संविधान के राजनितिक दर्शन के अंतर्गत आप आप इस अध्याय के बारे में विस्तार से जानेंगे l संविधान का राजनितिक दर्शन कक्षा 11 नोट्स बनाते समय यह ध्यान रखा गया है की भाषा सरल और आसन हो l कक्षा 11 राजनिति विज्ञान नोट्स पीडीऍफ़ और स्टडी मटेरियल डाउनलोड करने के लिए यहाँ पर क्लिक करे l
संविधान राजनीतिक दर्शन का आशय
- इसका अभिप्राय यह है की संविधान एक कानूनी दस्तावेज होते हुए भी नैतिक मूल्यों से जुड़ा है l
- कानून और नैतिक मूल्यों के बीच गहरा सम्बन्ध है l इस बात की जानकारी संविधान के राजनीतिक दर्शन से ही ज्ञात होती है l
- संविधान में व्यवहार किये गए पदों जैसे अधिकार, नागरिकता, अल्पसंख्यक अथवा लोकतंत्र के संभावित अर्थ की जानकारी या उसमे बदलाव संविधान के राजनीतिक दर्शन के द्वारा ही समझा जा सकता है l
- संविधान के बुनियादी अवधारणा को समझने के लिए भी इसकी आवश्यकता पड़ती है l
- इसमें में अन्तर्निहित नैतिक तत्वों को जानने के लिए और उसके दावों के मुल्यांकन के लिए इसके के प्रति राजनीतिक दर्शन का नजरिया अपनाने की जरूरत है l
संविधान के राजनितिक दर्शन के लोकतान्त्रिक बदलाव होने के कारण निम्न है
- यह सत्ता को निरंकुश होने से रोकता है l
- संविधान बल प्रयोग और दंड शक्ति पर राज्य के एकाधिकार की सीमा तय करता है l
- संविधान गहरे सामाजिक बदलाव के लिए शांतिपूर्ण और लोकतान्त्रिक साधन प्रदान करता है l
- इस नजरिये में संवैधानिक लोकतंत्र के सिधांत को पूरी तरह से बदलकर रख देने की क्षमता है l
व्यक्ति की स्वतंत्रता
- संविधान में व्यक्तियों को बहुत से अधिकार दिए गए है जो व्यक्तियों को आत्म सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करने में सहायक है l
- संविधान के अनुसार निम्न अधिकार व्यक्ति की स्वतंत्रता को परिभाषित करते है :
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- मनमानी गिरफ्तारी के विरुद्ध स्वतंत्रता l
- प्रेस में अपने विचार रखे की स्वतंत्रता l
सामाजिक न्याय
भारत का संविधान उदारवादी कहा जाता है l यह शाश्त्रीय उदारवाद से भिन्न है l भारत में वर्षो से दबे कुचले वर्गों के उद्धार के लिए संविधान में विशेष व्यवस्था की गयी l निम्न प्रावधानों से यह ज्ञात होता है की भारतीय संविधान सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण है :
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विधायिका में आरक्षण की व्यवस्था की गयी है
- इनको सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया गया है l
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगो को उच्च शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला लेने के लिए भी आरक्षण प्राप्त है l
- इसके आलावा इनको आर्थिक सहायता भी दी जाति है l
विविधता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान
- हमारे देश में विभिन्न प्रकार के समुदाय रहते है और इनमे अक्सर बराबरी का रिश्ता देखने को नहीं मिलता है l यहाँ समुदायों के बीच ऊंच नीच की भावना बनी रहती है l
- इसमे ऊंच नीच की भावना को समाप्त करने के लिए संविधान ने कुछ समुदायों को आरक्षण दिया है l अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति इसका एक उदहारण है l
- इसके साथ ही यहाँ विभिन्न प्रकार के धर्म के लोग , अलग अलग भाषा बोलने वाले , विभिन्न रीती रिवाजों को मानने वाले लोग रहते है l इनमे परस्पर प्रतिद्वंदिता न हो और धार्मिक सौहार्द बना रहे इसके लिए संविधान ने विभिन्न समुदायों को मान्यता प्रदान की है l संविधान का राजनीतिक दर्शन
भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता
