द्वारका – कृष्ण की नगरी
महाभारत में कृष्ण का निवास स्थान मथुरा को छोड़कर द्वारका में बसाने का विवरण मिलता है l मुख्य रूप से द्वारका बसाने का कारण मगध नरेश जरासंध से मथुरावासियों की रक्षा करना था l जरासंध मथुरा नरेश कंस का ससुर और मित्र था l कंस की मृत्यु का बदला लेने के लिए जरासंघ ने मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया परन्तु असफल रहा l जरासंघ के आक्रमण से प्रजा बहुत त्रस्त थी l इसी से परेशान होकर श्री कृष्ण ने नगर को द्वारका में स्थानांतर करने का निर्णय लिया l श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था l उनका बचपन गोकुल में बिता और यशोदा मैया ने बड़े लाड़ प्यार से उनका पालन पोषण किया लेकिन राज उन्होंने ने द्वारका में ही किया l उन्होंने पांडवों को महाभारत के युद्ध में विजय दिलाई l द्वारका नगरी श्री कृष्ण की कर्मभूमि थी l जहाँ से उन्होंने पूरे भारत में यश कमाया l श्राप के कारण द्वारका का विनाश हो गया l श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद पूरी नगरी जलमग्न हो गयी l
श्री कृष्ण अपने कुछ साथियों के साथ द्वारका आये थे l पुराणों के अनुसार भगवान् विश्वकर्मा ने द्वारका नगरी का निर्माण समुद्र के बीचों बीच श्री कृष्ण के आग्रह करने पर किया था l श्री कृष्ण ने यहाँ पर 36 वर्षों तक राज्य किया l जब श्री कृष्ण ने विदा ली तो उसके बाद द्वारका पर यादव कुल के कई शासकों ने शासन किया l यादव कुल के अंतिम शासक श्री कृष्ण के परपोते वज्रनाभ यादवों के अंतिम युद्ध में जीवित बच गए थे जिन्हें अर्जुन हस्तिनापुर ले आये और उन्हें मथुरा का शासन संभालने के लिए दे दिया l इसलिए मथुरा को वज्रमंडल भी कहा जाता है l
पुरातात्विक साक्ष्यों से यह पता चला है की द्वारक नगरी आज से लगभग 5000 वर्ष पहले अस्तित्व में थी l जहाँ पर आज द्वारकाधीश मंदिर है वहां उस समय श्री कृष्ण का नीजी महल और हरीगृह था l यही कारण है की श्री कृष्ण भक्तो के लिए यह स्थान पवित्र माना जाता है l आज जो मंदिर हमारे सामने है वह 16वीं शाप्ताब्दी का निर्माण है l द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चाँदी के सिंहासन पर श्री कृष्ण की चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है l जिन्हें रणछोड़जी भी कहा जाता है l
द्वारका नगरी अति प्राचीन कई नगरों में से एक थी l यह नगरी गुजरात के द्वारका शहर में है l द्वारका नगरी चरों तरफ से उच्ची दीवारों से घिरी हुई थी जिसमे बहुत सारे बड़े बड़े द्वार थे l शहर समुद्र के बिलकुल बीचों बीच बनाया गया था l इसकी दीवारों के अवशेष समुद्र के नीचे अरब सागर में गुजरात के पश्चिम तट पर प्राप्त हुए है l द्वारका को प्राचीन कल में कुशस्थली के नाम से जाना जाता था l पुराणों की कथा के अनुसार राजा कुश के द्वारा यज्ञ किये जाने के कारण इस स्थान का नाम कुशस्थली पड़ा था l इसी स्थान पर द्वारकाधीश का मंदिर है l इस क्षेत्र में अनेक मंदिर है l यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता अति मनोरम है l मुगलों के आक्रमण के द्वारा यहाँ के बहुत सारे मंदिरों को नष्ट कर किया था l यहाँ पूरा क्षेत्र समुद्र तट पर है जिसका नजारा अति मनमोहक है l
सन 2005 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्वाधान में भारतीय नौसैनिको ने समुद्र के नीचे बहुत सारे ऐसे पाषाण खंडो और अवशेषों की खोज की जिससे पता चलता है की प्राचीन काल में यहाँ पर द्वारका नगरी उपस्थित थी l बाद में सन 2007 में जब दुबारा अनुसंधान किया गया तो कुछ भवनों की अवशेष मिले l जिससे ये बात और स्पष्ट हो गयी की यहाँ पर द्वारका नगरी थी l समुद्र के भीतर से कई प्रकार की वस्तुयों को बाहर निकला गया और देश विदेशों की अत्या आधुनिक प्रयोगाशालयों में जाँच के लिए भेजे गये है l अभी तक की जाँच से यह पता चला है की यह अवशेष 5000 वर्ष पुराने है l समुद्र वैज्ञानिको के निर्देशन में जो अवशेष खोजे गए है उनमे अधिकतर चूना पत्थर की है l ये अवशेष बहुत बड़े भवनों के है l जिससे इस बात की पुष्टि होती है की द्वारका नगरी यहाँ थी l चूना पत्थर बहुत लम्बे समय तक बिना सड़े रह सकता है l बाकी अवशेष नष्ट हो गए है l
माता गांधारी ने श्री कृष्ण को अभिशाप दिया था की जिस प्रकार से पूरे कौरव वंश का विनाश हुआ है उसी प्रकार से यदुवंशियों का भी विनाश हो जायेगा l माता गांधारी श्री कृष्ण को ही महाभारत युद्ध का दोषी मानती थी l पुराणों के अनुसार एक और कथा है जिसके अनुसार महर्षि विश्वामित्र देवर्षि नारद और कण्व आदि लोगो की साथ महाभारत के 36 वर्ष पश्चात् द्वारका पहुचे l ये लोग विश्राम कर रहे थे की श्री कृष्ण के पुत्र सांबा को इनसे मजाक करने की सूझी और अपने कुछ साथियों के साथ सांबा स्त्री रूप में उनके सामने गए और मजाक करने लगे इससे महर्षि विश्वामित्र और नारद मुनि काफी अपमानित हुए और उन्होंने श्राप दिया की तुम्ही यदुवाशियों के विनाश के कारण बनोगे l