संघवाद नोट्स कक्षा 11 राजनीति विज्ञान के इस अंक में आपको संघवाद अध्याय के सभी टॉपिक्स जैसे केंद्र सरकार और राज्य सरकार के विभिन्न सम्बन्ध के बारे में नोट्स मिलेंगे l राज्य सूची और संघ सूची के साथ समवर्ती सूची को विस्तार से बताया गया है l
NCERT NOTES FOR UPSC NCERT NOTES FOR CLASS 11 POLITY
संघवाद का अर्थ
इसका अर्थ होता है संगठित रहने का विचार l संघ का अर्थ होता है संगठन और वाद का अर्थ होता है विचार तो इस प्रकार से संघवाद का अर्थ बना साथ रहने का विचार l
- यह एक प्रकार की संस्थागत प्रणाली है l जिसमें दो स्तर की राजनीतिक व्यवस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है l
- इसमें एक केंद्रीय स्तर की सरकार होती है और दूसरी राज्य स्तर की सरकारें होती हैं l
- केंद्रीय सरकार पूरे देश के लिए शासन और नियम तय करती है l
- जिसमें राष्ट्रीय महत्व के विषय होते हैं l
- राज्य सरकारें अपने राज्य में या विशेष क्षेत्र में होती हैं l जिसमें राज्य को महत्व दिया जाता है l
- सिर्फ राज्य के विषय होते हैं जिस पर राज्य की जनता के लिए उनके हित के लिए कार्य किया जाता है l
- उदाहरण के लिए भारत में तीन प्रकार की सूचियाँ बनाई गई हैं l
- संघ सूची केंद्रीय सरकार के लिए, राज्य सूची राज्य सरकार के लिए
- समवर्ती सूची जिसमें केंद्र और राज्य दोनों प्रकार के सरकारी कानून बना सकती हैं l
भारतीय संविधान में संघवाद
संविधान के अनुच्छेद अनुच्छेद 1 में भारत को राज्यों का संघ कहा गया है l भारत का संघवाद विश्व के अन्य देशों के संघवाद से बिल्कुल अलग है भारतीय संविधान में federation शब्द का कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया है l बल्कि उसकी जगह यूनियन(Union) शब्द का प्रयोग किया गया है l प्रारंभ में भारत में कुल 14 राज्य थे l नीचे मानचित्र में देखे l
- भारत को 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया है l
- प्रारंभ में जब भारत आजाद हुआ था तब उसमें 14 राज्य थे l
- जम्मू और कश्मीर विशेष दर्जे के तहत एक पूर्ण राज्य था l
- धारा 370 हटाने के बाद उसका विभाजन 2 केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख तथा जम्मू और कश्मीर में कर दिया गया है l
- भारत के अलावा दुनिया के ऐसे कई देश है l
- जहाँ पर संघवाद अस्तित्व में है इस राजनीतिक व्यवस्था का उपयोग मुख्य रूप से वेस्टइंडीज, नाइजीरिया, अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में किया जाता है l लेकिन इन देशों में संघवाद भारतीय संघवाद से बिल्कुल अलग प्रकृति का है l
भारतीय संघवाद की विशेषताएँ
विश्व के देशों में संघवाद में मुख्य रूप से दो स्तर की सरकारें हैं l वहीं पर भारत में संघवाद के रूप में तीन स्तर की सरकारी कार्य करते हैं l पहले स्तर पर केंद्रीय सरकार जो काफी शक्तिशाली हैं दूसरे स्तर पर राज्य सरकारें और तीसरे स्तर पर स्थानीय सरकारें कार्य करती हैं l भारतीय संघवाद की विशेषता मुख्य रूप से लिखित संविधान में दर्ज है l भारत में शक्तियों का विभाजन संविधान के अनुसूची 7 में किया गया है l जिसमें संघ सूची राज्य सूची और समवर्ती सूची के साथ-साथ केंद्र सरकार को अवशिष्ट शक्तियां प्रदान की गई है l भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है जो राज्य और केंद्र तथा राज्यों के बीच विवाद का निपटारा करती है l भारतीय संघवाद में संविधान को सर्वोच्चता दी गई हैं l
