सूचना पट पर भी मिलती हैं जिसे अभी तक पढ़ा नही जा सका है l  

बाँट

  • हड़प्पा सभ्यता में विनिमय के लिए बांटो की एक शुद्ध प्रणाली का उपयोग किया जाता था l  
  • सामान्यता ये चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे और आमतौर पर किसी भी तरह के निशान से रहित घनाकार होते थे l 
  • इन बातों के निचले मापदंड द्विधारी अर्थात 1, 2, 4, 8, 16, 32 से लेकर 12800 तक थे l 
  • जबकि ऊपरी मापदंड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे l 
  • हड़प्पा सभ्यता से धातु से बने तराजू के पल्ले भी प्राप्त हुए हैं l 

सिन्धु घाटी सभ्यता में शिल्प उत्पादन

  • सिंधु घाटी सभ्यता में शिल्प उत्पादन केंद्र मुख्य रूप से कच्चे माल के स्रोत के समीप स्थित है l
  • उत्पादन केंद्र बड़े नगरों जैसे मोहनजोदड़ो हड़प्पा इत्यादि से बहुत दूर थे l 
  • चहुँदड़ो, नागेश्वर, बालाकोट, लोथल और धौलावीरा इत्यादि से छेद करने वाले यंत्र मिले है l
  • जिससे यह सिद्ध होता है की ये स्थान शिल्प उत्पादन में संलग्न थे l 
  •  उत्पादन कार्य में मुख्य रूप से मनके बनाना, शंख की कटाई, धातु कर्म, मुहर निर्माण और बांट बनाना शामिल था l 
  • मनको की निर्माण में बहुत विविधता मिलती है l 
  • कार्नेलियन, जैस्पर, स्फटिक, क्वार्टज़ तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर,का उपयोग मनके बनाने में किया जाता था
  • ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुओं शंख और पक्की मिट्टी सभी प्रकार के पदार्थों का उपयोग मनके बनाने में किया जाता था l 
  • मनको को रेखाचित्र और चित्रकारी से सजाया जाता था l
  • सेलखड़ी मुलायम पत्थर था l इसको पीसकर विभिन्न प्रकार की आकृतियों के मनको का निर्माण किया जाता था l
सिन्धु घाटी सभ्यता
हड़प्पा सभ्यता के शिल्प उत्पादन केंद्र

मोहनजोदड़ो – सिन्धु घाटी सभ्यता का प्रमुख नगर: एक केस स्टडी

मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहर था l  आज के शहरों की तरह मोहनजोदड़ो भी  विकसित और अलंकृत था l  वास्तुकला के लिहाज से यह नगर काफी महत्व रखता है l  यहां पर आधुनिक आधारभूत सुविधाएं जैसे शौचालय, रसोई, बेडरूम, बाथरूम शौचालय,स्विमिंग पूल इत्यादि भवन की मुख्य विशेषता थी l l 

मोहनजोदड़ो नगर दो हिस्सों में बना हुआ था l एक ऊंचा परंतु छोटा वही दूसरा नीचा परंतु काफी बड़ा क्षेत्र बसा हुआ था l  इमारतों को मुख्य रूप से चबूतरो के ऊपर बनाया गया था l  चबूतरो का निर्माण करने में कम से कम 40 लाख श्रम दिवस लगा होगा l पुरातत्वविदो के अनुसार ऊँचाई पर बसे स्थान को दुर्ग और नीचे वाले हिस्से को निचला शहर कहा गया है l दुर्ग को चारो तरफ से दीवारों से घेरा गया था l  

गृह स्थापत्य कला

मोहनजोदड़ो के भवन मुख्य रूप से पक्की ईंटो के बने थे l मोहनजोदड़ो में आवासीय भवन निचले शहर में मिलते हैं l  आवासीय भवनों के बीच में एक आंगन होता था l  आंगन की चारों तरफ कमरे होते थे l  कमरो को इस प्रकार से बनाया गया था कि सभी के द्वार आंगन में खुलते थे l  भूमि तल पर बने कमरों में सड़क के साथ लगने वाली दीवार पर एक भी खिड़की नहीं थी l  जिससे यह पता चलता है कि हड़प्पा वासी एकांतवास को पसंद करते थे l 

मोहनजोदड़ो का एक घर
मोहनजोदड़ो का एक घर

कुछ भवनों में ऊपरी मंजिल पर जाने के लिए सीढियाँ प्राप्त हुई हैं l  प्रत्येक घर में स्नानघर मिलता है l  आंगन में भोजन बनाने और कटाई करते जैसे काम हुआ करते थे l  जल के स्रोत के रूप में घरों में कुएँ मिलते हैं l  पुरातत्व विदो ने इनको की संख्या लगभग 700 बताई है l  जो इस ओर इशारा करता है कि नगर विकसित और बड़ा था l 

दुर्ग की विशेषताएँ

  • दुर्ग निचले शहर से ऊपर एक चबूतरे पर बसा हुआ क्षेत्र है l  इस पर कई  बड़ी इमारतें मिलती हैं l 
  • जिस पर माल गोदाम, विशाल स्नानागार, महाविद्यालय और एक स्तूप बना था l  स्नानागार  को चारों तरफ से जिप्सम की सहायता से जलवत किया गया था l
  • इसमें उत्तर और दक्षिण की ओर से सीढियाँ है l 
  • स्नानागार के तीन तरफ कमरे बने हुए हैं जिसमें एक कुआँ भी है l
  • सम्भवतः  इसका प्रयोग स्नानागार में जल भरने के लिए किया जाता होगा l 
  • स्नानागार से निकलने वाला जल बगल के नाले में गिरता था l
  • ुरातत्व विधियों का ऐसा मानना है कि यह स्थान किसी अनुष्ठान कार्य के लिए उपयोग में लाई जाती थी l 
  •  दुर्ग पर एक टीला भी मिलता है l 
  • जहां पर कई मृत शरीर पाए गए थे l 
  • यहां पर एक स्तूप बना हुआ है l 
  • दुर्ग की जांच पड़ताल से यह पता चलता है कि इसका निर्माण खासतौर से अनुष्ठान इस कार्य के लिए ही किया गया था l 

नालो और सड़को का निर्माण

मोहनजोदड़ो की सबसे बेजोड़ खासियत है उसकी जल निकासी प्रणाली l  नालों का निर्माण किसके द्वारा किया गया है l  सड़क के साथ-साथ नालों का निर्माण किया गया है l  थोड़ी थोड़ी दूर पर इसमें गाज और कचरे को निकालने के लिए खुली जगह भी छोड़ी गई है l सड़के और गलियाँ एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं l  सड़के खुली और चौड़ी हैं l प्रत्येक भवन की कम से कम एक दीवार सड़क के साथ लगती थी l

मोहनजोदड़ो की पक्की नाली
मोहनजोदड़ो की पक्की नाली

सिन्धु घाटी: एक प्राचीन सभ्यता का अंत

हड़प्पा सभ्यता के अंत का प्रमुख कारण कोई जनसंहार या आक्रमण नहीं बताया गया है l 

साक्ष्यों से साबित होता है कि यहां पर कोई युद्ध या आक्रमण नहीं हुआ l 

सभ्यता के अंत का मुख्य कारण संभवत: जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, अत्यधिक बाढ़, नदियों का सूख जाना या मार्ग बदल लेना, भूमि का अत्यधिक उपयोग आदि सब हो सकते हैं l 

