जन आन्दोलनों का उदय
कक्षा 12 राजनीति विज्ञान
नोट्स
जन आन्दोलन
- लोगो के द्वारा अपनी या सामूहिक समस्याओं के लिए चलाये गए आन्दोलनों को जन आन्दोलन कहा जाता है l
- जन आन्दोलन की प्रकृति राजनितिक आन्दोलनों से भिन्न होती है l
- यहाँ लोग अपने ऊपर होने वाले अत्याचार या अन्याय के खिलाफ आन्दोलन करते है l
- ऐसे अनेक आन्दोलन सत्तर और अस्सी के दशक में भारत के कई क्षेत्रों में देखने को मिले l
चिपको आन्दोलन
- चिपको आन्दोलन की शुरुआत उत्तराखंड के दो तीन गावों से हुई थी l
- गाँव को वनों को साफ करके खेत बनाने की इजाजत न देकर एक खेल के उपकरण बनाने वाली कंपनी को दे दी गयी l
- जिससे गाँव के लोगो ने कड़ा विरोध किया और पेड़ों के काटने का विरोध किया l
- लोगो पेड़ों को कटने से बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गए l इसलिए इस आन्दोलन का नाम चिपको आन्दोलन पड़ा l
- धीरे धीरे यह आन्दोलन पूरे उत्तराखंड में फ़ैल गया और इस आन्दोलन को विश्व प्रसिद्धी मिली l
चिपको आन्दोलन का परिणाम
चिपको आन्दोलन के कारण सरकार को पेड़ों के कटने पर रोक लगानी पड़ी l 15 वर्षो के लिए पूरे क्षेत्र में पेड़ों के कटने पर रोक लगा दी गयी l
दल आधारित आन्दोलन
- पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और बिहार के कुछ भागो में कुछ मजदूर और किसानों ने हिंसक विरोध पध्यती अपनाई l
- इन लोगो ने मार्क्सवादी लेनिनवादी कम्युनिष्ट पार्टी के नेतृत्व ने सशस्त्र विद्रोह किया l
- ये लोग आज भी छतीसगढ़ बिहार और बंगाल के कुछ क्षेत्रों में आज भी सक्रीय है l आज इस समूह को नक्सलवादी के नाम से जाना जाता है l
राजनितिक दलों से स्वतंत्र आन्दोलन
- ये ऐसे आन्दोलन थे जिसमे राजनितिक दल सक्रीय नहीं थे अपितु इसमें आम जनता और स्वयंसेवी संगठन ने हिस्सा लिया l
- राजनितिक पार्टियों से आम जनता का मोह भंग हो गया था l लोकतान्त्रिक संस्थाओ में आम जनता का विश्वास उठा गया था l
- सामाजिक और राजनितिक कार्यकर्ता आगे आये और उन्होंने दलितों और गरीबो को लामबंद करना शुरू किया l
- दलित और गरीब वे लोग थे जिन्हें आज़ादी के बाद हुए आर्थिक और सामाजिक विकास को कोई लाभ नहीं हुआ l ये लोग समाज में हासिये पर था l
- धीरे-धीरे इन समूहों ने संगठन बनाने शुरू किये और इन्हें किसी राजनितिक पार्टी से कोई सहायता नहीं मिलती थी l इसलिए इन्हें स्वयंसेवी संगठन कहा गया l
दलित पैंथर्स
- दलित पैंथर्स का गठन मुंबई महाराष्ट्र में सन 1972 में किया गया था l
- यह संस्था एक सामाजिक राजनीतिक संगठन था l रामदेव ढसाल और राजा ढाले इस संगठन के प्रमुख नेता थे l
- दलित पैंथर्स ने दलितों और गरीबों पर हो रहे अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई l
- दलितों के साथ होने वाले भेदभाव और छुआछुत को समाप्त करने और समाज में बराबरी का दर्जा प्राप्त करने के लिए लोगो को जागरूक किया l
- कुछ शहरी दलित छात्रों ने इस संगठन की स्थापना की थी l धीरे धीरे यह संगठन पूरे महाराष्ट्र में फ़ैल गया l
- दलित पैंथर्स ने राजनितिक गतिविधियों में भाग लिया परन्तु उसे सफलता नहीं मिली l
- दलित पैंथर्स ने राजनितिक समझौते किया और अंत में यह टूट का शिकार हो गई l
- इस संगठन के लगातार विरोध प्रदर्शन के चलते सरकार ने 1989 में एक व्यापक कानून के अंतर्गत दलित पर अत्याचार करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया l
- दलित पैंथर्स का मुख्य उद्देश्य जाति प्रथा को समाप्त करना, भूमिहीन गरीब किसानों, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सरे वंचित वर्गों का एक संगठन खड़ा करना था l
भारतीय किसान यूनियन B.K.U.