भारतीय संविधान में संघवाद की शक्ति विभाजन
- भारतीय संघवाद में तीन प्रकार की सरकारें हैं l संघीय सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय सरकार l
- स्थानीय स्तर की सरकारों का निर्माण 74वें और 73वें संविधान संशोधन के द्वारा अनुसूची 12 और अनुसूची 11 के तहत की गई l
- संविधान के संघवाद के अनुच्छेदों में संघ और राज्यों के बीच विधाई शक्तियों के वितरण की घोषणा की गई है l
- संघीय सरकार के पास राष्ट्रीय महत्व के विषय जबकि प्रांतीय सरकार के पास राज्य स्तर के विषय हैं l
संविधान की सर्वोच्चता
- भारतीय संविधान में संघवाद के ढांचे में चाहे वह केंद्र शासक शासन हो या राज्य शासन संविधान को सर्वोपरि माना गया है l
- संघवाद की सभी सरकारे संविधान के दायरे में रहकर ही काम करेंगी l
- देश में केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच शक्तियों को 3 भागो के तहत बांटा गया है l
- संविधान तीन स्तर की सरकारों की व्यवस्था करता है केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय सरकार l
- स्वतंत्र न्यायपालिका के द्वारा राज्य और केंद्र की शक्तियों में विवाद होने पर पंच की भूमिका निभाने के लिए स्वतंत्र रखा गया है l
- भारतीय संविधान में संसद संशोधन कर सकती है परंतु उसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती l
संविधान में एकात्मकता के लक्षण
भारतीय संघवाद में कुछ ऐसे लक्षण है l जिससे यह प्रतीत होता है कि या एकात्मक संघवाद की तरह कार्य करती है l जो निम्न है:
- एकल नागरिकता शक्ति विभाजन में केंद्र के पक्ष में ज्यादा शक्तियों का बंटवारा l
- संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान
- स्वतंत्र और एकीकृत न्यायपालिका
- आपातकाल की स्थिति में केंद्र सरकार को ज्यादा शक्ति प्रदान करना
- राज्य में राष्ट्रपति द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति
- एकल प्रशासकीय व्यवस्था (संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा आईएएस आईपीएस और आईआरएस)
- संविधान संशोधन में संघीय सरकार अर्थात केंद्र सरकार को महत्व
केंद्र सरकार को अधिक शक्तियाँ देने के कारण
भारत देश एक बहुत ही विशाल और अनेकानेक विविधताओं से परिपूर्ण है l देश में सामाजिक आर्थिक कई प्रकार की समस्याएं हैं l संविधान निर्माता शक्तिशाली केंद्रीय सरकार के माध्यम से उन विविधताओं और समस्याओं का निपटारा करना चाहते थे l जब देश स्वतंत्र हुआ उस समय 565 रियासतें और ब्रिटिश भारत के 17 प्रांत थे l इन सब को एकजुट करना और एकता के सूत्र में बांधे रखना एक बड़ी चुनौती थी l यही कारण है कि भारतीय संघीय व्यवस्था में केंद्र सरकार को अधिक शक्तिशाली बनाया गया है l
शक्तियों का विवाद: केंद्र-राज्य संबंध
संविधान में केंद्र को अधिक शक्तियां दिए जाने के कारण केंद्र राज्य संबंध में अक्सर तनाव बना रहता है l ऐसे कई राज्य हैं जो अधिक अधिकार और स्वायत्तता की मांग करते हैं l राज्य अपने हितों के लिए कई प्रकार से मांगे करते हैं l जो निम्न प्रकार है:
- स्वायत्तता की मांग
- राज्यपाल की भूमिका तथा राष्ट्रपति शासन
