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न्यायपालिका नोट्स कक्षा 11 राजनीति विज्ञान

न्यायपालिका नोट्स कक्षा 11 राजनीति विज्ञान

न्यायपालिका नोट्स कक्षा 11 राजनीति विज्ञान

न्यायपालिका नोट्स कक्षा 11 राजनीति विज्ञान के अंतर्गत आप न्यायपालिका की संरचना, कार्य और शक्तियों, जनहित याचिकाएँ, जनहित याचिकाओं के प्रभाव का अध्ययन करेंगे l न्यायपालिका नोट्स कक्षा 11 पीडीऍफ़ नोट्स यहाँ से डाउनलोड करे l

न्यायपालिका (Judiciary)

सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग है l भारत का सर्वोच्च न्यायालय वास्तव विश्व के सबसे शक्तिशाली न्यायालयों में से एक है l 1950 से ही न्यायपालिका ने संविधान की व्याख्या और सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है l न्यायपालिका मौलिक अधिकारों की रक्षा करके भारत में लोकतंत्र को मजबूत बनाती है l 

न्यायपालिका की स्वतंत्रता

न्यायपालिका की विशेषताएँ 

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न्यायाधीशों की नियुक्ति: न्यायपालिका की कठिन प्रक्रिया

भारत के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया: महाभियोग

न्यायाधीशों को पद से हटाने की महाभियोग की प्रक्रिया भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के समान है l

न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया महाभियोग पर : केस स्टडी

न्यायपालिका की संरचना

भारत में न्यायपालिका की एकीकृत न्याय प्रणाली स्थापित की गई है l विश्व के अन्य देशों के विपरीत भारत में अलग से प्रांतीय स्तर पर न्यायपालिका की संरचना नहीं है l भारत में न्यायपालिका की संरचना पिरामिड की तरह है l इसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय फिर उच्च न्यायालय और बाद में जिला न्यायालय है l जिला न्यायालय के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की अधीनस्थ न्यायालय आती हैं l न्यायपालिका की संरचना जिला स्तर पर भी विभाजित है l न्यायपालिका की संरचना को आइए इस फ्लो चार्ट के द्वारा सीखते हैं:

न्यायपालिका की संरचना

भारत में सर्वोच्च न्यायलय विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली न्यायालय में से एक है l वह संविधान द्वारा तय की गई सीमाओं के अंदर ही कार्य करता है l सर्वोच्च न्यायलय के कार्य और उत्तरदायित्व संविधान में दर्ज किए गए हैं l सर्वोच्च न्यायलय को खास किस्म का क्षेत्राधिकार प्राप्त है l सर्वोच्च न्यायलय ने समय समय पर संविधान की व्याख्या की है l सर्वोच्च न्यायलय संविधान के मूल ढांचे में कोई भी परिवर्तन करने की इजाजत नहीं देता है l सर्वोच्च न्यायलय ने न्यायिक सक्रियता के द्वारा मौलिक अधिकारों को गरीब और दमितों तक पहुचायां है l आइये फ्लोचार्ट के द्वारा सर्वोच्च न्यायलय के क्षेत्राधिकार को समझने की कोशिश करते हैं:

सर्वोच्च न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार

न्यायिक सक्रियता: जनहित याचिकाओं की शुरुआत

भारत में न्यायिक सक्रियता का दौर सन 1979 के दौरान देखने में आता है l इस दौरान न्यायपालिका ने खुद ही ऐसे कदम उठाए जिससे संविधान के अधिकार दमित और निचले तबके के लोगों तक पहुंच पाए l

जनहित याचिकाओं की शुरुआत

भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन जनहित याचिका या सामाजिक व्यवहार याचिका रही है l 1979 में इस बदलाव की शुरुआत करते हुए न्यायपालिका ने कैसे मुकदमे की सुनवाई करने का निर्णय लिया l जिसे पीड़ित लोगों ने नहीं बल्कि उनकी ओर से दूसरों ने दाखिल किया था l क्योंकि इस मामले में जनहित से संबंधित एक मुद्दे पर विचार हो रहा था l अतः इसे और ऐसे अन्य मुकदमों को जनहित याचिकाओं का नाम दिया गया l 