फिर भी यह कारण कुछ बस्तियों के लिए तो सही साबित हो सकते हैं लेकिन पूरी सभ्यता के लिए ये सही हो ऐसा प्रतीत नहीं होता है l 

एलेक्जेंडर कनिंघम

  • अलेक्जेंडर कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रथम जनरल गवर्नर थे l कनिंघम 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल बने l
  • ब्रिटिश इंडिया में ब्रिटिश सरकार में  सैन्य अधिकारी थे l  
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल कनिंघम ने 19वीं शताब्दी के मध्य में पुरातात्विक उत्खनन आरंभ किए l  
  • कनिंघम ने अपने सर्वेक्षण के दौरान मिले अभिलेखों का संग्रहण पर लेखन तथा अनुवाद भी किया l  
  • हड़प्पा वस्तुएं 19वीं शताब्दी में कभी कभी मिलती थी और कनिंघम तक पहुंची भी l 
  • एक अंग्रेज ने कनिंघम को हड़प्पा में पाई गयी एक मुहर दी l 
  • उन्होंने मुहर पर ध्यान तो दिया पर उन्होंने उसे एक ऐसे कालखंड में बिना अंकित करने का असफल प्रयास किया जिससे परिचित थे l 

जॉन मार्शल : हड़प्पा सभ्यता को विश्व के समक्ष रखने वाले ब्रिटिश अधिकारी

  • 1924 में जॉन मार्शल भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल बने l  
  • उन्होंने पूरे विश्व के समक्ष सिंधु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की l  
  • भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल के रूप में जॉन मार्शल का कार्यकाल वास्तव में भारतीय पुरातत्व में एक व्यापक परिवर्तन का काल था 
  • यह भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्व विद थे l
  • वे यहां यूनानी तथा क्रीट में अपने कार्यों का अनुभव लेकर आये थे l  
  • हालांकि अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि कनिंघम की तरह ही उन्हें भी आकर्षक खोजो में दिलचस्पी थी l 
  • पर उनमें दैनिक जीवन की पद्धति को जानने की भी उत्सुकता थी l 

आर. ई. एम. व्हीलर: सिन्धु घाटी सभ्यता के अन्वेषण में योगदान

  • आर. ई. एम. व्हीलर का पूरा नाम रॉबर्ट एरिक मॉर्टिमर व्हीलर था l यह एक ब्रिटिश पुरातत्ववेत्ता और अधिकारी थे l 
  • व्हीलर को 1944 में (आरकेलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का डायरेक्टर जनरल बनाया गया l 
  • अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारत में कई जगह उत्खनन कार्य करवाया जैसे ब्रह्मगिरि, अरिकामेडू और हड़प्पा l  
  • व्हीलर की हड़प्पा सभ्यता में विशेष रूचि थी l उन्होंने मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के उत्खनन में विशेष रूचि ली l 
  • व्हीलर ने पहचाना कि एक समान क्षैतिज इकाइयों के आधार पर खुदाई की बजाय टीले के स्तर विन्यास का अनुसरण करना अधिक आवश्यक है l 
  • साथ ही सेना के पूर्व ब्रिगेडियर के रूप में उन्होंने पुरातत्व के पद्धति में एक सैनिक परिशुद्धता का समावेश भी किया l 

संविधान का निर्माण कक्षा 12 इतिहास नोट्स making of constitution class 12 history notes in hindi


संविधान का निर्माण 




कक्षा 12 इतिहास नोट्स  


Making of constitution 


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संविधान सभा का गठन 

  1. संविधान सभा का गठन सन 1946 में किया गया l संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन के आधार पर किया गया था l 
  2. संविधान सभा में कुल मिलाकर 389 सदस्य थे जिनका चुनाव सांप्रदायिक आधार पर किया गया था l
  3. प्रत्येक सदस्य का चुनाव लगभग 10 लाख आबादी की संख्या पर किया गया था l 
  4. 9 दिसम्बर 1946 को दिल्ली के काउन्सिल चैंबर के पुस्तकालय में पहली बार संविधान सभा की बैठक हुई l मुस्लिम लीग ने बैठक का बहिष्कार करते हुए पाकिस्तान के लिए बिलकुल अलग संविधान सभा की मांग की l 
  5. 11 दिसंबर 1946 को डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष चुना गया l 
  6. डॉक्टर सच्चितानंद सबसे बुजुर्ग संविधान सभा सदस्य थे जो संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष थे l 
  7. 13 दिसम्बर 1946 को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान की उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया और संविधान निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गयी l 
  8. 29 अगस्त 1947 में डा. भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति का गठन किया गया l प्रारूप समिति में कुल मिलाकर 7 सदस्य थे l 
  9. प्रारूप समिति में कुल मिलाकर 7 सदस्य थे जो निम्नलिखित है :  
1 डा. भीमराव आंबेडकर
2 एन गोपालस्वामी आयंगर
3 अल्लादी कृष्णास्वामी आयर
4 कन्हैयालाल मानिकलाल मुंशी
5 सैयद मोहम्मद सादुल्ला
6 एन माधव राव
7 डी पी खेतान की मृत्यु के पश्चात टी टी कृष्णामचारी
 

10. 31 अक्टूबर 1947 को संविधान सभा का दुबारा से गठन किया गया और अब संविधान सभा में कुल मिलाकर 299 सदस्य थे जिसमे ब्रिटिश इंडिया के  और देशी रियासतों के 70 सदस्य थे l 

अधिकारों का निर्धारण 

  1. संविधान सभा के सामने गरीबों, वंचितों और दमितो पर अधिकारों के निर्धारण को लेकर बहुत उठा पटक चल रही थी l 
  2. अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों के निर्धारण को लेकर भी संविधान सभा में काफी बहस और गहन विचार चर्चा हुई l 
  3. अल्पसंख्यक समुदाय के पक्ष में बी. पोकर बहादुर ने पृथक निर्वाचक मंडल की मांग की l
  4. सरदार बल्लभभाई पटेल और गोविंद बल्लभ पन्त ने इसे देश की शांति और भाई चारे के लिए खतरा माना l इसलिए पृथक निर्वाचक व्यवस्था को नही अपनाया गया l 
  5. हर समुदाय ने अपने लिए कुछ विशेश अधिकारों के मांग की जैसे किसानों के नेता एन.जी.रंगा ने अल्पसंख्यक की परिभाषा आर्थिक आधार पर की l उन्होंने गरीब और दबे कुचले लोगो को अल्पसंख्यक के रूप में परिभाषित करने को कहा l 
  6. जयपाल सिंह जैसे आदिवासी नेता ने आदिवासियों के हित की बात उठाई l उन्होंने संविधान सभा को आदिवासियों पर शदियों होने वाले भेदभाव और छुआछुत की और ध्यान आकर्षित कराया l 
  7. सबसे ज्यादा विचार विमर्श दलितों और हरिजनों के अधिकारों की हुई जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का 20-25 प्रतिशत थी l परन्तु फिर भी समाज ने इन दमितो को हासिये पर रखा l 
  8. सवर्ण बहुमत वाली संविधान सभा में कई नेताओं ने हजारों वर्षो से दबाई जाने वाले दमितो और आदिवासियों पर बहुत अच्छा भाषण देते हुए उन्हें समाज में बराबरी और सम्मान देने की मांग की l  

