मेरा इतिहास : CBSE

मेरा इतिहास : CBSE: मेराइतिहास एक वेबसाइट है जिसमे आपको कक्षा 12 हिंदी इतिहास के बारे में सभी जानकारी उपलब्ध करवाता है l मुख्य रूप से इतिहास पर फोकस यह वेबस…

कक्षा 12 इतिहास 

NCERT SOLUTIONS 

इंटें मनके अस्थियाँ 
राजा किसान और नगर 
बंधुत्व जाति और वर्ग 
विचारक विश्वास और इमारतें 
यात्रियों की नज़रिए 
भक्ति सूफ़ी परम्पराएँ 
एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर 
किसान जमीनदार और राज्य 
राजा और विभिन्न वृतांत 
उपनिवेशवाद और देहात 
विद्रोही और राज 
औपनिवेशिक शहर 
महात्मा गाँधी और राष्ट्रिय आन्दोलन 
विभाजन को समझना 
संविधान का निर्माण 

अध्याय:15 संविधान का निर्माण

NCERT SOLUTION CLASS XII HISTORY IN HINDI
अध्याय:15 संविधान का निर्माण

1.उद्देश्य प्रस्ताव में किन आदर्शों पर जोर दिया था ?
उत्तर:उद्देश्यप्रस्तावमेंनिम्नआदर्शोंपरजोरदियाथा:
1.      13 दिसम्बर, 1946 को जवाहर लाल नेहरु ने संविधान सभा के सामने “उद्देश्य प्रस्ताव” प्रस्तुत किया l यह एक ऐतिहासिक प्रस्ताव था जिसमें आजाद भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रुपरेखा पेश की गई थी l
2.      इसप्रस्तावना में भारतकोस्वतंत्र सम्प्रभु गणतंत्र घोषित किया गया थाl नये संविधान की प्रस्तावना में देश के सभी नागरिकों को न्याय, समानता व स्वतंत्रता का भी भरोसा दिया गया था l
3.      संविधान की प्रस्तावना में यह भी वायदा किया गया था की अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्रों एंव दलित और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त रक्षात्म प्रावधान भी किए जाएँगे l

2.विभिन्न समूह ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को किस तरह परिभाषितकर रहे थे ?
उत्तर:
1.      कुछ लोग मुसलमानों को ही अल्पसंख्यक कह रहे थे उनके अनुसार उनका धर्म रीती-रिवाज आदि हिंदुओं से बिलकुल अलग है l
2.      कुछ लोग दलित वर्ग के लोगों को हिंदुओं से अलग करके देख रहे थे और वह उनके लिए अधिक स्थानों का आरक्षण चाहते थे l
3.      कुछ लोग आदिवासियों को मैदानी लोगों से अलग देखकर आदिवासियों को अलग आरक्षण देना चाहते थे l
4.      सिख लीग के कुछ सदस्य सिख धर्म में अनुयायियों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने और अल्पसंख्यक को सुविधाएँ देने की माँग कर रहे थे l

3.प्रोतों के लिए ज्यादा शक्तियों के पक्ष में क्या तर्क दिए गए ?
उत्तर:
1.      सन्तनम का प्रथम तर्क : राज्यों के अधिकारों की सबसे शक्तिशाली हिमायत मद्रास के सदस्य केसन्तनम ने पेश की l उन्होंने कहा की केवल राज्यों को बल्कि केंद्र को मजबूत बनाने के लिए भी शक्तियों का पुनर्वितरण जरुरी है l “यह दलील एक जिद से बन गई है की तमाम शक्तियाँ केंद्र को सौंप देने से वह मजबूत हो जाएगा l” सन्तनम ने इसे एक गलतफहमी बताई l
2.      सन्तनम का दूसरा तर्क: जहाँ तक राज्यों का सवाल है, सन्तनम का मानना था की शक्तियों का मौजूदावितरण उनको पंगु बना देगा l राजकौशीय प्रावधान प्रांतों को खोखला कर देगा क्योंकि भूराजस्व के आलावा ज्यादातर कर केंद्र सरकार के अधिकार में दे दिए गए हैं l यदि पैसा ही नही होगा तो राज्यों में विकास परियोजनाएँ कैसे चलेंगी l
3.      सन्तनम का तृतीय तर्क: सन्तनम नेकहाकी अगर पर्याप्त जाँच-पड़ताल किए बिना शक्तियों का पक्षतावित वितरण लागू किया गया तो हमारा भविष्य अंधकार में पड़ जाएगा l उन्होंने कहा की कुछ ही सालों में सारे प्रांत “केन्द्र के विरुद्ध” उठ खड़े होंगे l

4.महात्मा गाँधी को एसा क्यों लगता है की हिन्दुस्तानी राष्ट्रिय भाषा होनी चाहिए ?
उत्तर:
1.      गाँधीजी जी मानते थे की हिन्दुस्तानी भाषा में हिंदी के साथ साथ उर्दू भी शामिल है और ये दो भाषाएँ मिलकर हिन्दुस्तानी भाषा हैं l
2.      वह हींदु और मुसलमान दोनों केद्वारा प्रयोग में लाई जाती है और दोनों की संख्या अन्य भाषाओकी तुलना में अधिक है l यह हिंदू और मुसलमानों के साथ-साथ उत्तर और दक्षिण से भी खूब प्रयोग में लाई जाती है l
3.      गाँधी जी यह जानते थे की हिंदी में संस्कृत और उर्दू में संस्कृत के साथ-साथ अरबी फारसी के शब्द मध्यकाल से प्रयोग हो रहे हैं राष्ट्रिय आंदोलन के दौरान कांग्रेस ने भी यह मान लिया था की राष्ट्रभाषा हिंदुस्तानी ही बन सकती है l

5.वे कौन-सी ऐतिहासिक ताकतें थीं जिन्होंने संविधान का स्वरूप तय किया l
उत्तर:
1.      कांग्रेस पार्टी देश की एक प्रमुख राजनैतिक ताकत थी जिसने देश के संविधान को लोकतांत्रिक गणराज्य, धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने में भूमिका अदा की थी l
2.      मुस्लिम लीग ने देश का बँटवारा किया लेकिन उदारवादी मुसलमान और वे मुस्लिम जो भारत के विभाजन के विरोधी थे उन्होंने भी भारत को धर्म निरपेक्ष बनाए रखने तथा सभी नागरिकों को अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक पहचान बनाए रखने में संविधान के माध्यम से आश्वस्त किया l
3.      जो नेता दलित या तथाकथित दलित और हरिजनों के पक्षधर थे उन्होंने संविधान को कमजोर वर्गों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता और अन्याय दिलाने वाला, आरक्षण की व्यवस्था करने वाला, छुआछूत का उन्मूलन करने वाला स्वरूप प्रदान करने में योगदान दिया l

6.दलित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावों पर चर्चा कीजिए l
उत्तर: दलित समूहों की सुरक्षा में विभिन्न दावे किए गए :
1.      राष्ट्रिय आंदोलन के दौरान ङॉ. भीमराव अंबेडकर ने दलित जातियों के लिए पृथक जातियों की माँग की थी जिसकी महात्मा गाँधी ने यह कहते हुए खिलाफत की थी की ऐसा करने से यह समाज स्थायी रूप से शेष समाज से कट जाएगा l 
2.      संविधान सभा में बैठें दलित जातियों के कुछ प्रतिनिधि सदस्यों का आग्रह था की अस्पृश्यों की समस्या को केवल संरक्ष्ण और बचाव से हल नहीं किया जा सकता l उनकी अपंगता के पिे जाती विभाजन समाज के समाजिक कायदे कानूनों और नैतिक मूल्य मान्यताओं का हाथ है l समाज ने उनकी सेवाओं और श्रम का उपयोग किया है लेकिन उन्हें सामाजिक तौरपर अपने से दूर रखा गया है l
3.      दलित जातियों के प्रतिनिधि सदस्य जो नागप्पा ने अपने समुदाय के लोगों के पक्ष में कहा था की हम सदा कष्ट उठाते रहे हैं पर अब कष्ट उठाने को तैयार नही हैं l हमें आपकी जिम्मेदारियों का अहसास हो गया है l हमें मालूम है की अपनी बात कैसे मनवानी है l