 हुसैनारा खातून बनाम बिहार सरकार

सर्वप्रथम सन 1979 में समाचार पत्रों में विचाराधीन कैदियों के बारे में कुछ खबरें छपी l बिहार की जेलों में कैदियों को काफी लंबी अवधि से बंदी बना रखा जा रहा था l जिन अपराधों के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था l यदि उसमें उन्हें सजा हो भी जाती तो भी वह इतनी लंबी अवधि के लिए कैदी नहीं बने रह सकते थे l  इस खबर को आधार बनाकर एक वकील ने याचिका दायर की l सर्वोच्च न्यायालय ने यह मुकदमा चलाया यह पहली जनहित याचिका के रूप में प्रसिद्ध हुआ l इस मुकदमे को हुसैनारा खातून बनाम बिहार सरकार के नाम से जाना जाता है l ऐसे ही और अन्य जनहित याचिकाएँ  के बारे में आपको बताते हैं l 

कुछ प्रसिद्ध जनहित याचिकाएँ  

न्यायिक सक्रियता(जनहित याचिकाओं) के सकारात्मक प्रभाव:

  1. जनहित याचिकाओं (न्यायिक सक्रियता) का हमारी राजनीतिक व्यवस्था पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा l 
  2. न्यायिक सक्रियता के कारण व्यक्तियों को ही नहीं बल्कि विभिन्न समूह को भी अदालत जाने का अवसर मिला l 
  3. इसने न्याय व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाया l 
  4. जनहित याचिकाओं एक और लाभ यह हुआ कि कार्यपालिका उत्तरदाई बनने पर मजबूर हुई l 
  5. न्यायिक सक्रियता (जनहित याचिकाओं) के द्वारा चुनाव प्रणाली में भी सुधार हुए l स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के प्रयास में सुधार हुआ l 

जनहित याचिकाओं के नकारात्मक प्रभाव

  1. इससे न्यायालयों में काम का बोझ बढ़ा है l 
  2. न्यायिक सक्रियता(जनहित याचिकाओं) से विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका के कार्यों के बीच का अंतर धुंधला हो गया l 
  3. न्यायालय ऐसी समस्या में उलझ गया जिसे कार्यपालिका को हल करना चाहिए l 
  4. इससे सरकार के तीनों अंगों के बीच पारस्परिक संतुलन रखना मुश्किल हो गया है l 
  5. न्यायिक सक्रियता से इस लोकतांत्रिक सिद्धांत को आघात पहुंच सकता है l 

न्यायपालिका और अधिकार में संबंध

न्यायिक पुनरावलोकन: न्यायिक पुनरावलोकन सर्वोच्च न्यायालय के संभवतया सबसे महत्वपूर्ण शक्ति है l  

न्यायपालिका और संसद

न्यायलय की सक्रियता से राजनीतिक व्यवहार बर्ताव से संविधान को ठेंगा दिखाने की प्रवृति पर अंकुश लगाया गया है l पहले जो विषय जैसे राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियां न्यायिक पुनरावलोकन के दायरे में नहीं आते थे l उन्हें भी अभी दायरे में लाया गया है l सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय की स्थापना के लिए कार्यपालिका की संस्थाओं को निर्देश दिए हैं l उदाहरण के लिए हवाला मामले नर्सिंग मामले पेट्रोल पंप के अवैध आवंटन अनेक मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो को निर्देश दिए गए हैं कि राजनेताओं और नौकरशाहों के विरुद्ध जांच करें l

न्यायपालिका और विधायिका में टकराव

न्यायपालिका और विधायिका में टकराव के ऐसे कई मौके आए जब सर्वोच्च न्यायालय और संसद आमने-सामने आ गए l  ऐसा ही एक मामला संपत्ति के अधिकार से जुड़ा हुआ है l जिसमें संसद के संविधान को संशोधित करने की शक्ति के संबंध में संसद और न्यायपालिका के बीच टकराव हुआ l संविधान लागू होने के तुरंत बाद संपत्ति के अधिकार पर संसद संसद ने रोक लगा दी थी l ऐसा उसने भूमि सुधारों के लिए किया था l न्यायालय ने निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों को सीमित नहीं कर सकती है l 

संसद और न्यायपालिका के बीच विवाद के केंद्र में निम्नलिखित मुद्दे थे: 

1967 से 1973 के बीच न्यायपालिका और संसद के बीच काफी विवाद रहे जो निम्न है: 

भूमि अधिग्रहित करने के कारण 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार

इसमें निम्नलिखित प्रश्नों को जन्म दिया:

केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

इससे पिछले 23 सालों से चला आ रहा विवाद समाप्त हो गया l यह भी सिद्ध हुआ संविधान की व्याख्या करने का अधिकार सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय के पास है l  

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