संविधान सभा में भाषण देने वाले कुछ प्रमुख नेता 

पंडित जवाहरलाल नेहरू :

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में संविधान निर्माण के उद्देश्य रखे जिसे उद्देश्य प्रस्ताव के नाम से जाना गया l उद्देश्य प्रस्ताव से यह पता चलना था की भारतीय संविधान कैसा होगा l उन्होंने संविधान में “जनता के इच्छा” और जनता के दिलों में समायी आकांक्षाओं और भावनाओं” आदि का भाव प्रस्तुत किया l

बी पोकर बहादुर 

27 अगस्त 1947 को मद्रास के बी पोकर बहादुर ने पृथक निर्वाचिका को बनाये रखने पर बहुत ही प्रभावशाली भाषण दिया था l उन्होंने अल्पसंख्यको के अधिकारों और उनके प्रतिनिधित्व को सुरक्षित करने के लिए पृथक निर्वाचिका की मांग की l उनके अनुसार मुसलमानों को ऐसे अधिकार मिले जिससे वे औरो के साथ सद्भाव अरु सौहार्द भरा जीवन जी सके l इसके लिए पृथक निर्वाचिका के आलावा और कोई प्रतिनिधित्व हो ही नहीं सकता है l

आर. वी. धुलेकर 

आर. वी. धुलेकर ने अल्पसंख्यकों खासतौर से मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिका का विरोध किया l उनके अनुसार ” अंग्रेजों ने संरक्षण के नाम पर चाल चली l इसकी आड़ में उन्होंने अल्पसंख्यकों को फुसला लिया है l अब इस आदत को छोड़ दो ” अब तुम्हे बहकाने वाला कोई नहीं है l

सरदार पटेल 

सरदार पटेल ने भी पृथक निर्वाचिका का विरोध किया उनके अनुसार “पृथक निर्वाचिका का एक ऐसा विष है जो हमारे देश की पूरी राजनीती में समा चूका है l “
पटेल ने कहा ” क्या तुम इस देश में शांति चाहते हो ? अगर चाहते हो तो इसे (पृथक निर्वाचिका) को फ़ौरन छोड़ दो l”

गोविन्द बल्लभपन्त 

उन्होंने ऐलान किया की पृथक निर्वाचिका देश के लिए तो खतरा है ही साथ साथ यह अल्पसंख्यको के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है l उनके अनुसार एक मुक्त देश में प्रत्येक नागरिक के साथ ऐसा आचरण किया जाना चाहिए जिससे “न केवल उसकी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो बल्कि उसमे स्वाभिमान का अध्यात्मिक भाव भी पैदा हो” तथा बहुल समुदाय का यह दायित्व है की वह अल्पसंख्यकों की समस्याओं को समझे l



पन्त ने कहा की हमारे अन्दर यह आत्मघाती और अपमान जनक भावना बनी हुई है की हम कभी नागरिक के रूप में नहीं सोचते बल्कि समुदाय के रूप में ही सोचते है l हमारा सामाजिक पिरामिड का आधार भी और उसकी चोटी भी नागरिक ही होता है l 

विभाजन को समझना कक्षा 12 इतिहास class 12 history vibhajan ko samajhana


विभाजन को समझना कक्षा 12 इतिहास 

भारत का बँटवारा 

  • भारत का बँटवारा सन 1947 में भारत और पाकिस्तान नाम के दो राष्ट्रों के साथ हुआ 
  • यह बँटवारा लार्ड माउन्टबेटन की योजना के अनुसार हुआ था l 
  • भारत में मुस्लिम बहुल इलाको को मिलाकर एक नए राष्ट्र पाकिस्तान को बनाया गया था l यह पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा हुआ था l 
  • पश्चिमी पाकिस्तान जो की पंजाब और पूर्वी पाकिस्तान जो की बंगाल को विभाजित करके बनाया गया था l दोनों ही क्षेत्र मुस्लिम बहुल इलाके थे l 

बंटवारे की पृष्ठभूमि 

  • ब्रिटिश लोगो की हमेशा से ” फूट डालो और राज करों ” की नीति रही है l स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजो ने अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए हिन्दू और मुस्लिम के रूप में लोगो को आपस में लड़ाया और फिर एक दुसरे के हिमायती बनकर दोनों को एक दुसरे के प्रति भड़काते रहे l 
  • यह योजना धीरे धीरे कम करने लगी और मुसलमानों को यह लगने लगा की हिन्दू बहुसंख्यक देश में वे सुरक्षित नहीं है l इसका भाव तब और प्रखर हो गया जब मुस्लिम लीग ने अलग राष्ट्र की मांग की l 
  • मुसलमानों ने कांग्रेस पर यह आरोप लगाया की वह मुस्लिम विरोधी है और उसके हिन्दू सदस्यों को हिन्दू महासभा में भाग लेने का अधिकार है जबकि मुस्लिम सदस्यों को ऐसा अधिकार प्राप्त नहीं है l 
  • वही हिन्दुओं में यह भावना घर करने लगी की भारतीय सरकार और नेता मुसलमानों को विशेष अधिकार देने लगी है और हिन्दुओं के साथ पक्षपात करने लगी है l 
  • मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल से इस भावना को और बल मिला l हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच विश्वास की खाई गहरी होती चली गयी l 
  • दोनों समुदायों के बीच अविश्वाश की भावना जन्म लेने लगी l मुस्लिम लीग ने सन 1940 में अपने लिए अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग की l 
  • पाकिस्तान की मांग धीरे धीरे जोर पकड़ने लगी और जब यह मांग न मानी गयी तो मुस्लिम लीग ने बंगाल में सीधी कार्यवाही के जरिये पाकिस्तान राष्ट्र बनाने के घोषण की l
  • 16 अगस्त 1946 के दिन मुस्लिम लीग ने कलकत्ता में प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मानाने की घोषणा की और उसी दिन दंगे शुरू हो गये और जो कई दिनों तक चलते रहे l 
  • मार्च 1947 तक यह सांप्रदायिक हिंसा पूरे भारत में फ़ैल गयी l 
  • मजबूरन कांग्रेस देश के बंटवारे के लिए तैयार हो गयी l 