- भारतीय किसान यूनियन पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक किसान संगठन था l जिसके मुखिया महेंद्र सिंह टिकैत थे l
- भारतीय किसान यूनियन किसानों के हितो की रक्षा के लिए और कृषि के विकास के लिए संघर्ष कर रहा है l
- बी के यू सबसे पहले किसानों के लिए बिजली की दरों में बढ़ोतरी को लेकर धरना प्रदर्शन किया और अपनी बात मनवाई l
- उदारीकरण के कारण कृषि को संकट का सामना करना पड़ रहा है l
- भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहू के सरकारी खरीद मूल्य में वृद्धि करने, कृषि उत्पादों के अंतर्राजीय आवाजाही पर लगी पाबंदिया हटाने की मांग की l
- समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने किसानो के बकाया कर्ज माफ़ करने की मांग की l
ताड़ी विरोधी आन्दोलन
- यह आन्दोलन ताड़ी जो की एक प्रकार का नशा पेय पदार्थ है के विरोध में सबसे पहले आंध्र प्रदेश में शुरू किया गया था l
- नेल्लोर जिले के एक छोटे से गाँव दुबरगन्टा में सन 1990 में महिलाओं के द्वारा किया गया था l यह सभी महिलाये प्रौढ़ शिक्षा केंद्र जाती थी l
- ग्रामीण पुरुषों को ताड़ी और शराब की लत लग चुकी थी जिससे वे मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो गए थे l
- नशे की लत के चलते आर्थिक तंगी होती थी और महिलाओं को अधिक परेशानियों का सामना करना पढता था l
- परिवार में तनाव और मारपीट का माहौल रहने लगा था l
- लगभग 5000 गाँव की महिलाओं ने ताड़ी विरोधी आन्दोलन में भाग लिया और ताड़ी पर पूर्ण प्रतिबन्ध की मांगी की l
- परिणाम स्वरुप सरकार ने ताड़ी पर प्रतिबन्ध सम्बन्धी प्रस्ताव पास करके जिला कलेक्टरेट को भेज दिया l
परिणाम
- ताड़ी की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया l
- महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और घरेलु हिंसा जैसे मुद्दे अब समाज में चर्चित होने लगे l
- लैंगिक समानता और घरेलु तथा बाहरी यौन उत्पीडन का मामला अब सामाजिक परिवर्तन मुद्दा बन गया l
- इस आन्दोलन के कारण महिलाओं की सामाजिक स्थिति में परिवर्थान की शुरुआत हुई l
- महिलाओं के आवाज़ उठाने से सरकार ने 1992 में संसद में पारित स्थानीय शासन में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी l
- अब महिलाये सरपंच बन सकती थी और उनको समाज में आगे बढ़ने के और अवसर मिलने लगे l
नर्मदा बचाओ आन्दोलन
- नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध का शिलान्यास 5 अप्रैल 1961 में किया गया था l यह डैम दुनिया का सबसे बड़ा दम है l
- नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 मझोले और 300 छोटे छोटे बांध बनाने का प्रस्ताव बनाया गया l
- नर्मदा नदी को बचने के लिए नर्मदा बचाओं आन्दोलन चलाया गया l
- योजना इतनी बड़ी थी की प्रस्तावित बांध बनाने से 245 गाँव इसके दूब क्षेत्र में आ रहे थे l
- प्रभावित गाँव के करीब 2.5 लाख लोगो ने पुनर्वास की मांग उठाई l 1988-89 में गाँव के लोगो के साथ साथ कई स्वयंसेवी संगठन भी इस आन्दोलन में शामिल हो गये l
पक्ष
- इस परियोजना के पूरा होने से तीन राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश को बहुत लाभ होगा l
- बांध बनने से पीने के पानी और सिंचाई के साधन विकसित होंगे l
- बिजली के उत्पादन से बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित होगी और कृषि उपज और गुणवत्ता में वृद्धि होगी l
- बांध बनाने से सुखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं पर अंकुश लगाने पर मदद मिलेगी l
विपक्ष
- विरोधियों का कहना है की इससे पर्यावरण को बहुत बड़े स्तर पर नुकसान होगा l
- लगभग 245 गाँव इसके डूब क्षेत्र में आ जाने की वजह से उनके सामने पुनर्वास की समस्या कड़ी हो गयी है l