- नए राज्यों की मांग
- अंतर्राज्यीय विवाद
- विशिष्ट प्रावधान
स्वायत्तता की मांग: संघवाद की प्रमुख समस्या
ऐसे अनेक मौके आए हैं जब राज्यों और राजनीतिक दलों में राज्यों को केंद्र के मुकाबले अधिक स्वायत्तता देने की मांग उठी है l जिसमें वित्तीय स्वायत्तता प्रशासनिक सेवाएं तथा सांस्कृतिक और भाषाई स्वायत्तता की मांग है l
- वित्तीय स्वायत्तता: राज्यों के आय के अधिक साधन होने चाहिए तथा संसाधनों पर राज्यों का नियंत्रण होना चाहिए ऐसा राज्यों की मांग है l
- प्रशासनिक स्वायत्तता: शक्ति विभाजन को राज्यों के पक्ष में किया जाना चाहिए और राज्यों को अधिक महत्व के अधिकार और शक्तियां दी जानी चाहिए l
- सांस्कृतिक और भाषाई अधिकार: तमिलनाडु में हिंदी विरोध में पंजाब राज्य में पंजाबी और संस्कृत के प्रोत्साहन की मांग समय-समय पर उठती रही है l वहीं पूर्वोत्तर के राज्य अपनी संस्कृति को बनाए रखने की वकालत करते हैं l
राज्यपाल की भूमिका तथा राष्ट्रपति शासन
- केंद्र सरकार राज्य सरकारों की सहमति के बिना ही राज्य में राष्ट्रपति शासन राज्यपाल के द्वारा लागू कर सकती हैं l
- अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है l
- केंद्र सरकार के द्वारा अक्सर अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग का आरोप लगता रहा है l
नए राज्यों की माँग
- भारतीय संघवाद व्यवस्था में नए राज्य बनाने की मांग आजादी के समय से ही उठती रही हैं l
- यही कारण है आजादी के समय मात्र 14 राज्य हुआ करते थे
- जबकि 2020 में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं l
- देश की विविधता और विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को देखते हुए यह जरूरी था कि राज्यों का पुनर्गठन किया जाए l
- समय-समय पर राज्यों का पुनर्गठन होता आया है l
अंतर्राज्यीय विवाद
- संघीय व्यवस्था में संघवाद के अनके विवादो ने जन्म लिया l
- दो या दो से अधिक राज्यों के बीच आपसी विवाद के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं l
- भारत में विभिन्न मुद्दों जैसे नदी जल बंटवारे, सीमा विवाद आदि को लेकर राज्यों के बीच लंबे समय से विवाद देखने को मिलता है l
- कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच बेलगांव को लेकर विवाद लंबे समय से बना हुआ है l
- वहीं सर्वोच्च न्यायालय में कर्नाटक और तमिलनाडु में कावेरी जल को लेकर विवाद लंबे समय से चला आ रहा है l
संघवाद के विशिष्ट प्रावधान
- पूर्वोत्तर के राज्य तथा जम्मू-कश्मीर के लिए विशिष्ट प्रावधान किए गए हैं l
- संविधान के अनुच्छेद 370 द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष स्थिति प्रदान की गई थी l
- जैसे अलग संविधान अलग ध्वज
- भारतीय संसद राज्य सरकार की सहमति के बिना वहां पर आपातकाल नहीं लगा सकती है l
- आदि अधिकार जम्मू और कश्मीर को दिए गए इसका अन्य राज्य विरोध करते हैं l
- संविधान के अनुच्छेद 371 से 371(झ) तक में नागालैंड असम मणिपुर आंध्र प्रदेश
- सिक्किम मिजोरम अरुणाचल प्रदेश गोवा राज्य को विशिष्ट स्थिति प्रदान की गई है l
- हालांकि गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया है l
- वह अन्य राज्यों की तरह ही एक पूर्ण राज्य बन गया है l