विभाजन के कारण 

  1. कुछ विद्वान यह मानते है की बंटवारे की पृष्ठभूमि २०वी सदी के शुरुआत 1909 में है जब अंग्रेजो ने मुसलमानों के लिए पृथिक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था कर दी l 
  2. 1919 में जब पृथक चुनाव क्षेत्र का विस्तार किया गया तो साम्प्रदायिकता की भावना को बल मिला l 
  3. अलग चुनाव क्षेत्र होने से मुस्लमान अपने प्रतिनिधि चुन सकते थे और इससे राजनेताओं में लालच बढ़ गया l 
  4. वे सांप्रदायिक भाषण देने लगे l अपनी समुदाय को नाजायज फायदा पहुचाने लगे ताकि वे चुनाव जीत सके l 
  5. चुनाव में दिए गए भाषण धीरे धीरे धार्मिक अस्त्मिताओं से जुड़ गयी l 
  6. इसके आलावा और दुसरे कारण जैसे मस्जिद के सामने संगीत बजाना और गो रक्षा आन्दोलनं, आर्य समाज का “शुधि की कोशिशे” जैसे मुद्दों से सांप्रदायिक तनाव बढ़ा l 
  7. मध्यवर्गीय प्रचारक और सांप्रदायिक कार्यकर्ता धीरे धीरे अपने अपने समुदाय दुसरे समुदाय के खिलाफ लामबंद करने लगे l इससे विभिन्न भागो में दंगे फैलने लगे l 
  8. सभी समुदायों के बीच गहरे फर्क होते गए और दंगा फसाद के साथ साथ हिंसा की घटनाएँ बढ़ने लगी l 
  9. ब्रिटिश सरकार की नीतियों और समाज में साम्प्रदायिकता के बढ़ने से विभाजन के खाई चौड़ी होती गए और दंगो के कारण हुई अशांति को शांत करने के लिए देश का विभाजन मान्य करना पड़ा l 

बँटवारे के समय कानून व्यवस्था 

  1. मार्च 1947 से लगभग साल भर तक पूरे देश में कानून कानून व्यवस्था चरमरा गयी थी l 
  2. सांप्रदायिक दंगे चारो ओर हाहाकार मचा रहे थे l कलकत्ता और अमृतसर जैसे नगरों में हर तरफ भरी रक्तपात और आगजनी हो रही थी l 
  3. कानून व्यवस्था और इसलिए बिगड़ गयी थी क्योकि अब पुलिस भी सांप्रदायिक व्यवहार कर रही थी l 
  4. पुलिस वाले अपने धर्म के लोगो को बचाने में लगे थे और दुसरे समुदाय पर हमला कर रहे थे l इससे स्थिति और भयावह हो गयी थी l 
  5. अंग्रेज अधिकारी भी निर्णय नहीं ले पा रहे थी की वह क्या करे l देश स्वतंत्र हो चूका था और साथ ही ब्रिटिश अधिकारी ब्रिटेन लौटने की तयारी कर रहे थे l 
  6. ब्रिटिश अपने जान माल की रक्षा कर रहे थे और वापस जाने की तैयारी में लगे थे l 
  7. हालात यह थे की पुलिस दंगाइयों पर एक गोली भी नहीं चला पा रही थी l 
  8. जो कोई अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस के पास जाता पुलिस उनको महात्मा गाँधी, नेहरू , बल्लभभाई पटेल या फिर मो. अली जिन्ना के पास जाने को कहते थे l 

बँटवारे के समय महिलाओं की स्थिति और अनुभव 

  1. बंटवारे के समय सबसे ज्यादा दंश महिलाओं ने झेला l दंगा भड़कने से गाँव के गाँव खाली हो रहे थे l 
  2. पुरुष अक्सर अपनी दंगे में या दुसरे समुदाय के साथ मारे जाते l ऐसी महिलाओं को बंधक बना लिया जाता था और उनका शारीरिक और यौन शोषण किया जाता था l 
  3. बंटवारे के दौरान बहुत से लोगो ने दुसरे समुदायों के पुरुषों और बच्चो की हत्या करके महिलाओं का अपहरण कर लिया था l 
  4. इन महिलाओ का जबरन धर्म परिवर्तन करवा कर उनकी शादी कर दी जाती थी l 
  5. बंटवारे के दौरान अनेकों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और अधिकतर महिलाओं ने अपनी इज्जत आबरू बचाने के लिए आत्महत्या कर ली l 
  6. 1948 में दोनों देशों की सरकार ने एक समझौते के तहत औरतों की बरामदगी की और उन्हें अपने वतन वापस भेज दिया l 
  7. इनमे से बहुत सारी महिलाओं के कोई रिश्तेदार जिन्दा नहीं थे और वे अपने वतन लौटकर भी बेघर हो गयी थी l 


जन आन्दोलनों का उदय कक्षा 12 राजनीति विज्ञान नोट्स jan andolanon ka uday kaksha 12 rajniti vigyan notes


  जन आन्दोलनों का उदय 
कक्षा 12 राजनीति विज्ञान
नोट्स

जन आन्दोलन   

  1. लोगो के द्वारा अपनी या सामूहिक समस्याओं के लिए चलाये गए आन्दोलनों को जन आन्दोलन कहा जाता है l
  2. जन आन्दोलन की प्रकृति राजनितिक आन्दोलनों से भिन्न होती है l 
  3. यहाँ लोग अपने ऊपर होने वाले अत्याचार या अन्याय के खिलाफ आन्दोलन करते है l
  4. ऐसे अनेक आन्दोलन सत्तर और अस्सी के दशक में भारत के कई क्षेत्रों में देखने को मिले l 

चिपको आन्दोलन 

  1. चिपको आन्दोलन की शुरुआत उत्तराखंड के दो तीन गावों से हुई थी l 
  2. गाँव को वनों को साफ करके खेत बनाने की इजाजत न देकर एक खेल के उपकरण बनाने वाली कंपनी को दे दी गयी l 
  3. जिससे गाँव के लोगो ने कड़ा विरोध किया और पेड़ों के काटने का विरोध किया l 
  4. लोगो पेड़ों को कटने से बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गए l इसलिए इस आन्दोलन का नाम चिपको आन्दोलन पड़ा l 
  5. धीरे धीरे यह आन्दोलन पूरे उत्तराखंड में फ़ैल गया और इस आन्दोलन को विश्व प्रसिद्धी मिली l 

चिपको आन्दोलन का परिणाम

चिपको आन्दोलन के कारण सरकार को पेड़ों के कटने पर रोक लगानी पड़ी l 15 वर्षो के लिए पूरे क्षेत्र में पेड़ों के कटने पर रोक लगा दी गयी l 

 दल आधारित आन्दोलन 

  1. पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और बिहार के कुछ भागो में कुछ मजदूर और किसानों ने हिंसक विरोध पध्यती अपनाई l 
  2. इन लोगो ने मार्क्सवादी लेनिनवादी कम्युनिष्ट पार्टी के नेतृत्व ने सशस्त्र विद्रोह किया l 
  3. ये लोग आज भी छतीसगढ़ बिहार और बंगाल के कुछ क्षेत्रों में आज भी सक्रीय है l आज इस समूह को नक्सलवादी के नाम से जाना जाता है  l 

राजनितिक दलों से स्वतंत्र आन्दोलन 

  1. ये ऐसे आन्दोलन थे जिसमे राजनितिक दल सक्रीय नहीं थे अपितु इसमें आम जनता और स्वयंसेवी संगठन ने हिस्सा लिया l 
  2. राजनितिक पार्टियों से आम जनता का मोह भंग हो गया था l लोकतान्त्रिक संस्थाओ में आम जनता का विश्वास उठा गया था l 
  3. सामाजिक और राजनितिक कार्यकर्ता आगे आये और उन्होंने दलितों और गरीबो को लामबंद करना शुरू किया l
  4. दलित और गरीब वे लोग थे जिन्हें आज़ादी के बाद हुए आर्थिक और सामाजिक विकास को कोई लाभ नहीं हुआ l ये लोग समाज में हासिये पर था l 
  5. धीरे-धीरे इन समूहों ने संगठन बनाने शुरू किये और इन्हें किसी राजनितिक पार्टी से कोई सहायता नहीं मिलती थी l  इसलिए इन्हें स्वयंसेवी संगठन कहा गया l 