- धर्म निरपेक्षता का आशय यह है की संविधान में किसी भी धर्म को न तो मान्यता दी गयी है और न ही उस पर कोई प्रतिबन्ध लगाया गया है l
- इस सिधांत के अनुसार धर्म और राज्य दोनों अलग अलग रहेंगे l
- न तो धर्म राज्य के अन्दुरुनी मामलों में हस्तक्षेप करेगा और न राज्य या सरकार धर्म के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप करेगी l
- इसका उद्देश्य व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा करना है l माना गया है की राज्य को व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा करनी चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म का हो l
सार्वभौम मताधिकार
- एक निश्चित न्यूनतम आयु वर्ग वाले सभी भारतीय नागरिकों को मतदान देने का अधिकार ( बिना किसी भेदभाव , जाति , धर्म और लिंग के आधार पर ) सार्वभौम मताधिकार कहलाता है l
- प्रारम्भ में यह आयु 21 वर्ष की गयी थी परन्तु बाद में इसे घटाकर 18 वर्ष कर किया गया l
संघवाद
- एक ऐसी शासन व्यवस्था जिसमे देश में दो सरकारे होती है l पहली शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार और दूसरी राज्य सरकार जो प्रत्येक राज्य में होती है l
- केन्द्रीय सरकार पूरे देश के शासन की बागडोर संभालती है l देश और राज्य के विदेश मामले और सुरक्षा से सम्बंधित सभी विषय केन्द्रीय सत्ता के पास होते है l
- इसके आलावा केन्द्रीय सरकार को कुछ विशेष शक्तियां भी प्राप्त है जिससे वह राज्य के मामलों में हस्तक्षेप भी कर सकती है l
- भारतीय संविधान विदेशों के मुकाबले असमतोल है l यहाँ कुछ राज्यों को विशेष दर्जा प्राप्त है जैसे जम्मू और कश्मीर तथा नागालैंड को क्रमशः अनुच्छेद 370 और 371 के अंतर्गत विशेष दर्जा प्राप्त है l
राष्ट्रिय पहचान
- भारत में राष्ट्रिय पहचान बहुत ही केंद्रीकृत है l यहाँ एक राष्ट्रीय पहचान पर जोर दिया गया है l चाहे वह किसी भी राज्य , जाति और भाषा से हो l
प्रक्रियागत उपलब्धियाँ
- संविधान सभा ने काफी विचार विमर्श कर ऐसे सविधान बनाने का निर्णय लिया जिसमे लगभग सभी समुदायों और लोगो की भागीदारी हो l
- भारत की संविधान सभा इस मुद्दे पर अडिग थी की किसी महत्पूर्ण मुद्दे पर फैसला बहुमत के वजाए सर्वानुमति से लिया जाये l
संविधान के आलोचना
भारतीय संविधान की कई आलोचनाएँ है l इनमे मुख्य निम्नलिखित है :
- यह संविधान अस्त व्यस्त है l
- इस संविधान में सबकी नुमाइंदगी नहीं हो सकी है l
- यह संविधान भारतीय परिस्थितियों के अनुसार नहीं है l
- यह विदेशी संविधानो की नक़ल है l
आलोचनाओं की सत्यता
- किसी भी देश का संविधान पूर्ण नहीं होता है l समय के साथ साथ इसमें खामिया उजागर होती रहती है इसलिए भारतीय संविधान भी उसका एक हिस्सा है l
- दलित लोगो ने इसी संविधान का सहारा लेकर अपने जमीदारो के खिलाफ अपने ऊपर हो रहे अन्याय पर मुक़दमा दायर किया और न्याय भी प्राप्त किया l
- भारत में परिस्थितियां एनी देशों से भिन्न है क्योकि यहाँ अनेक जाति और धर्म के लोग निवास करते है l इसलिए यहाँ अन्य देशो से भिन्न संविधान की जरूरत पड़ी l
सीमाएँ
- भारतीय संविधान में राष्ट्रीयता एकता के धारणा बहुत केंद्रीकृत है l
- इसमे लिंगगत न्याय के कुछ महत्वपूर्ण मसलों खासकर परिवार से जुड़े मुद्दों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया है l
- गरीब और विकासशील देश में सामाजिक – आर्थिक कुछ बुनियादी अधिकारों को मौलिक अधिकारों में न डालकर राज्य के नीति निर्देशक तत्व वाले खंड में दल किया गया है l
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