7.संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने उस समय की राजनितिक का परिस्थति और एक मजबूत केंद्र सरकार की जरूरत के बीच क्या संबंध देखा ?
उत्तर:
1.      संविधान सभा में प्रान्तों के अधिक शक्तिशाली भाग से सभा में तीसरी प्रतिक्रिया सामने आने लगी l वे लोग देश की राजनितिक परिस्थतियों को देखकर एक केंद्र सरकार की आवश्यकता को रेखांकित करने लगे l
2.      ड्राफ्ट कमेटी के चेयरमेन डॉ.बी.आर. अम्बेडकर ने पहले ही घोषणा की थी के वे एक शक्तिशाली और एकीकृत केंद्र 1935 के इंडियन एक्ट के तहत तब से ही देश में एक शक्तिशाली केंद्र चाहते थे l
3.      सन 1946और 47में जो देश के विभिन्न भागों और उनकी सडकों पर साम्प्रदायिकदंगों और हिंसा के दृश्य दिखाई दे रहे उससे देश के टुकड़े-टुकड़े हो रहे थे उसका हवाला देते हुए बहुत सारे सदस्यों ने बार-बार यह कहाकी केंद्र की शक्तियों में अत्यधिक बढ़ोतरी होनी चाहिए ताकि वह सख्त हाथों से देश में हो रही साम्प्रदायिक हिंसा की रोक सके l
4.      प्रान्तों के लिए जो लोग ज्यादा शक्ति और अधिकारों की माँग कर रहे थे उन्हें उत्तर देते हुए गोपाल स्वामी आयर ने कहाकेंद्र आधिक से अधिक सुदृढ़ होना चाहिएl
5.      इसी संदर्भ में संयुक्त प्रांत के एक सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने इस बात पर जोर डाला की केंद्र का शक्तिशाली होना आवश्यक है ताकि वहसम्पूर्ण देश के हित में योजना बना सके, उपलब्ध आर्थिक संसाधनों को जूटा सके l एक उचित शासन व्यवस्था स्थापित कर सके तथा ऐसी परिस्थति में या देश बाहरी आक्रमणों का शिकार हो जाए तो वह मजबूती से देश को विदेशी हमलों से बचा सके l

8.संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिए क्या रास्ता निकाला ?
उत्तर: भाषा के विवाद को हल करनेकेलिएनिम्नलिखितउपायनिकालेगए।
1.      भारत प्रारंभ से ही एक बहुत भाषा-भाषी देश है l देश के विभिन्न प्रांतों और हिस्सों में लोग अलग-अलग भाषाओँ का प्रयोग करते हैं, जिस समय संविधान सभा के समक्ष राष्ट्र की भाषा का मामला आया तो इस मुद्दे पर अनेक महीनों तक गर्म-गर्म बहस हुई, कई बार काफी तनाव पैदा हुए l
2.      आजादी से पूर्व 1930 के दशक तक भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने यह स्वीकार कर लिया था की हिंदुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिल जायगा l राष्ट्रपति महात्मा गाँधी का मानना था की प्रत्येक भारतीय को एक ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे लोग आसानी से समझ सकें l हिंदी और उर्दू के मेल से बनी हिन्दुस्तानी भाषा भारतीय जनता की बहुत बड़े हिस्से की भाषा थी और अनेक संस्कृतियों के आदान प्रदान से समृद्ध हुई एक साझी भाषा थी l
3.      जैसे जैसे समय बिता, हिन्दुस्तानी भाषा ने अनेक प्रकार के स्रोतों ने नए-नए शब्दों कोअपने में समा लिए और उसे आजादी के आने तक बहूत सारे लोग समझने लगे l गाँधी जी को ऐसा लगता था की यही भाषा देश के समुदायों के बिच विचार-विमर्श का माध्यम बन सकती है l यह हिंदू और मुसलमानों को एक जुट कर सकती है l

अध्याय:14 विभाजन को समझाना

NCERT SOLUTION CLASS XII HISTORY IN HINDI
अध्याय:14 विभाजन को समझाना

1.1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की ?
उत्तर : 1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने माँग कि की उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुत इलाकों के लिए सिमित स्वायत्ता की माँग करते हुए प्रस्ताव पेश किया l इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का उल्लेख नहीं था l बल्कि, इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री और युनियनिष्ट पार्टी के नेता सिकंदर हयात खान ने 1 मार्च 1941 को पंजाब असेम्बली को संबोधित करते हुए घोषणा की थी की वह एसें पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें यहाँ मुस्लिम राज बाकि हिंदू राज होगा l अगर पाकिस्तान का मतलब यह है की पंजाब में खालिस मुस्लिम राज कायम होने वाला है तो मेरा उससे कोई वास्ता नहीं है l

2.कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था की बँटवारे बहुत अचानक हुआ ?
उत्तर :प्रारंभ में मुस्लिम लीग के नेताओं ने भी एक संप्रभु राज्य के रूप में पाकिस्तान की माँग खास संजीदगी से नहीं उठाई थी l प्रारंभमें शायद खुद जिन्ना की पाकिस्तान की सोच को सौदेबाजी में एक पैतेरे के तौर पर प्रयोग कर रहे थे l जिसका की वे सरकार के जरिए कांग्रेस को मिलने वाली रियासतों पर रोक लगाने और मुसलमानों के लिए और रियासतें प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे l
पाकिस्तान के बारे में अपनी माँग पर मुस्लिम लीग की राय पूरी तरह सपष्ट नहीं थी l उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुत क्षेत्रों के लिए सिमित स्वायत्तता की माँग से विभाजन होने के बिच ही कम समय केवल सात साल रहे l

3. आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे ?
उत्तर :विभाजन के बारे में लोग यह सोचते थे की यह विभाजन स्थायी नही होगा अथवा शांति और कानून व्यस्था बहाल के बाद तो सभी लोग अपने मूल स्थान, गाँव, कस्बा या शहर अथवा राज्य में वापस लौट आएँगे l
वे मानते थे की पाकिस्तान के गठन का मतलब यह नहीं होगा की जो लोग एक देश के एक हिस्से से दुसरे हिस्से जाएँगे तो उनके साथ बाद में भी कठोरता होगी उन्हें बीजा और पासपोर्ट जरुरी प्राप्त करना होगा l
जो लोग गंभीर नहीं थे या राष्ट्र विभाजन के गंभीर परिणामों को जाने-अनजाने में अनदेखी कर रहे थे, वे यह मानने को तैयार नहीं थे की दोनों देशों के लोग पूरी तरह हमेशा के लिए जुदा हो जायेंगें l आम लोगों का सोचना उनके भोलेपन या अज्ञानता और यथार्थ से आँखें बंद कर लेने के समान था l

4. विभाजन के खिलाफ महत्मा गाँधी की दलील क्या थी ?
उत्तर :विभाजन के खिलाफ गाँधी जी यह दलील देते थे की विभाजन उनकी लाश पर होगा l वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे l उन्हें यह यकीन था के वे देश में सम्प्रदायिक पुन: स्थापना करने में कामयाब होंगे l लोग घृणा और हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे और सभी मिलकर दो भाइयों की तरह अपनी सभी समस्याओं का निधन कर लेंगे l
प्रारंभ में साम्प्रदायिकता सदभाव पुन: स्थापित करने में उन्हें सफलता भी मिली l उनकी आयु 77 वर्ष की थी l वह यह मानते थे की उनकी अहिंसा, शांति, साम्प्रदायिकता भाईचारा के विचारों को हिंदू और मुसलमानों दोनों ही मानते हैं l गाँधी जी जहाँ भी गए, पैदल गए l उन्होंने हर जगह हिंदू और मुसलमानों को शांति बनाए रखने, परस्पर प्रेम और एक-दुसरे की रक्षा करने को कहा l