दलित पैंथर्स

  1. दलित पैंथर्स का गठन मुंबई महाराष्ट्र में सन 1972 में किया गया था l
  2. यह संस्था एक सामाजिक राजनीतिक संगठन था l रामदेव ढसाल और राजा ढाले इस संगठन के प्रमुख नेता थे l 
  3. दलित पैंथर्स ने दलितों और गरीबों पर हो रहे अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई l 
  4. दलितों के साथ होने वाले भेदभाव और छुआछुत को समाप्त करने और समाज में बराबरी का दर्जा प्राप्त करने के लिए लोगो को जागरूक किया l 
  5. कुछ शहरी दलित छात्रों ने इस संगठन की स्थापना की थी l धीरे धीरे यह संगठन पूरे महाराष्ट्र में फ़ैल गया l 
  6. दलित पैंथर्स ने राजनितिक गतिविधियों में भाग लिया परन्तु उसे सफलता नहीं मिली l 
  7. दलित पैंथर्स ने राजनितिक समझौते किया और अंत में यह टूट का शिकार हो गई l 
  8. इस संगठन के लगातार विरोध प्रदर्शन के चलते सरकार ने 1989 में एक व्यापक कानून के अंतर्गत दलित पर अत्याचार करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया l 
  9. दलित पैंथर्स का मुख्य उद्देश्य जाति प्रथा को समाप्त करना, भूमिहीन गरीब किसानों, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सरे वंचित वर्गों का एक संगठन खड़ा करना था l   

भारतीय किसान यूनियन B.K.U.

  1. भारतीय किसान यूनियन पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक किसान संगठन था l जिसके मुखिया महेंद्र सिंह टिकैत थे l 
  2. भारतीय किसान यूनियन किसानों के हितो की रक्षा के लिए और कृषि के विकास के लिए संघर्ष कर रहा है l 
  3. बी के यू सबसे पहले किसानों के लिए बिजली की दरों में बढ़ोतरी को लेकर धरना प्रदर्शन किया और अपनी बात मनवाई l 
  4. उदारीकरण के कारण कृषि को संकट का सामना करना पड़ रहा है l
  5.  भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहू के सरकारी खरीद मूल्य में वृद्धि करने, कृषि उत्पादों के अंतर्राजीय आवाजाही पर लगी पाबंदिया हटाने की मांग की l 
  6. समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने किसानो के बकाया कर्ज माफ़ करने की मांग की l 

ताड़ी विरोधी आन्दोलन 

  1. यह आन्दोलन ताड़ी जो की एक प्रकार का नशा पेय पदार्थ है के विरोध में सबसे पहले आंध्र प्रदेश में शुरू किया गया था l 
  2. नेल्लोर जिले के एक छोटे से गाँव दुबरगन्टा में सन 1990 में महिलाओं के द्वारा किया गया था l यह सभी महिलाये प्रौढ़ शिक्षा केंद्र जाती थी l 
  3. ग्रामीण पुरुषों को ताड़ी और शराब की लत लग चुकी थी जिससे वे मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो गए थे l
  4. नशे की लत के चलते आर्थिक तंगी होती थी और महिलाओं को अधिक परेशानियों का  सामना करना पढता था l 
  5. परिवार में तनाव और मारपीट का माहौल रहने लगा था l 
  6. लगभग 5000 गाँव की महिलाओं ने ताड़ी विरोधी आन्दोलन में भाग लिया और ताड़ी पर पूर्ण प्रतिबन्ध की मांगी की l 
  7. परिणाम स्वरुप सरकार ने ताड़ी पर प्रतिबन्ध सम्बन्धी प्रस्ताव पास करके जिला कलेक्टरेट को भेज दिया l 

परिणाम

  1. ताड़ी की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया l 
  2. महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और घरेलु हिंसा जैसे मुद्दे अब समाज में चर्चित होने लगे l 
  3. लैंगिक समानता और घरेलु तथा बाहरी यौन उत्पीडन का मामला अब सामाजिक परिवर्तन मुद्दा बन गया l 
  4. इस आन्दोलन के कारण महिलाओं की सामाजिक स्थिति में परिवर्थान की शुरुआत हुई l
  5. महिलाओं के आवाज़ उठाने से सरकार ने 1992 में संसद में पारित स्थानीय शासन में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी l
  6. अब महिलाये सरपंच बन सकती थी और उनको समाज में आगे बढ़ने के और अवसर मिलने लगे l 

 नर्मदा बचाओ आन्दोलन  

  1. नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध का शिलान्यास 5 अप्रैल 1961 में किया गया था l यह डैम दुनिया का सबसे बड़ा दम है l 
  2. नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 मझोले और 300 छोटे छोटे बांध बनाने का प्रस्ताव बनाया गया l 
  3. नर्मदा नदी को बचने के लिए नर्मदा बचाओं आन्दोलन चलाया गया l 
  4. योजना इतनी बड़ी थी की प्रस्तावित बांध बनाने से 245 गाँव इसके दूब क्षेत्र में आ रहे थे l 
  5. प्रभावित गाँव के करीब 2.5 लाख लोगो ने पुनर्वास की मांग उठाई l 1988-89 में गाँव के लोगो के साथ साथ कई स्वयंसेवी संगठन भी इस आन्दोलन में शामिल हो गये l

 पक्ष 

  1. इस परियोजना के पूरा होने से तीन राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश को बहुत लाभ होगा l 
  2. बांध बनने से पीने के पानी और सिंचाई के साधन विकसित होंगे l 
  3. बिजली के उत्पादन से बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित होगी और कृषि उपज और गुणवत्ता में वृद्धि होगी l 
  4. बांध बनाने से सुखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं पर अंकुश लगाने पर मदद मिलेगी l 

विपक्ष 

  1. विरोधियों का कहना है की इससे पर्यावरण को बहुत बड़े स्तर पर नुकसान होगा l
  2. लगभग 245 गाँव इसके डूब क्षेत्र में आ जाने की वजह से उनके सामने पुनर्वास की समस्या कड़ी हो गयी है l 
  3. इससे हजारो लोगो के आजीविका, पर्यावास, संस्कृति और पर्यावरण पर बहुत बूरा प्रभाव पड़ा है l 
  4. नदी के पारिस्थिकी तंत्र को क्षति हुई है l 

महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन कक्षा 12 इतिहास Class 12 History in Hindi Mahatma Gandhi and National Movement


महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन 

कक्षा 12 इतिहास 

महत्वपूर्ण नोट्स

प्रमुख राष्ट्रवादी नेता और उनके देश 

  1. गैरीबाल्डी  —   इटली 
  2. अमेरिका  —    जार्ज वाशिंगटन 
  3. वियतनाम   —  हो चि मिन्ह 
  4. भारत        —   महात्मा गाँधी 

