स्थानीय शासन के इस अध्याय में पंचायती राज की संरचना, कार्य, और महत्त्व पर चर्चा की गयी है l राज्य वित्त आयोग का स्थानीय शासन में योगदान l दिन प्रतिदिन के राजनितिक निर्णय और कार्यों में इसकी बढ़ती भूमिका विकेंद्रीकरण का नया पर्याय बन चुकी है l
संदर्भ
भारत में यह मत रहा है कि स्थानीय निकाय केंद्र सरकार और राज्य सरकार की शक्तियों को कम करता है l यही कारण है कि भारत में स्थानीय शासन को जो महत्व मिलना चाहिए वह अब तक नहीं मिल पाया है l भारत में स्थानीय शासन के संरचना का मॉडल कुछ इस तरीके का है l स्थानीय शासन के पास अपने खुद के आय के संसाधन कम है l आय के सीमित संसाधन होने के बावजूद स्थानीय शासन का महत्व कम नहीं होता है l ऐसे बहुत से मौके आए जब यह देखने में आया कि स्थानीय स्तर पर कई मुद्दों को निपटाया गया l
स्थानीय शासन क्या और क्यों?
- गाँव और जिला स्तर की शासन को स्थानीय शासन कहते हैं l
- स्थानीय शासन आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन है l
- इसका मुख्य विषय है: आम नागरिक की समस्याएं और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी l
- इस प्रणाली की मान्यता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फैसला लेने के अनिवार्य घटक है l
- कारगर और जनहितकारी प्रशासन के लिए भी यह जरूरी है l
- स्थानीय शासन का फायदा यह है कि यह लोगों को सबसे नजदीक होता है l
- इस कारण उनकी समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से कम खर्चे में हो जाता है l
लोकतंत्र का प्रतीक: स्थानीय शासन
लोकतंत्र का अर्थ होता है सार्थक भागीदारी और जवाबदेही l जीवन तर मजबूत साथ स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्य पूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है l जो काम स्थानीय स्तर पर किए जा सकते हैं वह काम स्थानीय लोगों तथा उनके प्रतिनिधियों के हाथ में ही रहने चाहिए l आम जनता राज्य सरकार या केंद्र सरकार से कहीं ज्यादा स्थानीय समस्याओं और आवश्यकताओं से परिचित होती है l
भारत में स्थानीय शासन की शुरुआत
- भारत में स्थानिक शासन की शुरुआत प्राचीन काल से ही हो चुकी थी l
- प्राचीन भारत में अपना शासन खुद चलाने वाले समुदाय सभा के रूप में मौजूद थे l
- आधुनिक समय में इसकी शुरुआत ब्रिटिश काल में वायसराय लॉर्ड रिपन के समय 1882 से होती है l
- इस समय इसका नाम मुकामी बोर्ड था l भारत सरकार अधिनियम 1919 के लागू होने के पश्चात अनेक ग्राम पंचायतें बनी l
- जब संविधान निर्माण हुआ तब स्थानीय शासन का विषय राज्यों को सौंप दिया गया l
- संविधान के नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत इस को सम्मिलित किया गया था l
स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन का गठन
- 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के द्वारा इस क्षेत्र में एक प्रयास किया गया था l ग्रामीण विकास कार्यक्रम के तहत एक त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत की सिफारिश की गई थी l
- सबसे पहले आजाद भारत में पंचायती राज की परिकल्पना को बलवंत राय मेहता समिति के सिफारिशों के परिपेक्ष्य में देखा जा सकता है l
- बलवंत राय मेहता समिति ने जो सुझाव दिए उसे 1 अप्रैल 1958 से लागू कर दिया गया l
- 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में सबसे पहले स्थानीय शासन को लागू किया गया l
- इसके अगले ही साल आंध्र प्रदेश ने और फिर उसके अगले साल असम तमिलनाडु और कर्नाटक ने पंचायती राज को यहां लागू किया l
- परंतु सभी राज्यों ने इसे लागू नहीं किया l
- कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र और गुजरात में स्थानीय शासन पर कार्य किया गया l
- स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन की प्रक्रिया की शुरुआत सन 1987 सभी राज्यों के लिए जोर पकड़ने लगी l
- सन 1987 के बाद स्थानीय शासन की संस्थाओं के पुनरावलोकन की शुरुआत हुई l
स्थानीय शासन के अंतर्गत विषय
इसके अंतर्गत कुछ विषयों को शामिल किया गया है l इन विषयों को राज्य की राज्य सूची से लिया गया है l कुल मिलाकर 29 विषय चिन्हित किए गए हैं जिनको इसमें के अंतर्गत रखा गया है l
73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन
सन 1989 में पी के थुंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की l संविधान का 73वाँ और 74वाँ संशोधन सन 1992 में किया गया l संशोधन के द्इवारा संविधान में 11वीं और 12वीं अनुसूची जोड़ी गयी l सके अंतर्गत 73वें संशोधन के अंतर्गत गांव के स्थानीय शासन को मान्यता दी गई l जबकि 74वें संविधान संशोधन के तहत शहरी स्थानीय शासन को मान्यता प्रदान की गई l
ग्रामीण स्थानीय शासन को पंचायती राज भी कहा जाता है l आइए विस्तार से पंचायती राज अर्थात ग्रामीण स्थानीय शासन की संरचना की चर्चा करते हैं l
पंचायती राज की संरचना को समझने के लिए हमें इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करनी होगी l जो निम्नलिखित बिंदुओं के तहत समझे जा सकते हैं :
- त्रिस्तरीय ढांचा
- चुनाव प्रणाली
- चुनाव में आरक्षण
- राज्य निर्वाचन आयोग
- राज्य वित्त आयोग
त्रिस्तरीय ढांचा
संविधान संशोधन होने के पश्चात पंचायती राज की संरचना की एक निश्चित संरचना अस्तित्व में आई l पंचायती राज की संरचना को तीन विभिन्न चरणों में बांटा गया है l इसके आधार पर ग्राम सभा, द्वितीय पायदान पर ब्लॉक समिति और तृतीय पायदान पर जिला पंचायत होती है l पंचायती राज की संरचना पिरामिड नुमा बनाई गई है l जिसके पायदान पर ग्रामसभा और शीर्ष पर जिला परिषद होती है l
चुनाव प्रणाली
- पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता के द्वारा किए जाते हैं l
- निर्वाचित सदस्यों की कार्यकाल की अवधि 5 वर्ष की होती है l
- पंचायती राज की संस्थाओं के तीनों अस्त्रों के चुनाव का नियंत्रण एवं निरीक्षण राज्य निर्वाचन आयोग करता है l
आरक्षण की व्यवस्था
- पंचायती राज में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की गई है l
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान किया गया है l
- यह राज्य सरकार पर निर्भर है वह चाहे तो अन्य पिछड़ा वर्ग को भी आरक्षण दे सकती है l
- आरक्षण के लाभ के फलस्वरूप यह देखने में आया पंचायती राज की राजनीति में महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई है l
प्रारंभ में भारत के अनेक प्रदेशों की आदिवासी जनसंख्या को स्थानीय शासन से 73वें संविधान संशोधन के प्रावधानों से अलग रखा गया था l लेकिन 1996 में कानून बनाकर उनको भी पंचायती राज के प्रावधानों में सम्मिलित किया गया l
राज्य निर्वाचन आयोग
- राज्य निर्वाचन आयोग प्रत्येक राज्य में होता है l
- भारत के निर्वाचन आयोग से राज्य निर्वाचन आयोग का कोई संबंध नहीं है l
- हालांकि राज्य निर्वाचन आयोग भी एक संवैधानिक संस्था है l
- इसका गठन संविधान के अनुच्छेद 243 K के तहत किया गया है l
- इसकी स्थापना सन 1994 में की गई थी l
- राज्य निर्वाचन आयोग में एक आयुक्त और एक सचिव होता है l
- इसका प्रमुख राज्य निर्वाचन आयुक्त होता है
राज्य निर्वाचन आयुक्त कार्यकाल
- राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है l