- इससे हजारो लोगो के आजीविका, पर्यावास, संस्कृति और पर्यावरण पर बहुत बूरा प्रभाव पड़ा है l
- नदी के पारिस्थिकी तंत्र को क्षति हुई है l
जन आन्दोलन
- लोगो के द्वारा अपनी या सामूहिक समस्याओं के लिए चलाये गए आन्दोलनों को जन आन्दोलन कहा जाता है l
- जन आन्दोलन की प्रकृति राजनितिक आन्दोलनों से भिन्न होती है l
- यहाँ लोग अपने ऊपर होने वाले अत्याचार या अन्याय के खिलाफ आन्दोलन करते है l
- ऐसे अनेक आन्दोलन सत्तर और अस्सी के दशक में भारत के कई क्षेत्रों में देखने को मिले l
चिपको आन्दोलन
- चिपको आन्दोलन की शुरुआत उत्तराखंड के दो तीन गावों से हुई थी l
- गाँव को वनों को साफ करके खेत बनाने की इजाजत न देकर एक खेल के उपकरण बनाने वाली कंपनी को दे दी गयी l
- जिससे गाँव के लोगो ने कड़ा विरोध किया और पेड़ों के काटने का विरोध किया l
- लोगो पेड़ों को कटने से बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गए l इसलिए इस आन्दोलन का नाम चिपको आन्दोलन पड़ा l
- धीरे धीरे यह आन्दोलन पूरे उत्तराखंड में फ़ैल गया और इस आन्दोलन को विश्व प्रसिद्धी मिली l
चिपको आन्दोलन का परिणाम
चिपको आन्दोलन के कारण सरकार को पेड़ों के कटने पर रोक लगानी पड़ी l 15 वर्षो के लिए पूरे क्षेत्र में पेड़ों के कटने पर रोक लगा दी गयी l
दल आधारित आन्दोलन
- पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और बिहार के कुछ भागो में कुछ मजदूर और किसानों ने हिंसक विरोध पध्यती अपनाई l
- इन लोगो ने मार्क्सवादी लेनिनवादी कम्युनिष्ट पार्टी के नेतृत्व ने सशस्त्र विद्रोह किया l
- ये लोग आज भी छतीसगढ़ बिहार और बंगाल के कुछ क्षेत्रों में आज भी सक्रीय है l आज इस समूह को नक्सलवादी के नाम से जाना जाता है l
राजनितिक दलों से स्वतंत्र आन्दोलन
- ये ऐसे आन्दोलन थे जिसमे राजनितिक दल सक्रीय नहीं थे अपितु इसमें आम जनता और स्वयंसेवी संगठन ने हिस्सा लिया l
- राजनितिक पार्टियों से आम जनता का मोह भंग हो गया था l लोकतान्त्रिक संस्थाओ में आम जनता का विश्वास उठा गया था l
- सामाजिक और राजनितिक कार्यकर्ता आगे आये और उन्होंने दलितों और गरीबो को लामबंद करना शुरू किया l
- दलित और गरीब वे लोग थे जिन्हें आज़ादी के बाद हुए आर्थिक और सामाजिक विकास को कोई लाभ नहीं हुआ l ये लोग समाज में हासिये पर था l
- धीरे-धीरे इन समूहों ने संगठन बनाने शुरू किये और इन्हें किसी राजनितिक पार्टी से कोई सहायता नहीं मिलती थी l इसलिए इन्हें स्वयंसेवी संगठन कहा गया l
दलित पैंथर्स
- दलित पैंथर्स का गठन मुंबई महाराष्ट्र में सन 1972 में किया गया था l
- यह संस्था एक सामाजिक राजनीतिक संगठन था l रामदेव ढसाल और राजा ढाले इस संगठन के प्रमुख नेता थे l
- दलित पैंथर्स ने दलितों और गरीबों पर हो रहे अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई l
- दलितों के साथ होने वाले भेदभाव और छुआछुत को समाप्त करने और समाज में बराबरी का दर्जा प्राप्त करने के लिए लोगो को जागरूक किया l
- कुछ शहरी दलित छात्रों ने इस संगठन की स्थापना की थी l धीरे धीरे यह संगठन पूरे महाराष्ट्र में फ़ैल गया l
- दलित पैंथर्स ने राजनितिक गतिविधियों में भाग लिया परन्तु उसे सफलता नहीं मिली l
- दलित पैंथर्स ने राजनितिक समझौते किया और अंत में यह टूट का शिकार हो गई l
- इस संगठन के लगातार विरोध प्रदर्शन के चलते सरकार ने 1989 में एक व्यापक कानून के अंतर्गत दलित पर अत्याचार करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया l
- दलित पैंथर्स का मुख्य उद्देश्य जाति प्रथा को समाप्त करना, भूमिहीन गरीब किसानों, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सरे वंचित वर्गों का एक संगठन खड़ा करना था l
भारतीय किसान यूनियन B.K.U.