5.विभाजन को दक्षिण एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है ?
उत्तर:भारत के विभाजन को एक ऐतिहासिक मोड़ इसलिए समझा जाता है क्योंकि विभाजन तो पहले भी हुए लेकिन यह विभाजन इतना व्यापक और खून-खराबे वाला था की दक्षिण एशिया के इतिहास में इसे एक नए ऐतिहासिक मोड़ के रूप में देखा गया
हिंसा अनेक बार हुई l दोनों सम्प्रदाय के नेता विभाजन के परिणामों के कल्पना भी नही कर सके l इस विभाजन के दौरान भडके सम्प्रदायिक दंगों के कारण लाखों लोग मारे गए और नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करने के लिए विवश हुए l

6.ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया ?
उत्तर :ब्रिटिश भारत का बँटवारा कई कारणों और कारकों की वजह से किया गया:
अंग्रेज फूट डालो और राज करो की निति अपनाते थे l उन्होंने अपनी इस निति को सफल बनाने के लिए सांप्रदायिक ताकतों, साहित्य, लेखों और मध्यकालीन भारतीय इतिहास से ऐसी घटनाओं का बार-बार उल्लेख किया जो साम्प्रदायिकता को बढ़ा सकती थीं l
मुस्लिम लीग का अस्तित्व उसके जरिये उठाई जाने वाली पाकिस्तान की माँग था l उसका दावा था की भारत में वह ही मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है और कांग्रेस का यह दावा था की अनेक मुसलमान विभाजन नही चाहते थे l
अनेक हिन्दू संगठनों ने शुद्धिकरण और मुस्लिम संगठनों ने ताबलीक आंदोलन चलाकर देश में सम्प्रदायिक माहौल को ख़राब किया l
कांग्रेसी मंत्रिमंडलों में मुस्लिम लीग को शामिल नहीं किया गया l इससे मुस्लिम लीग में निराशा हुई l उसने देश विभाजन और पाकिस्तान बनाए जाने की माँग पर जोर दिया l

7.बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहें ?
उत्तर :बँटवारे के समय औरतों के अनुभव बहुत ख़राब रहे l अनेक औरतों को अगवा कर लिया गया l उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया l अनेक युवतियों से बलात्कार या जबरन विवाह अथवा निकाह किए गए l अनेक महिलाओं के गुप्त अंग काट दिए गए l अनेकों के सामने उनके सुहाग या गोद उजाड़ दिये गये l अनेक महिलाओं से धन लुट लिए गए l अनेक महिलाओं को शांति स्थापित होने के बाद उनके परिवारजनों ने ही उन्हें स्वीकार नहीं किया l उन्हें अपना पेट भरने के लिए वेश्यावृति जैसे निंदनीय व्यवसाय को अपनाना पड़ा l

8.बँटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली ?
उत्तर :बँटवारे के मामले में कांग्रेस की सोच बदलने के निम्न कारण :
1.      वह मुस्लिम लीग को उसकी राष्ट्र विभाजन की माँग छोड़ने के लिए उसे राजी करने में विफल रही l
2.       मुस्लिम लीग में ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को पाकिस्तान के लिए माँगकर कुछ कांग्रेसियों के दिमाग में यह विचार उत्पन्न कर दिये की शायद कुछ समय बाद गाँधी जी देश की एकता को पुन: स्थापित करने में कामयाब हो जायेंगें l
3.      कुछ कांग्रेसी नेता सत्ता के प्रति ज्यादा लालायित थे l वे चाहते थे की चाहे देश का विभाजन हो लेकन अंग्रेज चले जाएँ और उन्हें तुरंत सत्ता मिल जाये l
4.      1946 के चुनाव में जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी बहुत थी वहाँ मुस्लिम लीग की सफलता, मुस्लिम लीग के जरिये संविधान सभा का बहिष्कार करना, अंतरिम सरकार में शामिल न करना और जिन्ना के दोहरे राष्ट्र सिद्धांत पर बार-बार बल देना कांग्रेस की मानसिकता पर राष्ट्र विभाजन समर्थक निर्णय बनाने में सहायक रही l

9.मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसानों की पड़ताल कीजिए l मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है ?
उत्तर :
1.      मौखिक इतिहास हमारे देश के इतिहास की टूटी कड़ियों को जोड़ने में सहायक है l जो पुराने लोग विवरण सुनाते हैं वे अपने संस्मरणों, डायरियों, परिवार संबंधी इतिहास और अपने जरिये लिखे गए ब्यौरों को इतिहासकारों की अनेक कठिनाइयों और स्रोत संबंधी जानकारी को प्राप्ति की कठिनाइयों को दूर करने और इतिहास समझने में सहायता देते हैं l
2.      हमारे देश का विभाजन अगस्त 1947 में हुआ l लाखों लोगों ने बँटवारे की पीड़ा और उसके अश्वेत दौरे को देखा l उनके लिए केवल संवैधानिक विभाजन या राजनैतिक पार्टियों के जरिये उठाय गए दलगत राजनीती मामला नहीं था मौखिक इतिहास की गवाही देने वाले और सुनने वाले लोगों के लिए यह बदलावों का ऐसा वक्त था जिनकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी l
3.      1946 से 1950 के और उसके बाद भी जारी रहने वाले इन परिवर्तनों से निपटने के लिए विद्वानों को मनोवैज्ञानिक, भवनात्मक और सामाजिक समयोजन की आवश्यकता थी l यूरोपीयमहाधवन्सकी भाँती हमे देश विभाजन को एक  राजनीतक घटना के रूप में नही देखना चाहिए आपितु इससे गुजरने वाले के जरिये उसे दिए गए अर्थों के माध्यम से भी समझना चाहिए l किसी घटना की हकीकत को स्मृतियाँ और अनुभव से भी आकर प्राप्त होता है l

Chapter : 7 Coordinate Geometry

Class X Mathematics

Test Paper – 01

Chapter : 7 Coordinate Geometry

1.    What is the distance of ( -6,5 ) from y- axis.
2.    If the distance between ( x,2) and (3,-6) is 10. Then the find the value of x.
3.    Find the midpoint of ( 4,5) and ( 6, 8).
4.    Find the distance between 3x+6 = 0 and x-3 = 0.
5.    For what value of P the points ( 2,1) , ( p, -1) and ( -1, 3) are collinear.
6.    Find the point of trisection of the line segment ( 1,-2) and ( -3,4).
7.    Find the value of x if the points  A( 4,3 ) and B( x,3 ) lie on the circle whose center is O( 2,3).
8.    Show that the points ( -2,3 ), ( 8,3 ) and ( 6,7 ) are the points of a right angled triangle.
9.    Find the ratio in y-axis divides the line segment joining the points A( 5,-6 ) and B( -1,-4).

10.                       If the distance of P( x,y) from the points A( 3,6 ) and B( -3,4 ) are equal. Then prove that  3x + y = 5.

अध्याय:12 औपनिवेशिक शहर

NCERT SOLUTION CLASS XII HISTORY IN HINDI
अध्याय:12 औपनिवेशिक शहर


1.      औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सँभालकर क्यों रखे जाते थे l
उत्तर: औपनिवेशिक शहरों में रिकार्डस निम्नलिखित कारणों के वजह से सँभाल कर रखे जाते थे l
1.      शहरों में कितने प्रतिशत आबादी घटी-बढ़ी है, इस बात को जानने के लिए शहरों की चारित्रिक विशेषताओं के अन्वेषण के समय रिकॉर्डों का प्रयोग सामाजिक और अन्य परिवर्तनों को जानने के लिए आवश्यक थाl
2.      इन रिकॉर्डोंे शहरों में व्यापारिक गतिविधियाँ, औद्योगिक,प्रगति, सफाई, सड़क, परिवहन, यातायात और प्रशासनिक कार्यलयों की आवश्यकता को जानने, समझने और उन पर आवश्यकता अनुसार कार्य करने के लिए आवश्यक कार्य हेतु मुकदमों को बढ़ाने के लिए यह रिकॉर्ड सहायक होते थे l


2. औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणन संबंधी आँकड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं ?
उत्तर : औपनिवेशिक संबंध में शाहीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणनासंबंधी आँकड़े बहुत उपयोगी होते हैं :
इससे श्वेत और अश्वेत लोगों की कुल जनसंख्या या आबादी को जानने में सहयोग मिलता है l श्वेत और अश्वेत टाउन के निर्माण, विस्तार और उनके जीवन संबंधी स्तर, भयंकर बीमारियाँ के जनसंख्या पर पड़े दुष्प्रभाव आदि को जानने में भी जनगणनासंबंधी आँकड़े तुरंत जानकारी देने वाले पट्टियों का कार्य करते हैं