महात्मा गाँधी का भारतीय राजनीति में पदार्पण : 

  1. महात्मा गाँधी ने भारतीय राजनीति में सन 1915 में भारत की धरती पर कदम रखा इससे पहले वह लन्दन में कानून की पढाई करके साउथ अफ्रीका में वकालत कर रहे थे l 
  2. दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने सत्याग्रह किया था और उन्हें इसमें सफलता भी मिली थी l इसलिए लोग उन्हें पहचानने लगे थे l
  3. गोपाल कृष्ण गोखले ने गाँधी जी को एक वर्ष तक भारत भ्रमण के लिए कहा ताकि वह भारत और भारत के लोगो को जान सके l इसलिए गोपाल कृष्ण गोखले को गाँधी जी का राजनितिक गुरु कहा जाता है l 
  4. सामूहिक रूप से गाँधी जी की उपस्थिति सन 1916 में बनारस में दर्ज की गयी थी जब वह बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के स्थापना पर उद्घाटन समारोह में गए थे l 
  5. गाँधी जी ने कहा की स्वराज का हमारा मकसद तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक की किसानो और गरीबों के हालत नहीं सुधारे जायेंगे l 
  6. किसानों के खेती समस्या को लेकर गाँधी जी ने सन 1916 में चंपारण में सत्याग्रह किया l  
  7. गाँधी जी ने चम्पारण के बाद अहमदाबाद में सूती मील के मजदूरों के लिए और खेड़ा में किसानों की फसल ख़राब होने पर कर माफ़ करने के लिए सत्याग्रह किया और सफलता प्राप्त की l 
  8. गाँधी जी 1 अगस्त 1920 में असहयोग आन्दोलन, 1931 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन और 1942 में भारत छोडो आन्दोलन किये जिसने अंग्रेजी सरकार की नीव हिला दी और उसे भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा l 

असहयोग आन्दोलन 

असहयोग आन्दोलन गाँधी जी के द्वारा 1 अगस्त 1920 को प्रारंभ किया गया था l इस आन्दोलन का प्रमुख विषय था “ब्रिटिश सरकार को किसी भी कार्य में सहयोग न करना” l 

असहयोग आन्दोलन के कारण :

  1. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था l 
  2. सरकार का विरोध करने वालों को संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर बिना मुक़दमा चलाये दो साल तक जेल में रखे जा सकने का कानून पास कर दिया l 
  3. इस कानून की देख रेख सर सिडनी रौलट की समिति कर रही थी इसलिए इसे रौलट एक्ट कहा गया l  
  4. अप्रैल 1919 में रौलट एक्ट का विरोध करने के लिए पंजाब के जलियावाला बाग़ में हजारो लोग इक्कठे हुए l पंजाब के सैनिको को प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इनाम की उम्मीद थी क्योकि युद्ध में पंजाब के बहुत से सैनिको ने ब्रिटिश सरकार के लिए लड़ाई लड़ी थी लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा l 
  5. जलियावाला बाग़ में केवल एक ही निकास दरवाजा था जनरल डायर ने लोगो को घेर कर निहथे लोगो पर गोलियाँ बरसा दी l 
  6. इस घटना में लगभग 900 लोग मरे गए और 1500 से 2000 लोग घायल हुए l इस घटना के बाद पूरे देश में ब्रिटिश सरकार के प्रति रोष फ़ैल गया और सरकार को जड़ से उखाड़ फेकने की मांग तेज हो उठी l
  7. इन सब कारणों से गाँधी जी ब्रिटिश सरकार को किसी भी सरकारी कार्य में सहयोग न करने की अपील की और असहयोग आन्दोलन की शुरुआत की l 

असहयोग आन्दोलन की रूप रेखा 

  1. असहयोग आन्दोलन 1857 की क्रांति से भी ज्यादा लोकप्रिय था l जो औपनिवेशिक साम्राज्य को उखाड़ फेकने में बिलकुल सक्षम थी l 
  2. इसमें हर वर्ग से लोगो ने भाग लिया और आन्दोलन को मजबूत किया l 
  3. विद्यार्थियों ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कालेजों में जाना बंद कर दिया l 
  4. वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया l 
  5. कई कस्बों और शहरों में श्रमिक वर्ग हड़ताल पर चले गए l सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1921 में 396 हड़ताले हुई जिनमे 6 लाख श्रमिक शामिल थी l 
  6. इस हड़ताल के दौरान लगभग 70 लाख कार्य दिवसों का नुकसान हुआ l 
  7. ग्रामीणों ने वन्य कानून की अवहेलना कर दी l अवध की किसानों ने कर देना बंद कर दिया l 
  8. कुमाऊ के किसनों ने अंग्रेजी सरकार का सामान उठाने से मना कर दिया l 
  9. अलग अलग समुदाय और वर्गों के लोगो ने अपने अपने तरीके से असहयोग किया l 

असहयोग आन्दोलन के परिणाम : 

नमक सत्याग्रह/सविनय अवज्ञा आन्दोलन 

  1. ब्रिटिश राज में नमक के उत्पादन पर राज्य का एकाधिकार था और वह उस पर बहुत अधिक कर लगाता था l परिणामस्वरूप नमक काफी ऊंची कीमत पर मिलता था l 
  2. गाँधी जी के नज़र में नमक सबके भोजन की जरूरत है और इस पर राज्य का एकाधिकार गलत है l आम लोगो के लिए नमक अपरिहार्य था l 
  3. इसलिए गाँधी जी ने गुजरात के दांडी नमक तट पर नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा l इस पूरी आन्दोलन को नमक सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है l 

नमक सत्याग्रह का प्रारंभ : 

  1. 12 मार्च 1930 को गाँधी जी ने साबरमती में अपने आश्रम से समुन्द्र की ओर चलाना प्रारंभ किया l तीन हफ्तों बाद वह दांडी पहुचे l 
  2. दांडी में नमक बनाकर उन्होंने नमक कानून तोड़ा और कानून की नज़र में अपराधी बन गए l 
  3.  इसके साथ ही गाँधी जी ने सभी लोगो से अपील की की वह सभी सरकारी कार्यो का बहिष्कार करे l इन सरकारी कार्यो में वह कार्य मुख्य रूप से शामिल थे जिनपर ब्रिटिश सरकार ने गलत तरीके से कर लगा दिया था l 
  4. शराब की दुकानों अफीम और विदेशी कपड़ों की दुकानों पर धरना दिया जाने लगा l 
  5. विदेशी वस्तुओं को इकठ्ठा कर जलाया जाने लगा l ब्रिटिश सरकार को कर देना बंद किया जाने लगा था l 
  6. लोगो ने पूरे देश में जगह जगह नमक सत्याग्रह के साथ साथ सरकार विरोधी यात्रायें आयोजित की l 
  7. और इस प्रकार से एक बार फिर से जनांदोलन उठ खड़ा हुआ l इस आन्दोलन को सविनय अवज्ञा आन्दोलन कहा गया l 