- भारतीय किसान यूनियन पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक किसान संगठन था l जिसके मुखिया महेंद्र सिंह टिकैत थे l
- भारतीय किसान यूनियन किसानों के हितो की रक्षा के लिए और कृषि के विकास के लिए संघर्ष कर रहा है l
- बी के यू सबसे पहले किसानों के लिए बिजली की दरों में बढ़ोतरी को लेकर धरना प्रदर्शन किया और अपनी बात मनवाई l
- उदारीकरण के कारण कृषि को संकट का सामना करना पड़ रहा है l
- भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहू के सरकारी खरीद मूल्य में वृद्धि करने, कृषि उत्पादों के अंतर्राजीय आवाजाही पर लगी पाबंदिया हटाने की मांग की l
- समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने किसानो के बकाया कर्ज माफ़ करने की मांग की l
ताड़ी विरोधी आन्दोलन
- यह आन्दोलन ताड़ी जो की एक प्रकार का नशा पेय पदार्थ है के विरोध में सबसे पहले आंध्र प्रदेश में शुरू किया गया था l
- नेल्लोर जिले के एक छोटे से गाँव दुबरगन्टा में सन 1990 में महिलाओं के द्वारा किया गया था l यह सभी महिलाये प्रौढ़ शिक्षा केंद्र जाती थी l
- ग्रामीण पुरुषों को ताड़ी और शराब की लत लग चुकी थी जिससे वे मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो गए थे l
- नशे की लत के चलते आर्थिक तंगी होती थी और महिलाओं को अधिक परेशानियों का सामना करना पढता था l
- परिवार में तनाव और मारपीट का माहौल रहने लगा था l
- लगभग 5000 गाँव की महिलाओं ने ताड़ी विरोधी आन्दोलन में भाग लिया और ताड़ी पर पूर्ण प्रतिबन्ध की मांगी की l
- परिणाम स्वरुप सरकार ने ताड़ी पर प्रतिबन्ध सम्बन्धी प्रस्ताव पास करके जिला कलेक्टरेट को भेज दिया l
परिणाम
- ताड़ी की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया l
- महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और घरेलु हिंसा जैसे मुद्दे अब समाज में चर्चित होने लगे l
- लैंगिक समानता और घरेलु तथा बाहरी यौन उत्पीडन का मामला अब सामाजिक परिवर्तन मुद्दा बन गया l
- इस आन्दोलन के कारण महिलाओं की सामाजिक स्थिति में परिवर्थान की शुरुआत हुई l
- महिलाओं के आवाज़ उठाने से सरकार ने 1992 में संसद में पारित स्थानीय शासन में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी l
- अब महिलाये सरपंच बन सकती थी और उनको समाज में आगे बढ़ने के और अवसर मिलने लगे l
नर्मदा बचाओ आन्दोलन
- नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध का शिलान्यास 5 अप्रैल 1961 में किया गया था l यह डैम दुनिया का सबसे बड़ा दम है l
- नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 मझोले और 300 छोटे छोटे बांध बनाने का प्रस्ताव बनाया गया l
- नर्मदा नदी को बचने के लिए नर्मदा बचाओं आन्दोलन चलाया गया l
- योजना इतनी बड़ी थी की प्रस्तावित बांध बनाने से 245 गाँव इसके दूब क्षेत्र में आ रहे थे l
- प्रभावित गाँव के करीब 2.5 लाख लोगो ने पुनर्वास की मांग उठाई l 1988-89 में गाँव के लोगो के साथ साथ कई स्वयंसेवी संगठन भी इस आन्दोलन में शामिल हो गये l
पक्ष
- इस परियोजना के पूरा होने से तीन राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश को बहुत लाभ होगा l
- बांध बनने से पीने के पानी और सिंचाई के साधन विकसित होंगे l
- बिजली के उत्पादन से बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित होगी और कृषि उपज और गुणवत्ता में वृद्धि होगी l
- बांध बनाने से सुखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं पर अंकुश लगाने पर मदद मिलेगी l
विपक्ष
- विरोधियों का कहना है की इससे पर्यावरण को बहुत बड़े स्तर पर नुकसान होगा l
- लगभग 245 गाँव इसके डूब क्षेत्र में आ जाने की वजह से उनके सामने पुनर्वास की समस्या कड़ी हो गयी है l
- इससे हजारो लोगो के आजीविका, पर्यावास, संस्कृति और पर्यावरण पर बहुत बूरा प्रभाव पड़ा है l
- नदी के पारिस्थिकी तंत्र को क्षति हुई है l