3.वाईट और ब्लैक टाउन शब्दों का क्या महत्त्व था ?
उत्तर: वाईट और ब्लैक टाउन शब्दों का निम्नलिखित महत्त्व था ?
1.      अंग्रेज रंग भेदभाव, जातीय भेदभाव की नींदनीय नीतियों में विश्वास करते थे l 1857के विद्रोह के बाद उन्होंने महसूस किया श्वेत लोगों, महिलाओं तथा बच्चों को उनके सम्मान, सम्पत्ति आदि को अश्वेत अथवा देसी लोगों के संभावित खतरों से दूर रखने के लिए आधिक सुरक्षित व पृथक बस्ती बनाई जानीजरुरी है l
2.      उन्होंने पुराने कस्बों के आस-पास के खेतों और चरागाहों को साफ कर दिया और सिविल लाइन के नाम से नए आवासिय क्षेत्र विकसित किए l इन क्षेत्रों कोवाईट टाउन कहागया l
3.      ब्लैक टाउन अपने आबादी के लिए प्रसिद्ध था तथा साफ-सफाई की ओर ध्यान नही दिया जाता था l अश्वेत भारतीय और अन्य एशियाई लोग रखते थे l जबकि ब्लैक टाउन में कच्ची झोपड़ियाँ भीथीं जो घासफूस से बनी होती थी, ज्यादातर मकान बेढंगे बने होते थे l


4. प्रमुख भारतीय व्यपारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया ?
उत्तर :प्रमुख भारतीय व्यपारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को निम्न तरह से स्थापित किया l
1.      प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों अर्थात मद्रास, बम्बई और कलकत्ता में कम्पनी केएजेंटकेरूपमेंरहनाशुरूकिया।येसभीबस्तियाँ प्रशासनिक कार्यलयों वाली थीं l इसलिए भारतीय व्यापारियों को यह शहर सुविधाजनक लगे l
2.      यह तीनो शहर बंदरगाह थे l और इनमेसड़के, यातायात, जहाजरानी के साथ-साथ कालांतर में रेलों की सुविधा प्राप्त हो गई l भारतीय ग्रामीण व्यापारी और फेरी वाले शहरों में माल गाँव से खरीदकर भी लाते थे l अनेक भारतीय व्यापारी और जब पुराने और मध्यकालीन शहर उजड़ गये तो उन्हें छोड़कर वे इन बड़े शहरों में आ गएl


5.औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्व किस हद तक घुल-मिल गए थे ?
उत्तर :औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्व काफी हद तक घुल-मिल गए थे l निम्नलिखित में तर्क l
1.      औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्व पर्याप्त सीमा तक परस्पर घुल-मिल गए l आस-पास के गाँव में अनेक लोग मद्रास में आकर रहने लगे l ग्रामीण और शहरी लोग मुख्यता : मद्रास में ब्लैक टाउन क्षेत्र में रहते थे l इन लोगों में बुनकर, कारीगर, बिचौलिक, लोग व्यापर में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे l शहर के इस हिस्से परंपरागतमें ढंग के मंदिर, रिहायशी मकान, आड़ी-टेढ़ी सँकरी गलियाँ और अलग-अलग जातियों के मोहल्ले थे l कई मोहल्ले केवल बुनकरों रंगसाज और धोबियों के लिए थे l
2.      कुछ भारतीय इसाई भी शहर के इस हिस्से में रहते थे l सभी लोग भलाई के कार्यों में और मंदिर संरक्षण कार्यों में मिलकर हाथ बाँटते थे l कुछ स्थानीय ग्रामीण जाती के लोग वैल्लालार ब्रिटिश कम्पनी के अधीन नौकरियाँ करते थे

6. अठारहवीं सदी में शहरी केन्द्रों का रूपांतरण किस तरह हुआ l
उत्तर :अठारहवीं सदी में शहरी केन्द्रों का रूपांतरण निम्न प्रकार से हुआl
1.      अठारहवीं शदी में शहरी केन्द्रों का रूपांतरण बड़ी तेजी के साथ हुआ l यूरोपीय मूलत: अपने-अपने देशों के शहरों से आए थे l उन्होंने औपनिवेशिक सरकार के काल में शहरों का विकास किया l पुर्तगालियों ने 1510 में पणजी, डचों ने 1605 मेंमछलीपट्नम, अंग्रेजों ने 1639में मद्रास, 1661 में मुंबई और 1690 में कलकत्ता बसाए तो फ्रांसीसियों ने 1673 में पांडिचेरी नामक शहर बसाए l
2.      इनमे से अनेक शहरसमुन्दरके किनारेपरथे l व्यापारिक गतिविधियों के केंद्र होने के साथ-साथ प्रशासनिक कार्यकलापों के भी केंद्र थे l अनेक व्यापारिक गतिविधियों के साथ इन शहरों का विस्तार हुआ l आस-पास के गाँवों में अनेक सस्ते मजदूर कारीगर छोटे-बड़े व्यापारी सौदागर नौकरी-पेशी बुनकर रंगरेज धातु कर्म करने वाले लोग रहने लगे l
3.      इन शहरों में इसाई मिशनरियों ने सक्रिय रूप में भाग लिया l अनेक स्थानों पर पश्चिमी-शैली की इमारतों, चर्च और सार्वजिक महत्त्व की इमारते बनाई गई l स्थापत्य में पत्थरों के साथ ईंट, लकड़ी प्लास्टर आदि का प्रयोग किया गया l छोटे गाँव और कस्बे छोटे-बड़े शहर बन गए l  आसपास के किसान तीर्थ करने के लिए कई शहरों में आते थे l आकाल के दिनों में प्रभावित लोग कस्बों और शहरों में इकट्ठे हो जाते थे लेकिन जब कस्बों पर हमले होते थे तो कस्बों के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में शरण लेने के लिए चले जाते थे l 
 

7.औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजानिक स्थान कौन से थे उनके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर : औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजानिक स्थान निम्नलिखित प्रकार के थे, जिनका वर्णन इस प्रकार है l
1.      अंग्रेजों ने अपनी जान तथा माल की सुरक्षा के लिए अनेक किलेबंद तथा किलों का निर्माण करवाया था l मद्रास में फोर्ट सेंत जार्ज, कलकत्ता में फोर्ट विलियम और बम्बई फोर्ट इत्यादि जैसे इलाके ब्रिटिश आबादी के रूप में जाने जाते थे l
2.      अंग्रेजों ने भारतियों से अपनी दुरी को बनाए रखने के लिए शहरों को भागों में विभाजित किया था l जिस भाग में स्वयं अंग्रेज रहते थे उसे व्हाईट टाउन कहा जाता था जबकि जिस भाग में भारतीय रहते थे उसे ब्लैक टाउन कहा जाता था l
3.      इस काल में समुंद्रकिनारे गोदाम, वाणिज्यिक कार्यालय, जहाजरानी उद्द्योद के लिए बीमा एजेंसियों, यातायात डिपो और बैंकिंग संस्थानों की स्थापना होने लगी थी l
4.      कम्पनी के मुख्य प्रशासकीय कार्यालय समुंद्र तट से दूर बनाए गए l कलकत्ता में स्थित राइटर्स बिल्डिंग इसी तरह का एक दफ्तर हुआ करती थी l
5.      किले की चार दिवारी के आस-पास यूरोपीय व्यापारियों और एजेंटों ने यूरोपीय शैली के महलनुमा मकान बना लिए थे l
6.      सिविल लाइन्स के नाम से नए शहरी इलाके विकसित किए गए l सिविल लाइन्स में केवल गोरों को बसाया गया l इनमे अंग्रेज अफसर तथा सैनिकों के रहने की व्यवस्था की गई थी l 
7.      इस काल में छावनियों को भी सुरक्षित स्थानों के रूप में विकसित किया गया था l इनमें यूरोपीय कमान के अंतर्गत भारतीय सैनिक तैयार किए जाते थे l 
8.      पाश्चात्य शिक्षा के विकास के लिए बम्बई, मद्रास तथा कलकत्ता में अंग्रेजों के जरिये विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई थी l 
 