सविनय अवज्ञा आन्दोलन 

  1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा चलाया गया था l कांग्रेस स्वराज की मांग कर रही थी लेकिन ब्रिटिश सरकार इसे टालने में लगी हुई थी l 
  2. जब कांग्रेस को लगने लगा की ब्रिटिश सरकार स्वराज देने के लिए राजी नहीं होगी तो 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में घोषणा की गयी की अब “पूर्ण स्वराज” प्राप्त किया जायेगा l 
  3. 6 अप्रैल 1930 को महात्मा गाँधी ने नमक बनाकर इस आन्दोलन की शुरुआत की l 

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रभाव : 

  1. इस आन्दोलन से महात्मा गाँधी जी विश्व पटल पर छा गए l अमेरिकी और ब्रिटिश मीडिया में गाँधी जी पर काफी बहस होने लगी l 
  2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन असहयोग आन्दोलन से भी ज्यादा लोकप्रिय हुआ और इसने अंग्रेजी सरकार की नीव हिला दी l
  3. अंग्रेजी सरकार को मजबूरन वार्ता के लिए हाथ आगे बढ़ाना पड़ा और और पहली गोलमेज सम्मलेन 1930 नवम्बर में आयोजी की गयी जो असफल रही l 
  4. जनवरी 1930 में गाँधी इरविन समझौता हुआ जिसकी शर्तो के अनुसार सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेना था l 
  5. गाँधी इरविन समझौते की शर्तो ने अनुसार आन्दोलन के कैदियों की रिहाई और तटीय इलाकों में नमक उत्पादन की अनुमति देना शामिल था l 
  6. इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार 1935 में गवेर्न्मेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट लेकर आयी जिसके अंतर्गत भारतीयों को शासन व्यवस्था का आश्वासन दिया गया l 

भारत छोड़ो आन्दोलन 

  1. क्रिप्स मिशन के विफल होने के बाद गाँधी जी ने तीसरा सबसे बड़ा आन्दोलन शुरु किया l 
  2. भारत छोड़ो आन्दोलन अगस्त 1942 में शुरू किया गया l आन्दोलन शुरू होने से पहले ही गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया l 
  3. जय प्रकाश नारायण ने भारत छोड़ो आन्दोलन में भूमिगत होते हुए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई l 
  4. यह आन्दोलन पूरे देश में फैला और परिणाम स्वरुप यह इतना बड़ा हो गया की इसको दबाने में सरकार को पूरे 1 वर्ष लग गए ल 
  5. इस आन्दोलन में नवयुवकों ने बहुत बड़ी संख्या में भाग लिया l
  6. भारत छोड़ो आन्दोलन सही मायनों में एक जनांदोलन था जिसमे लाखों हिन्दुस्तानियों ने भाग लिया था l 

मुस्लिम लीग 

  1. मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसम्बर 1906 को ढाका में की गयी थी l 
  2. मुस्लिम लीग का पूरा नाम अखिल भारतीय मुस्लिम लीग था l 
  3. मार्च 1940 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के नाम से एक पृथक राष्ट्र की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया l 
  4. हिन्दू राष्ट्र के रूप में भारत के उभरने से मुसलमानों में भय का माहौल बनने लगा था l इस समस्या को हल करने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग की स्थापना की l 
  5. सन 1947 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग ना माने जाने की वजह से पाकिस्तान राष्ट्र प्राप्त करने के लिए सीधी कार्यवाही करते हुए हजारो लोगो को मौत के घाट उत्तर दिया जिससे पूरे देश में दंगा भड़क उठा l 

महात्मा गाँधी के जीवन का आखिरी वर्ष 

  1. भारत राष्ट्र अब स्वतन्त्र हो चूका था और पूरा देश इसकी खुशियाँ माना रहा था l दिल्ली में आज़ादी का जश्न मनाया जा रहा था लेकिन महात्मा गाँधी इस जश्न में शामिल नहीं थे l 
  2. महात्मा गाँधी जी कलकत्ता में 24 घंटे के उपवास पर थे l वे देश के बंटवारे से बहुत दुखी थे l इसलिए वहाँ भी उन्होंने किसी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया l 
  3. सितम्बर और नवम्बर के दौरान गाँधी जी पीड़ितों को सांत्वना देते हुए अस्पताल और शरणार्थी शिविरों के चक्कर लगा रहे थे l 
  4. वे हिन्दू मुस्लिमो और सिक्खों को अतीत को भुलाकर आपस में मिलकर भाई चारे के साथ रहने की सलाह दे रहे थे l 
  5. गाँधी जी ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर एक प्रस्ताव कांग्रेस के द्वारा पारित करवाया l 
  6. बंगाल में शांति स्थापना के प्रयासों के बाद गाँधी जी दिल्ली आ गए l यहाँ से वह दंगा पीड़ित पंजाब जाना चाहते थे लेकिन शरणार्थियों के विरोध के कारण वे नहीं जा सके l 
  7. गाँधी जी पर यह आरोप भी लगता था की वह मुसलमानों के खुशामदी है l वे कहते थे की पाकिस्तान में फंसे हिन्दुओ के प्रति वह अपनी संवेदना क्यों नहीं दिखाते है l 
  8. आखिरकार एक धर्मांध व्यक्ति जिसका नाम नात्थू राम गोडसे था ने 30 जनवरी 1948 को गाँधी जी को शाम को उनकी प्रार्थना सभा में गोली मार दी l 
  9. भारत सहित पूरे विश्व ने गाँधी जी को भावभीनी श्रधांजलि दी l 

औपनिवेशिक शहर कक्षा 12 इतिहास नोट्स Colonial Cities Class 12 history in hindi

कक्षा 12 इतिहास 
औपनिवेशिक शहर नोट्स 
मद्रास शहर
1.       सन 1639 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने विजयनगर के राजा पेडा वेंकट राय से एक गाँव ख़रीदा था और एक साल बाद ही सेंट जार्ज किला बनवाया l
2.       यह गाँव कोरोमंडल तट के पास चंद्रगिरी में मद्रासपटनम ख़रीदा गया था जो बाद में औपनिवेशिक गतिविधियों का केंद्र बन गया
3.       बाद में इसी क्षेत्र का नाम मद्रास प्रेसिडेंसी पड़ा l मद्रास प्रेसिडेंसी में आज के आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र केरल का मालाबार क्षेत्र कर्नाटक का बेलारी और दक्षिण कन्नड क्षेत्र आते थे
4.       सेंट जार्ज किले को वाइट और ब्लैक टाउन की तर्ज पर बनाया गया जिसमे केवल यूरोपीय लोग रहते थे l ब्रिटिश के साथ साथ डच और पुर्तगालियों को भी किले में रहने की छुट थी l
5.       ब्लैक टाउन किले के बाहर बसाया गया जिसमे काले लोग रहते थे l इनमे बुनकर, कारीगर बिचौलिए और दुभाषिये लोग रहते थे l  
6.       प्रेसिडेंसी में यूरोपीय इसाई होने के कारण डच और पुर्तगाली नागरिको को रहने की छुट थी
7.       संख्या में कम होने के बावजूद गोर लोगो की सुविधाओं के हिसाब से शहर का विकास किया जाता था
8.       पुराने ब्लैक टाउन जो की किले के बहार ही बसा हुआ था ढाह  दिया गया और नए ब्लैक टाउन को किले से दूर बसाया गया जिसे परंपरागत भारतीय शहरों की तरह ही बनाया गया था
9.       नए ब्लैक टाउन में सभी जाति और वर्गों के लिए अलग अलग बस्तियां बनाई गयी थी
10.    मद्रास स्टेट बहुत सारे गावों को मिलकर बनाया गया था जिनमे माइलापुर और ट्रिप्लिकेन आरकोट, सान थोम और वहां का गिरिजाघर रोमन कैथोलिक चर्च सब अब मद्रास के हिस्से हो गये थे l
11.    धीरे धीरे लोग किले से छावनी तक जाने वाली सड़क के दोनों ओर बसने लगे यूरोपीय लोगो की तरह ही संपन्न भारतीय लोग भी जो अंग्रेजो की तरह ही रहने लगे थे ने अपने घर इस स्थानों पर बनवाये
12.  कामगार मजदूर कारखाने के पास वाले गाँव में बस गए जो बाद में अर्धशहरी इलाको में बदल गया इस पारकर मद्रास एक बड़ा नगर बन गया था l 