- वह अपने पद पर 65 वर्ष की आयु तक बना रह सकता है l
- 5 वर्ष या 65 वर्ष आयु जो भी पहले हो उसके अनुसार पद छोड़ना पड़ता है l
- पद पर रहते हुए राज्य निर्वाचन आयुक्त के कार्यकाल में कोई कटौती नहीं की जा सकती l
- राज्य के निर्वाचन आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान है l
मुख्य कार्य
- राज्य निर्वाचन आयोग किसी राज्य में स्थानीय शासन के निकायों के चुनाव करवाता है l
- स्थानीय शासन के अंतर्गत पंचायती राज और नगर पालिकाओं के चुनावों पर अधीक्षण निर्देशन और नियंत्रण रखता है l
राज्य वित्त आयोग
सन 1993 से संविधान के अनुच्छेद 280 I(आई) के तहत सभी राज्यों में वित्त आयोग का गठन किया जाएगा l वित्त आयोग में एक अध्यक्ष और 4 सदस्य होते हैं l जिसमें 2 सदस्य पूर्णकालिक और दो अंशकालिक होते हैं l वित्त आयोग का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है l प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात वित्त आयोग का गठन किया जाता है l
वित्त आयोग के प्रमुख कार्य
- वित्त आयोग प्रदेश में मौजूद स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति का जायजा लेता है l
- यह आयोग प्रदेश और स्थानीय शासन की व्यवस्थाओं के बीच वित्तीय संसाधनों के बंटवारे पर सुझाव देता है l
- दूसरी तरफ शहरी और ग्रामीण स्थानीय शासन की संस्थाओं के बीच राज्य के बंटवारे का पुनरावलोकन करेगा l
- इसकी पहल के द्वारा यह सुनिश्चित किया गया है कि ग्रामीण स्थानीय शासन को धन आवंटित करना राजनीतिक मसला ना बने l
- यह राज्य और स्थानीय निकायों के बीच वित्तीय संतुलन बनाने की कोशिश करता है l
राज्य वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिशें
- राज्यों के द्वारा लगाए गए करो, टोल टैक्स और अन्य प्रकार के करो के द्वारा प्राप्त आय को स्थानीय निकायों और राज्यों के बीच आवंटन की सिफारिश करता है l
- राज्यों के आय में से कितना भाग स्थानीय निकायों को दिया जा सकता है
- इसकी सिफारिश राज्य वित्त आयोग करता है l
- स्थानीय निकायों को कितना अनुदान दिया जाए इस पर भी सुझाव राज्य वित्त आयोग देता है l
भारत में 74वें संविधान संशोधन का लागू होना l
74वें संविधान संशोधन शहरी निकायों के लिए किया गया है l शहरों में नगर निगम और नगर पालिकाओं के द्वारा इसे लागू किया जाता है l सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 31.16 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में निवास करती है l भारत की जनगणना 2011 के अनुसार शहरी परिभाषा के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को जरूरी माना गया है:
- कम से कम 5000 की जनसंख्या हो l
- काम करने वालों में कम से कम 75% लोग गैर कृषि कार्य में लगे हो l
- जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो l
शहरी निकाय के कुछ आँकड़ें
- भारत में जनगणना 2011 के अनुसार 3842 स्थानीय नगर निकाय हैं l
- 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में कुल 4041 नगरपालिकाएँ हैं l
- शहरी भारत में 205 नगर निगम 3255 नगरपालिका है l
- हर 5 वर्ष पश्चात इन निकायों के लिए चुनाव किया जाता है l
- स्थानीय निकाय के चुनाव के कारण निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है
स्थानीय शासन के चुनाव में लाखों प्रतिनिधि जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते है l इसमें महिलाओं और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए सीटे आरक्षित होती है l स्थानीय शासन में महिलाओं को आरक्षण मिलने से उनकी राजनितिक नेतृत्व की क्षमता का पता चलता है l