8.उन्नीसवीं सदी में नगर-नियोजना को प्रभावित करने वाली चिंताएँ कौन-सी थी ?
उत्तर : उन्नीसवीं सदी में नगर नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ निम्नलिखित थीं, जिनका वर्णन इस प्रकार है –
1.      गंदगी तथा भीड़-कलकत्ता शहर में काफी आबादी, भीड़-भाड़, गंदे तालाबों से युक्त तथा सड़ांध और निकासी की खस्ता हालत से परेशान थे l
2.      बिमारियों का प्रकोष-अंग्रेजों का मनना था की दलदली जमीन और ठहरे हुए पानी के तालाबों से जहरीली गैसें निकलती थीं, जिनसे बीमारियाँ फैलती थीं l उष्णकटिबंधीय जलवायु को वैसे भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक और शक्ति का क्षय करने वाला माना जाता था l
3.      महामारी की आंशका1817 में हैजा फैलने लगा और 1896 में प्लेग ने शहर को अपनी चपेट में ले लिया था l चिकित्सा विज्ञान अभी इन बिमारियों की वजह सपष्ट नहीं कर पाया था l
4.      सुरक्षा का मुद्दा- अंग्रेज जिस समय भारत में आए थे, उस समय वे अपनी सुरक्षा को लेकर काफी चिन्तित थे l इसलिए उन्होंने अपने निवास स्थान या बस्तियों को किलों या दीवारों से घेरा था l सुरक्षा की दृष्टि से ही अंग्रेज के समय बड़े किलों का निर्माण किया गया था l
5.      प्रशासनिक इकाइयों की कमी- अंग्रेज भारत के जिस क्षेत्र में आरम्भ में आए थे उस समय वहाँ पर किसी प्रकार के प्रशासनिक भवन नहीं थे जो सत्ता की महत्ता को प्रकट करते हों l इसलिए अंग्रेजों ने इस प्रकार के भवनों के निर्माण को प्राथमिकता प्रदान की थी l

9.नए शहरों में समाजिक संबंध किस हद तक बदल गए ?
उत्तर : औपनिवेशिक काल में उदित होने वाले शहरों में सामाजिक स्थिति पहले की अपेक्षा काफी बदल गई थी l इन नए शहरों की समाजिक जन्दगी काफी जटिल थी l
1.      इन नए शहरों की जिंदगी हमेशा दौड़ती-भागती सी दिखाई देती थी l इनमें चरम संपन्न और गहन गरीबी, दोनों को एक साथ देखा जा सकता था l
2.      यातायात के नए साधनों के विकास के कारण लोग अब दुसरे स्थानों पर भी जाकर काम कर सकते थे l समय के साथ काम की जगह और रहने की जगह, दोनों एक-दुसरे से अलग होते गए l  घर से दफ्तर जाना एक नए किस्म का अनुभव बन गया l
3.      टाउन हॉल, सार्वजनिक पार्क, रंगशालाओं और बीसवीं सदी में सिनेमा हॉलों जैसे सार्वजनिक स्थानों के बनने से शहरों में लोगों को मिलने-जुलने की उत्तेजना होने लगी l
4.      इस काल में मध्यम वर्ग का उदय होना भी काफी महत्वपूर्ण था इस वर्ग के अंतर्गत शिक्षकों, वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों जैसे- पेशे वाले लोगों को शामिल किया जाता था l
5.      इस काल में परम्परागत सामाजिक रीती-रिवाजों, कायदे-कानूनों और तौर-तरीकों पर सवाल उठाए जाने लगे थे l
6.      शहरों में औरतों के लिए नए अवसर थे l पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं और पुस्तकों के माध्यम से मध्यवर्गीय औरतें खुद को अभिव्यक्त करने का प्रयास कर रहीं थी l परम्परागत पितृसत्तात्मक कायदे-कानूनों को बदलने की इन कोशिशों से बहुत सारे लोगों को असंतोष था l
7.      शहरों में मेहनतकश गरीबों या कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था l ग्रामीण लोग रोजगार की तलाश में लगातार शहरों की ओर आ रहे थे l ये लोग शहरों में भीड़-भाड़ वाले मकानों में रहते थे, जिन्हें चॉल कहा जाता था
8.      शहर की जिंदगी एक संघर्ष थी क्योंकि वहाँ काम करने वाले ग्रामीणों की नौकरी पक्की नहीं थी, खाना महंगा था तथा रिहाइश का खर्चा उठाना उनके लिए मुश्किल था l फिर भी गरीबों ने वहाँ प्राय: अपनी एक अलग जीवंत शहरी संस्कृत रच ली थी l

अध्याय:13 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन

NCERT SOLUTION CLASS XII HISTORY IN HINDI
अध्याय:13 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन

1 . महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया ?
उत्तर : महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए निम्न कार्य किए:
1.      उन्होंने सबसे पहले अपने राजनितिक गुरुगोपालकृष्ण गोलखे के कहने के अनुसार कई वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा की ताकि वे इस भूमि और इसके लोगों को अच्छी तरह जान सके l
2.      उन्होंने सर्व साधारण की तरह मामूली कपड़े विशेषकर खद्दर के कपड़े पहने l हाथ में आम किसान की तरह लाठी उठाई, चरखा काता, कुटीरउद्योग-धंधों, हरिजनों के हितों, महिलाओं के प्रति सद्व्यवहार और सच्ची सहानुभूति रखने के साथ ही बार-बार यह दोहराया की भारत गाँवों में बस्ता है, किसानों और गरीब लोगों की समृधि और खुशहाली के बिना देश की उन्नति नहीं हो सकती l

2. किसान महात्मा गाँधी को किस तरह देखते थे ?
उत्तर :
1.      किसान महात्मा गाँधी को अपना हितौषी समझते थे l वे मानते थे की गाँधीजी भू-राजस्व को कम करने, उदारतापूर्वक भू-राजस्व वसूली के लिए सरकार-सरकारी अधिकारीयों, जमींदारों, जोतदारों, ताल्लुक्दारों पर दबाव डाल सकते हैं l
2.      किसान यह भी मानते थे की गाँधी जी किसानों को हर तरह से शोषण से मुक्ति दिला सकते हैं l गाँधी जी उन्हें समझते है और वे उनकी भाषामें उन्हें हर समय समस्या के समाधान भी सुलझा सकते हैं वे ग्रामीण क्षेत्रों से सबंधित समस्याओं और किसानों के कुटीर धंधों के समर्थक थे l
3.      किसान गाँधीजी को जन-प्रिय नेता और अपने में से एक समझते थे lउन्हें विश्वास था की गाँधीजी उन्हें अंग्रेजों की दासता,जमींदारों के शोषण और साहूकारों के चुंगल से अहिंसात्मक आंदोलनोंऔर शांति-प्रिय प्रतिरोध के जरिये मुक्ति दिलासकतेहैं।

3.नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था l
उत्तर : नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्पूर्ण मुद्दा इसलिए बन गया कियोंकि उन दिनों के नमक उत्पादन और विक्रय पर ब्रिटिष राज्य को अधिकार प्राप्त था l नमक गरीब से गरीब और आमिर से आमिर सभी धर्म और जातियों के जरिये प्रयोग किया जाता था l नमक कानून को तोड़ने का मतलब था विदेशी दासता और ब्रिटिश शासन की अवज्ञा करना, उससे प्रेरित हो कर छोटे अन्य कानूनों को तोड़ना ताकि स्वराज्य और पूर्ण स्वतंत्रता  देशवासियों को मिल जाए और स्वंत्रता का संग्राम का अंतिम उद्देश्य पूरा हो सके l