कलकत्ता शहर 
1.      कलकत्ता शहर तीन गाँवों सुतानाती, कोलकाता और गोविदपुर नामक तीन गाँव से मिलकर बना था
2.      सन 1757 में प्लासी के युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हरा कर बंगाल की दीवानी हासिल कर ली
3.      सिराजुद्दौला स्वतन्त्र रूप से कार्य करते हुए कंपनी को किसी भी प्रकार के करो में छूट नहीं दे रहा था और अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल करते हुए बंगाल के नवाब ने कंपनी के किले पर अपना कब्ज़ा कर लिया था
4.      युद्ध जितने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने गोविन्दपुर में एक नए किले विलयम फोर्ट का निर्माण करवाया l इस किले के चारो और बहुत सी खली जगह छोड़ी गयी ताकि आराम से दुश्मनों पर गोलीबारी की जा सके l नगर नियोजन का यह एक नायब तरीका था
5.      किले के पास खाली जगह को स्थानीय लोग गारेर मठ कहते थे
6.      1798 में बंगाल के गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली ने गवर्नमेंट हाउस के नाम से एक महल का निर्माण करवाया l यह ईमारत अंग्रेजो के सत्ता की प्रतीक थी
7.      शहर को स्वास्थ्यपरक बनाने के लिए लार्ड वेलेजली ने शहर में खली जगह छोड़ने के लिए बाज़ारों, घाटों, कब्रिस्तानो और चर्मशोधन इकाइयों को या तो साफ़ करवा दिया या वहाँ से हटा दिया गया
8.      लार्ड वेलेजली के बाद लोटरी कमेटी जिसका गठन 1817 में किया गया था ने शहर नियोजन का कार्यभाल सम्भाल लिया
9.      1817 में हैजा और 1896 में प्लेग फ़ैलने के कारण शहर में कामकाजी लोगो की झोपड़ियों और बस्तियों को शहर के अन्दर से हटाकर शहर के बहार बसाया जाने लगा
10.  मजदूरों, फेरीवाले, कारीगर और बेरोजगार और गरीबों को शहर से दूर धकेल दिया गया
11.  आग की घटनाओं की चलते 1836 में शहर में फूँस की झोपड़ियों को अवैध घोषित कर दिया गया
12.  अंग्रेजो की दृष्टी में शहर का तर्कसंगत, क्रम व्यवस्था, सटीक क्रियान्वयन, पश्चिमी सौन्दर्यात्मक आदर्श शहरों को साफ़ सुथरा व्यवस्थित और सुन्दर अनिवार्य था l 

बम्बई शहर 
1.     शुरुआत में बम्बई सात टापुओं का इलाका था l बाद में इन टापुओं को आपस में जोड़ दिया गया l इस प्रकार बम्बई शहर अस्तित्व में आया
2.     बम्बई पश्चिमी तट पर बहुत महत्वपूर्ण वाणिज्यिक बंदरगाह था l यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापर होता था इसलिए बम्बई औपनिवेशिक शहर की आर्थिक और वाणिज्यिक राजधानी बन गयी
3.     इस बंदरगाह से मुख्य रूप से अफीम का निर्यात होता था l ईस्ट इंडिया कंपनी यहाँ से चीन को अफीम निर्यात करता था
4.     ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ गठजोड़ करके बहुत से भारतीय व्यापारी बड़े पूंजीपति बन गए l इनमे पारसी, मारवाड़ी, कोंकणी, मुस्लमान, गुजरती, बोहरा, यहूदी, आर्मेनियाई और विभिन्न समुदाय के लोग थे
5.     1869 में बम्बई सरकार और भारतीयों ने “मुंबई को भारत का सरताज” घोषित किया क्योंकि 1869 में स्वेज नहर के अंतर्राष्ट्रीय व्यापर के लिए खुलने से मुंबई एशिया में व्यापर का केंद्र बनकर उभरा
6.     जैसे जैसे बम्बई शहर की अर्थव्यवस्था फैली वैसे वैसे नई इमारतों का निर्माण शुरू हो गया l बम्बई में नयी इमारतें यूरोपीय शैली में बनाई जा रही थी जो औपनिवेशिक सत्ता और शक्ति का प्रतीक थी
7.     अंग्रेजो ने भारतीय भवन निर्माण शैली को अपने तरीके से इस्तेमाल किया उन्होंने बंगलो को बनाने के लिए भारतीय फूँस की झोपड़ी की नक़ल की और बंगलो की छत ढलानयुक्त बनाई जिससे ठंडक बनी रहे इसके साथ बंगले के बरामदे में 
8.     चारो और पिलर का निर्माण करवाया गया 1833 में बम्बई में टाउन हॉल का निर्माण कराया गया जो रोम स्थापत्य की शैली पर बना था और भूमध्यसागरीय जलवायु के अनुकूल था l
9.     सूती कपड़ा उद्योग के लिए बनाई गयी बहुत सारी इमारतों के समूह को एल्फिन्स्टन सर्कल कहा जाता था l
10.            इसके साथ साथ इमारतों में गाथिक शैली का उपयोग किया जा रहा था l ऊँची उठी हुई छतें, नोकदार मेहराबें और बारीक़ साज सज्जा इस शैली की खासियत होती थी l
11.            सचिवालय, बम्बई विश्वविद्यालय और उच्च व्यायालय जैसी कई इमारते इसी शैली में बनायी गयी थी l
12.            गाथिक शैली में कुछ परिवर्तन कर इसे इस्तेमाल किया जाने लगा जिसे नव गाथिक शैली कहा जाता था l मुंबई का विक्टोरिया टर्मिनस नव गाथिक शैली का बहुत ही जानदार नमूना है l
13.            इसके साथ ही 20वीं सदी में एक और स्थापत्य कला शैली का विकास हुआ जिसे इंडो-सारासेन शैली कहा जाता है जो हिन्दू और यूरोपीय शैली का मिश्रण थी l
14.            इंडो-सारासेन शैली को गुम्बदो, छतरियों, जालियों, मेहराबो में देखा जा सकता है l इसका सबसे अच्छा उदहारण जमशेदजी टाटा के द्वारा बनवाया गया ताजमहल होटल है l