गुप्तकालीन वास्तुकला

गुप्तकालीन वास्तुकला नोट्स मुख्य रूप से UPSC के मैन्स के एग्जाम को देखते हुए बनाये गए है l

गुप्त काल का समय काल लगभग 200 से 325 ईसवी के मध्य है l  गुप्त काल राजनीतिक और आर्थिक रूप से स्थिर और समृद्ध था l इसकी समृद्धि इसके व्यापार के कारण थी l और इसका श्रेय गुप्त काल के योग्य शासकों को जाता है l इसी समय भारत के सबसे समृद्ध वास्तुकला  अपने चरमोत्कर्ष पर थी l  गुप्त काल की वास्तुकला अन्य वास्तुकला से इस मायने में अलग है की इसमें विदेशी तत्वों का प्रभाव नहीं दिखता है l  वास्तु कला का विकास जैसा गुप्त काल में हुआ है वैसा इतिहास के किसी और काल में नहीं हुआ l 

गुप्तकालीन वास्तुकला

गुप्तकालीन वास्तुकला को मुख्य रूप से राज प्रसाद या राजमहल, स्तंभ, स्तूप, बिहार, गुफाएं और मंदिर में बांटा जाता है l  गुप्तकालीन वास्तुकला पूर्ण रूप से स्थानीय कला है l   स्तंभ और स्तूप निर्माण में इसकी झलक मिलती है l  आइए प्रत्येक भाग पर एक संक्षिप्त चर्चा करते हैं:

 स्तंभ

गुप्तकालीन वास्तुकला में स्तंभों की मुख्य विशेषता इनका गोल आकार के साथ-साथ  चारों तरफ ज्यामितीय आकृतियों का उपयोग भी किया गया है l  षट्भुज अष्टभुज  इत्यादि आकृतियों का कार्य भी देखने को मिलता है

  • महरौली का लौह स्तंभ,  भिलसद स्तम्भ,  कहौम और भीतरी स्तंभ,  एरण स्तंभ  इत्यादि गुप्त काल की वास्तुकला  का नमूना है l 
  •  महरौली का लौह स्तंभ चंद्रगुप्त द्वितीय के द्वारा बनवाया गया था l 
  • इसकी खास विशेषता यह है कि इस पर कभी भी जंग नहीं लगता है और सैकड़ों वर्षो से विभिन्न प्रकार के मौसम में यह अडिग खड़ा है l 
  •  भीलसद स्तंभ का निर्माण लाल बलुआ पत्थरों के द्वारा कुमारगुप्त प्रथम के काल में हुआ था l यहां पर 4  स्तंभ अभिलेख मिलते हैं l  
  • कहौम और भीतरी स्तंभ  स्कंद गुप्त के द्वारा बनवाया गया था l 
  •  एरण स्तंभ बुध गुप्त और भानु गुप्त के द्वारा बनवाए गए थे l 

गुप्तकालीन सारनाथ का धमेख स्तूप

सारनाथ का धमेख स्तूप मौर्य काल में बनाए गए स्तूपो से अलग है l  जहां मौर्यकालीन स्तूपो का निर्माण ऊंचे चबूतरे पर किया गया है वही धमेख स्तूप का निर्माण धरातल पर किया गया है l मौर्यकालीन स्तूप का शीर्ष अर्ध गोलाकार है जबकि गुप्तकालीन धमेख स्तूप का शीर्ष दंड आकार शिखर का है l इस स्तूप का निर्माण 500 ईसवी के आसपास किया गया था l  इस स्तूप के दीवारों पर उन्नत किस्म की चित्रकारी की गई है l  

बौद्ध विहार

गुप्त काल में दो प्रसिद्ध बौद्ध विहार  सारनाथ और नालंदा प्रमुख हैं l  बिहार में बौद्ध भिक्षु निवास करते थे और ज्ञान प्राप्त करते थे l  गौरतलब है कि नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था l जहां चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी शिक्षा ग्रहण की थी l 

गुफाएँ :गुप्तकालीन वास्तुकला में चित्रकारी और मूर्तिकला

कृत्रिम गुफाओं का निर्माण मौर्य काल से ही प्रारंभ हो गया था l गुप्तकालीन वास्तुकला में  कृत्रिम गुफाओं का निर्माण मुख्य रूप से उदयगिरि और रत्नागिरी में किया गया l  अजंता की गुफा नंबर 16 और 17 गुप्त काल से संबंध रखते हैं l  इन गुफाओं में  त्रिआयामी चित्रकारी और मूर्तिकला गुप्त काल के उन्नत वास्तुकला को दर्शाती है l 

 मंदिर

गुप्तकालीन वास्तुकला में मंदिरों का निर्माण बहुत बड़े स्तर पर देखने को मिलता है l मंदिर निर्माण इस काल में अपने चरमोत्कर्ष पर था l  इन मंदिरों में गर्भ गृह का निर्माण भी किया गया l चारों तरफ परिक्रमा मार्ग भी बनाए गए l  

गुप्तकालीन मंदिर वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएँ:

  • गुप्तकाल के मंदिरों में गर्भ गृह बनाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ l इस गर्भ गृह के चारों ओर परिक्रमा मार्ग बनाया गया l 
  • प्रारंभ में इन मंदिरों के शीर्ष सपाट बनाए जाते थे l बाद में इनमें शिखर बनाए जाने लगा l 
  • देवगढ़ का दशावतार मंदिर पहला शिखर वाला मंदिर है l 
  • इन मंदिरों का निर्माण मुख्य रूप से  ईटों से किया गया है l 
  • भीतरगांव का लक्ष्मण मंदिर पूरी तरह ईटो से बना है l  
  • मंदिरों को ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है और चबूतरे के चारों दिशाओं से चिड़ियों का निर्माण किया गया है l

गुप्तकालीन  मंदिर वास्तुकला के उदाहरण:

  • देवगढ़ का दशावतार मंदिर – ललितपुर उत्तर प्रदेश
  • भूमरा का शिव मंदिर – नागौर राजस्थान 
  • तिगवा का विष्णु मंदिर – जबलपुर 
  • नाचना कुठार पार्वती मंदिर – अजयगढ़ मध्य प्रदेश
  • खोह का शिव मंदिर – नागौद मध्य प्रदेश
  • सिरपुर लक्ष्मण मंदिर – छत्तीसगढ़
  • भीतरगांव लक्ष्मण मंदिर –  कानपुर

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