4.राष्ट्रिय आंदोलनके अध्ययन के लिए अखबार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं ?
उत्तर : राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अखबार अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं :
1.      अखबार जनसंचार के सबसे महत्त्वपूर्ण साधन हैं और यह विशेषकर पढ़े-लिखे व्यक्तियों पर प्रभाव डाते हैं और प्रबुद्ध लोगों, लेखकों, कवियों, पत्रकारों, साहित्यकारों, विचारकों से प्रभावित होते हैं l
2.      अखबार जनमत का निर्माण और अभिव्यक्ति करते हैं यह सरकार और सरकारी अधिकारीयों और लोगों में विचारों और समस्या के विषय में जानकारी और प्रगति में हो रहे कामों और उपेक्षित कार्यों और क्षेत्रों की जानकारी देते हैं
3.      राष्ट्रिय आंदोलन के दौरान जो लोग अखबार पढ़ते हैं वो देश में होने वाली घटनाओं, गतिविधियों, विचारों आदि को जानते हैं l

5. चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया ?
उत्तर: चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक निम्न करणों से चुना गया l
1.      चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक इसलिए चुना गया क्योंकि चरखा गाँधीजी को प्रिय था l गाँधीजी मानते थे की आधुनिक युग में मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर श्रमिकों के हाथों से काम और रोजगार छीन लिया है l
2.      गाँधीजी ने मशीनों की आलोचना की और चरखे को ऐसे मानव समाज के प्रतीक के रूप में देखा जिसमें मशीनों और प्रौद्योगिकीको बहुत महिमामंडित नहीं किया जाएगा l गाँधीजी मानते थे की मशीनों से श्रम बचाकर लोगों को मौत के मुँह में धकेलना या उन्हें बेरोजगार करके सड़क पर फेकने के बराबर है l चरखा धन के केंद्रीयकरण को रोकने में भी मददगार है l

6. असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था ?
उत्तर :
1.      असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध था l यह गाँधीजी के द्वारा ब्रिटिश सरकार के जरिये थोपे गए रॉलेट एक्ट जैसे कानून को वापस लिए जाने के लिए जन आक्रोश और प्रतिरोध अभिव्यक्ति का लोकप्रिय माध्यम था l
2.      असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध आंदोलन था क्योंकि राष्ट्रिय नेता उन अंग्रेज अधिकारीयों को कठोर दंड दिलाना चाहते थे जो अमृतसर के शांतिपूर्ण जलियाँवाला बाग में हुए प्रदर्शनकारियों और जलसे में भाग लेने वालों पर अत्यचार करने के लिए उत्तरदायी थे l
3.      यह आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध था क्योंकि यह खिलाफत आंदोलन कार्यों के साथ सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों-हिंदू और मुसलमानों को मिलाकर औपनिवेशिक शासन के साथ जनता का असहयोग को अभिव्यक्त करने का माध्यम था l
4.      असहयोग आंदोलन ने सरकारी अदालतों का बहिष्कार करने के लिए भी सर्वसाधारण और वकीलों को कहा l गाँधीजी के कहने पर वकीलों ने अदालतों में जाने से मना करदिया l
5.      इस व्यापक लोकप्रिय प्रतिरोध का प्रभाव अनेक कस्बों पर भी पड़ा, वे हड़ताल पर चले गए l
6.      असहयोग आंदोलन का प्रतिरोध देश के ग्रामीण क्षेत्र में भी दिखाई दे रहा था l अवध के किसानों ने कर नही चुकाया, कुमाऊँ के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारीयों का सामान ढोने से साफ मना कर दिया यह सब इस बात के उदाहरण है l

7.गोल मेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नही निकल पाया ?
उत्तर : इतिहास के रिकार्ड के अनुसार ब्रिटिश सरकार ने 1930 से लेकर 1931 तक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया था l
1.      पहली गोलमेज वार्तालंदन में नवंबर 1930 में आयोजित की गयी थी जिसमे देश के प्रमुख नेता शामिल नही हुए इस कारण यह बैठक निरर्थक साबित हुई l सरकार नही जानती थी की बिना प्रमुख नेताओं के लंदन में गोलमेज बुलाना निरर्थक होगा l
2.      सरकार ने दुसरे गोलमेज सम्मेलन की तैयारी शुरू की l वायसराय लार्ड इर्विन ने जनवरी 1931 में ही महात्मा गाँधीको जेल से रिहा कर दिया l अगले महीने उन्होंने गाँधी जी के साथ कई लंबी बैठकों के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेना, सारे कैदियों की रिहाई और तटीय क्षेत्रों में नमक उत्पादन की अनुमति दी थी l
3.      फिर 1931 के आखिर में ब्रिटेन की राजधानी लंदन में आयोजित हुआ l उसमें महात्मा गाँधी भारतीय राष्ट्रिय कोंग्रेज की ओर से प्रतिनिधित्व और नेतृत्व कर रहे थे l

8.महात्मा गाँधी ने राष्ट्रिय अंदोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला ?
उत्तर :  गाँधी जी ने राष्ट्रिय आंदोलन के स्वरूप को निम्नलिखित विचारों, तरीकों, विचारधारा, कार्यप्रणाली, आंदोलनों आदि के द्वारा बदल डाला :
1.      गाँधीजी स्वदेश आये और 1915 से लेकर जनवरी 1948 तक अपने दर्शन और विचारधारा से लोगों को विभिन्न माध्यमों से अवगत कराते रहे l उनके दर्शन के मुख्य सिद्धांत अथवा आधारभूत स्तंभ थे
a)     सत्याग्रह
b)     आहिंसा शांति
c)     दरिद्रनारायण के प्रति सच्ची हमदर्दी
d)     महिलाओं का सशक्तिकरण
e)     साम्प्रदयिक सदभाव
2.      भारतीय ग्रामीण क्षेत्र एंव उनमे रहने वाले लोगों के हितों के बारे में सोचना, करना और लोगों को प्रेरणा देना l गाँधीजी ने भारत आने से पहले ही दक्षिण अफ्रीका में अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई l उन्होंने मानववाद, समानता, आदि के लिए प्रयास किए तथा रंग भेदभाव, जाती भेदभाव के विरुद्ध सत्याग्रह किया और विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त की l
3.      गाँधीजी ने अपने भाषणों पत्र-पत्रिकाओं में लिखे लेखों, पुस्तकों आदि के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ताधारियों को यह जता दिया की भारत में जो सर्वत्र दरिद्रता, भुखमरी, निम्न जीवन स्तर, अशिक्षा, अन्धविश्वास और समाजिक फूट देखने को मिलती है उसके लिए ब्रिटिश शासन ही उत्तरदायी है क्योकि अंग्रेजों ने वर्षों से भारत का न केवल राजनैतिक शोषण किया हैं बल्कि इसका आर्थिक, समाजिक, संस्कृतिक और अध्यात्मिक शोषण भी किया है l

9. निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है ? ये स्रोत सरकारी ब्यौरों से किस तरह भिन्न होते हैं ?
उत्तर : निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में निम्न तथ्यों का पता चलता है :

1.      जिस भाषा में पत्र और आत्मकथा लिखी जाती है उससे संबंधित उस व्यक्ति की जानकारी के बारे में हमें पता चलता है l उसको पढकर हम उन व्यक्तियों के भाषा स्तर आदि को भीजान सकते हैं l
2.      आत्मकथाएँ व्यक्ति के संपूर्ण जीवनकाल, जन्मस्थान, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, व्यवसाय, रुचियों, प्राथमिकताओं, कठिनाइयों, जीवन में आए उतार-चढ़ाव, जीवन से जुडी घटनाओं आदि के बारे में भी बताती हैं l
3.      निजी पत्र राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान जो डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने जवाहरलाल नहरूको लिखे उसमें उन्होंने कोंग्रेज के कार्यक्रम, उनकी प्राथमिकताएँ आदि के बारे में जानकारी दी l इसी तरह जो निजी पत्र जवाहरलाल ने महात्मा गाँधी को लिखाउनमें भी विभिन्न नेताअपने विचार, कार्यक्रम, कार्यक्षमता आदि की जानकारी दी l
4.      सरकारी ब्यौरों से स्रोतों के रूप में निजी पत्र और आत्मकथाएँ पूरी तरह भिन्न होती हैं l सरकारी ब्यौरे प्राय: गुप्त रूप से लिखे जाते हैं। ये लिखाने वाली सरकारे या लिखने वालें विवरणदाता या लेखकों के पूर्वाग्रहों, नीतियों, दृष्टिकोणों आदि से प्रभावित होते हैं l जबकि निजी पत्र दो व्यक्तियों के बिच में आपसी संबंध, विचारों के आदान-प्रदान और निजी स्तर से जुडी सूचनाएँ देने के लिए होते हैं l

अध्याय:11 विद्रोही और राज

NCERT SOLUTION CLASS XII HISTORY IN HINDI
अध्याय:11 विद्रोही और राज

1.बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व सँभालने के लिए पुराने शासकों से क्या आग्रह किया ?
उत्तर: बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नतृत्व सँभालने के लिए पुराने शासकों से आग्रह किया की वे उन्हें आशीर्वाद दें और विद्रोही को नेतृत्व प्रदान करें l उदाहरण के लिए 10 मई, 1857 को मराठे छावनी में विद्रोह करने वाले सिपाही जब 11-12 मई को दिल्ली के लाल किलेपहुँचेतो उन्होंने बिना शिष्टाचार का पालन किए हुए ही किले में घुसकर बहादुर शाह से माँग की थी की उन्हें अपना आशीर्वाद दे l सिपाहियों से घिरे बहादुरशाह के पास उनकी बात मानने के आलावा और कोई चारा न था l इस तरह विद्रोह ने एक वैधता हासिल कर ली क्योंकि अब उसविद्रोहकोमुगल बादशाह के नाम पर चलाया जा सकता था l

2.उन साक्ष्यों के बारे में चर्चा कीजिए जिनसे पता चलता है की विद्रोह योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम कर रहे थे ?
उत्तर: विद्रोह से संबंधित निम्न स्रोत हमें यह साक्ष्य देते हैं की विद्रोही योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम कर रहे थे l
1.      उदाहरण के लिए एक साक्ष्य से पता चलता है की कलकत्ताके पास एक सैनिक शिविर में जब एक ब्राह्मण जाती के सिपाही से निम्न जाती के सिपाही ने पानी पिने का लोटा माँगा तो उसने मना करदिया l ऐसे व्यवहार को देख कर उस व्यक्ति ने जो यह जनता था की नए कारतूस जिन पर गाय और सूअर की चर्बी के केवर लगे होंगे उन्हें मुँह से काटकर रायफल में भरना अनिवार्य होगा यह बात फैला दी l
2.      ब्राह्मण सिपाही ने ये बात पुरे छावनी में फैला दी और फिर एक छवनी से अनेक छावनी में ये बात फैल गई l और फिर विद्रोह होना शुरू होगया और हर छावनी में विद्रोह का घटनाक्रम कमाबेश एक जैसा था l

3.1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी ?
उत्तर :1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की निम्न रूप से भूमिका थी l
1.      बैरकपुर की घटना जिसका संबंध गाय और सूअर की चर्बी से लिपटे कारतूसों से था ऐसा ही हुआ जब मेरठ के सिपाहियों ने भी कारतूस मुँह में लेने से मना करदिया तो फिरंगी सिपाहियों के द्वारा मजबूर करने पर उनलोगों ने फिंगी सिपाहियों का वध कर डाला और दिल्ली आगये l
2.      अनेक स्थानों पर विद्रोह का संदेश आम लोगों के माध्यम से तथा धार्मिक लोगों के द्वारा भी फैलाया गयाl उदाहरण के तौर पर लखनऊ में अवध पर कब्जे के बाद बहुत सारे धार्मिक नेता और स्वंय भू-पैगम्बर प्रचारक ब्रिटिश राज को नेस्तनाबूद करने का अलख जगा रहे थे l
3.      सिपाहियों ने जगह-जगह छावनियों में कहलवाया की यदि वे गाय और सूअर की चर्बी के कारतूसों को मुँह से लगायेंगें तो उनकी जातिऔरधर्म दोनों भ्रष्ट हो जाएँगे l अंग्रेजों ने सिपाहियों को बहुत समझाया लेकिन वो टस से मस नहीं हुए l 

4.विद्रोहियों के बिच एकता स्थापित करने के लिए क्या तरीके अपनाए गए ?
उत्तर : विद्रोहियों के बिच एकता स्थापित करने के लिए निम्न तरीके अपनाए गए :
1.      हिंदू और मुसलमानों को चर्बी के कारतूस, आटे में सूअर और गाय की हड्डियोंका मिक्चर बनाकर, प्लासी की लड़ाई के 100 साल पुरे होते ही भारत से अंग्रेजों की वापसी और मिलकर विद्रोह में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने की भावना पैदा करके ऐता पैदा की गई l अनेक स्थानों पर विद्रोहियों ने स्त्रियों और पुरुषों दोनों का सहयोग लिया ताकि समाज में लिंग भेदभाव कम हो l
2.      हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर मुगल सम्राट बहादुरशाह का आशीर्वाद प्राप्त किया ताकि विद्रोह को वैधता हासिल हो सके और मुगल बादशाह के नाम से विद्रोह को चलाया जा सके l
3.      विद्रोहियों ने मिलकर एक सामान्य शत्रु फिरंगियों का सामना किया l उन्होंने दोनों समुदायों में लोकप्रिय तिन भाषाओँ हिंदी, उर्दू, और फारसी में अपीलें जारी कीं l

5. अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए क्या कदम उठाया ?
उत्तर: अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए निम्न कदम उठाए
1.      उत्तर भारत कोदोबाराजितने के लिए टुकड़ियों को रवाना करने से पहले अंग्रेजों ने उपद्रव शांत करने के लिए फौजियों की आसानी के लिए कई कानून पारित किये गए l
2.      मई और जून 1857 में पास किए गए कई कानूनों के द्वारान केवल समूचे उत्तर भारत में मार्शल लो लागु कर दिया गया बल्कि फौजी अफसरों और यहाँ तक की आम अंग्रेजों को भी ऐसे हिन्दुस्तानियों पर मुकदमा चलाने और उनको सजा देने का अधिकार दे दिया गया जिन पर विद्रोह में शामिल होने का शक था ।
3.      कानून और मुकदमे की सामान्य प्रक्रिया रद्द कर दी गई थी और यह सपष्ट कर दिया गया था की विद्रोह की केवल एक ही सजा हो सकती है-सजा-ए-मौत l

6.अवध में विद्रोह इतना व्यापक क्यों था ? किसान, ताल्लुकदार और जमींदार उसमें क्यों शामिल हुए ?
उत्तर : अवध में विद्रोह की व्यापकता के कारण :
1.      लार्ड डलहौजी ने 1851 में यह निर्णय ले लिया था की किसी न किसी बहाने से अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया जायेगा l पाँचसाल के बाद उसने इस रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग घोषित कर दिया गया l यद्दपि अवध अंग्रेजों का मित्र राज्य था लेकिन वहाँ की जमीन नील और कपास की खेती के लिए बहुत उचित थी l इस इलाके को उत्तरी भारत के बड़े बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता था l अवध के नवाब वाजिद अली शाह को यह कहते हुए गद्दी से हटाकर कलकत्ता भेझ दिया की वो शासक अच्छीतरह नही चला रहा था l
2.      अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने से अवध की जनता को गहरी भावनात्मक चौट पहुँची थी l इस भवनात्मक उथल-पुथल को भौतिक क्षति के अहसास से और बल मिला l
3.      अवध जैसे जिन इलाकों में 1857 के दौरान प्रतिरोध बेहद सघन और लंबा चला था वहाँ लड़ाई की बागडोर असल में ताल्लुक्दारों और उनके किसानों के हाथ में थी l बहुत सारे ताल्लुक्दार अवध के नवाब के प्रति निष्ठा रखते थे इसलिए वे अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए लखनऊ जाकर बेगम हजरत महल के खेमे में शामिल हो गए l उनमे से कुछ तो बेगम की पराजय के बादभी उनके साथ डटे रहे l

7.विद्रोही क्या चाहते थे ? विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में कितना फर्क था
उत्तर: 1857 के विद्रोह में विभिन्न वर्गों ने भाग लिया था l उनके निहित स्वार्थ, उद्देश्य, अलग-अलग थे इसलिए वे अलग-अलग चाहत रखते थे l विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि से उनमें पर्याप्त अंतर भी था इन दोनों पहलुओं पर हम निम्न तरह से विचार व्यक्त कर सकते हैं
1.      सैनिक: 1857 के विद्रोह को शुरू करने वाले विभिन्न सैनिक छावनियों के सिपाही थे l सिपाही अपने धर्म और भावनाओं की रक्षा चाहते थे और इसलिए उन्होंने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया l
2.      किसान, जमींदार, ताल्लुकदार, जोतदार आदि :
3.      समाज के सभी वर्गों के लोग भू राजस्व कम करना चाहते थे l अपनी जमीन पर अधिकतम, तालुक्य में प्राचीन स्वेच्छा से स्थानीय लोगों से ताल्लुक और जोतदार भू-व्यवस्थाऔर लगान आदि की वसूली में उदारता चाहते थे l
4.      सामान्य लोग, व्यापारी और साहूकार : सामान्य लोग अपने पैतृक व्यवसाओं में अंग्रेजों के हस्तक्षेप को पसंद नहीं करते थे l व्यापारी आतंरिक और बाहिरीव्यापार मेंछूट और कम्पनी के व्यापारियों और सौदागरों की तरह अपने हित के लिए समान चुंगी, भाड़े और स्वतंत्र रूप से व्यापार करने की छूट चाहते थे l
5.      रुढ़िवादी: रुढ़िवादी हिंदू और मुसलमान पूर्णतया इसाई मिशनरियों की गतिविधियों पर नियंत्रण चाहते थे l वे पाश्चात्य शिक्षा, साहित्य और संस्कृतिक के विरुद्ध थे l वे सती प्रथा, बाल विवाह, बहुपत्नी विवाह, विधवा विवाह पर लगे प्रतिबंध आदि में किसी भी प्रकार का सरकारी हस्तक्षेप पसंद नहीं करते थे l

8.1857 के विद्रोह के बारे में चित्रों से क्या पता चलता है ? इतिहासकार इन चित्रों का किस तरह विश्लेषण करते हैं ?
उत्तर : चित्र नं. 1 : बहादुरशाह जफर के चित्र से सपष्ट है की वहउम्र के हिसाब से बहुत वृद्ध हो चुके थे l उसका केवल लाल किले और उसके आसपास के कुछ ही इलाके पर नियंत्रण था l वह पूरी तरह शक्तिहीन हो चूका था l जब मेरठ की छावनी से आने वाले सिपाहियों का जत्था लाल किले में दाखिल हुआ तो वह विद्रोहियों को शिष्टाचार का पालन करने के लिए विवश तक न कर सका l
इतिहासकार इस चित्र से यह निष्कर्ष निकालते हैं की बहादुरशाह न चाहते हुए विद्रोह का औपचारिक नेता बना l उसने 1857 के विद्रोह को वैधता देने की कोशिश की l
चित्र नं. 2 : लखनऊ में ब्रिटिश लोगों के खिलाफ हमले में आम लोग भी सिपाहियों के साथ जा जुटे थे, की पुष्टि होती है l इस चित्र से यह भी सपष्ट होता है की कम्पनी राज्य में साधारण लोग भी दुखी थे l सिपाहियों की तरह उनमे भी रोष था l इस रोष के कारण विदेशी शासन और उसके द्वारा किए गए आर्थिक शोषण, लोगों की धार्मिक और सामाजिक भावनाओं से किया गया खिलवाड़, सांस्कृतिक जीवन में हस्तक्षेप, विदेशी भाषाएँ, खानपानके ढंग आदि थोपना उनको विद्रोही बनाने के लिए उत्तर दाई थे l
चित्र नं. 3 :यह चित्र रानी लक्ष्मीबाई के एक प्रचालित भाव पर आधारित है जो बताता है की बूंदेलखंड की रानी एक महान वीरंगना थी जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध तलवार उठाई l लेकिन रानी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई l
चित्र नं. 4 : अवध के एक जमींदार का है l जो 1880 से संबंधित है l इससे सपष्ट होता है की जमींदार विद्रोह के बाद पुन: सरकार के नजदीक आ गए l उन्हें अंग्रेजों ने पुरानिजमींदारियाँवापस दे दीं, इच्छानुसार रैयतों पर लगान बढ़ा सके l मोटी रकम कमा सके, चित्र में जमींदार की पोशाक उसकी अच्छी स्थिति और समृद्धि का प्रतीक है l
चित्र नं. 5 : यूरोपीय ढंग की वर्दी पहने बंगाल के सिपाही हैं l यहाँ कलाकार सिपाहियों की वर्दी का मजाक उड़ा रहा है l इन तस्वीरों के जरिए शायद यह जताने का प्रयास किया जा रहा है की पश्चिमी पोशाक पहन कर भी हिंदुस्तानी सुंदर नहीं दिख सकते l
चित्र नं 6 : इस चित्र से सपष्ट होता है की अंग्रेज संकीर्ण धार्मिक प्रवृत्ति के लोग थे l उन्होंने भारत में उस समय के प्रमुख धर्मावलंबियों के धार्मिक स्थानों को अपने अत्यचारों का निशाना बनाया था l उन्होंने अनेक ऐतिहासिक स्मारकों और इमारतों को ध्वस्त किया l

9.एक चित्र और एक लिखित पाठ को चुनकर किन्हीं दो स्रोतों की पड़ताल कीजिए और इस बारे में चर्चा कीजिए की उनसे विजेताओं और पराजितों के दृष्टिकोण के बारे में क्या पता चलता है l
उत्तर: हम पाठ्यपुस्तक के चित्र नं 18 को इस अध्याय में से चुनते हैं l यह चित्र हमें बताता है की अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध केवल पुरुष ही नहीं लड़ें बल्कि स्त्रियों के रूप में अनेक लोग रहे जैसे की लक्ष्मीबाई वीर महिलाओं का प्रतीक थीं l
स्रोत नं. 1 : 1857 के विद्रोह के दौरानी दिल्ली और अन्य शहरों में खूब उथल-पुथल हुआ l लोगों का सामान्य जीवन प्रभावित हुआ l उनकी सामान्य गतिविधियाँ अस्तव्यस्त हो गई l सब्जियों के भाव आसमान छूने लगे l जीवन की आवश्यकता वस्तुओं का अभाव हो गया l या तो सब्जियाँ लोगों को मिलती नहीं थी और कहीं दिखाई देती थीं तो वे बासी होती थीं l अनेक लोगों ने अपना काम छोड़ दिया जैसे पानी भरने वाले लोगों ने पानी भरना छोड़ दिया l पानी भरने का काम कुलीन लोगों के लिए पीड़ाजनक था l कई बेचारे भद्रजन अपना काम करने के लिए खुद मजबूर हुए l
स्रोत नं. 2 : इसमें हमे विजेताओं और पराजितों के बारे में निम्न जानकारी मिलती है l 

विद्रोह का कारण सैनिक अवज्ञा के रूप में शुरू हुआ l भारतीय मूल के लोग जो इसाई थे वे चाहे कम्पनी की पुलिस की नौकरी कररहे हों वे भी ब्रिटिश मजिस्ट्रेटों और आधिकारियों के शक के दायरे में आ गए l जो सिपाही शिष्टाचारवश एक मुस्लिम मजिस्ट्रेट से मिलने गया जो की सिपाही सिस्टन अवध में तैनात था l मजिस्ट्रेट ने  सिपाही से अवध के हालात जानने की कोशिश की l उसने कहा यदि उसे अवध में काम मिला है तो उसे वहाँ की स्थिति के बारे में अंग्रेज अधिकारीयों को समय-समय पर ठीक जानकारी दे दिजाएगी l अंग्रेज अधिकारी को मुस्लिम तहसीलदार ने अंग्रेज सिपाहियों को यह भरोसा दिलाने का प्रयास किया की चाहे विद्रोही कुछ भी दावा करें, शुरू में वे कामयाब भी रहें पर अंततः विजय अंग्रेजी सरकार या कम्पनी सरकार की होगी,मगर बाद में पता चला की वह मुस्लिम तहसीलदार जो मजिस्ट्रेट के कमरे में प्रवेश कर रहा था वह बिजनौर के विद्रोहियों का सबसे बड़ा नेता था l