NCERT SOLUTION CLASS XII HISTORY IN HINDI
अध्याय:13 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन
1 . महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया ?
उत्तर : महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए निम्न कार्य किए:
1. उन्होंने सबसे पहले अपने राजनितिक गुरुगोपालकृष्ण गोलखे के कहने के अनुसार कई वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा की ताकि वे इस भूमि और इसके लोगों को अच्छी तरह जान सके l
2. उन्होंने सर्व साधारण की तरह मामूली कपड़े विशेषकर खद्दर के कपड़े पहने l हाथ में आम किसान की तरह लाठी उठाई, चरखा काता, कुटीरउद्योग-धंधों, हरिजनों के हितों, महिलाओं के प्रति सद्व्यवहार और सच्ची सहानुभूति रखने के साथ ही बार-बार यह दोहराया की भारत गाँवों में बस्ता है, किसानों और गरीब लोगों की समृधि और खुशहाली के बिना देश की उन्नति नहीं हो सकती l
2. किसान महात्मा गाँधी को किस तरह देखते थे ?
उत्तर :
1. किसान महात्मा गाँधी को अपना हितौषी समझते थे l वे मानते थे की गाँधीजी भू-राजस्व को कम करने, उदारतापूर्वक भू-राजस्व वसूली के लिए सरकार-सरकारी अधिकारीयों, जमींदारों, जोतदारों, ताल्लुक्दारों पर दबाव डाल सकते हैं l
2. किसान यह भी मानते थे की गाँधी जी किसानों को हर तरह से शोषण से मुक्ति दिला सकते हैं l गाँधी जी उन्हें समझते है और वे उनकी भाषामें उन्हें हर समय समस्या के समाधान भी सुलझा सकते हैं वे ग्रामीण क्षेत्रों से सबंधित समस्याओं और किसानों के कुटीर धंधों के समर्थक थे l
3. किसान गाँधीजी को जन-प्रिय नेता और अपने में से एक समझते थे lउन्हें विश्वास था की गाँधीजी उन्हें अंग्रेजों की दासता,जमींदारों के शोषण और साहूकारों के चुंगल से अहिंसात्मक आंदोलनोंऔर शांति-प्रिय प्रतिरोध के जरिये मुक्ति दिलासकतेहैं।
3.नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था l
उत्तर : नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्पूर्ण मुद्दा इसलिए बन गया कियोंकि उन दिनों के नमक उत्पादन और विक्रय पर ब्रिटिष राज्य को अधिकार प्राप्त था l नमक गरीब से गरीब और आमिर से आमिर सभी धर्म और जातियों के जरिये प्रयोग किया जाता था l नमक कानून को तोड़ने का मतलब था विदेशी दासता और ब्रिटिश शासन की अवज्ञा करना, उससे प्रेरित हो कर छोटे अन्य कानूनों को तोड़ना ताकि स्वराज्य और पूर्ण स्वतंत्रता देशवासियों को मिल जाए और स्वंत्रता का संग्राम का अंतिम उद्देश्य पूरा हो सके l
4.राष्ट्रिय आंदोलनके अध्ययन के लिए अखबार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं ?
उत्तर : राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अखबार अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं :
1. अखबार जनसंचार के सबसे महत्त्वपूर्ण साधन हैं और यह विशेषकर पढ़े-लिखे व्यक्तियों पर प्रभाव डालते हैं और प्रबुद्ध लोगों, लेखकों, कवियों, पत्रकारों, साहित्यकारों, विचारकों से प्रभावित होते हैं l
2. अखबार जनमत का निर्माण और अभिव्यक्ति करते हैं यह सरकार और सरकारी अधिकारीयों और लोगों में विचारों और समस्या के विषय में जानकारी और प्रगति में हो रहे कामों और उपेक्षित कार्यों और क्षेत्रों की जानकारी देते हैं
3. राष्ट्रिय आंदोलन के दौरान जो लोग अखबार पढ़ते हैं वो देश में होने वाली घटनाओं, गतिविधियों, विचारों आदि को जानते हैं l
5. चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया ?
उत्तर: चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक निम्न करणों से चुना गया l
1. चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक इसलिए चुना गया क्योंकि चरखा गाँधीजी को प्रिय था l गाँधीजी मानते थे की आधुनिक युग में मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर श्रमिकों के हाथों से काम और रोजगार छीन लिया है l
2. गाँधीजी ने मशीनों की आलोचना की और चरखे को ऐसे मानव समाज के प्रतीक के रूप में देखा जिसमें मशीनों और प्रौद्योगिकीको बहुत महिमामंडित नहीं किया जाएगा l गाँधीजी मानते थे की मशीनों से श्रम बचाकर लोगों को मौत के मुँह में धकेलना या उन्हें बेरोजगार करके सड़क पर फेकने के बराबर है l चरखा धन के केंद्रीयकरण को रोकने में भी मददगार है l
6. असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था ?
उत्तर :
1. असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध था l यह गाँधीजी के द्वारा ब्रिटिश सरकार के जरिये थोपे गए रॉलेट एक्ट जैसे कानून को वापस लिए जाने के लिए जन आक्रोश और प्रतिरोध अभिव्यक्ति का लोकप्रिय माध्यम था l
2. असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध आंदोलन था क्योंकि राष्ट्रिय नेता उन अंग्रेज अधिकारीयों को कठोर दंड दिलाना चाहते थे जो अमृतसर के शांतिपूर्ण जलियाँवाला बाग में हुए प्रदर्शनकारियों और जलसे में भाग लेने वालों पर अत्यचार करने के लिए उत्तरदायी थे l
3. यह आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध था क्योंकि यह खिलाफत आंदोलन कार्यों के साथ सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों-हिंदू और मुसलमानों को मिलाकर औपनिवेशिक शासन के साथ जनता का असहयोग को अभिव्यक्त करने का माध्यम था l
4. असहयोग आंदोलन ने सरकारी अदालतों का बहिष्कार करने के लिए भी सर्व–साधारण और वकीलों को कहा l गाँधीजी के कहने पर वकीलों ने अदालतों में जाने से मना करदिया l
5. इस व्यापक लोकप्रिय प्रतिरोध का प्रभाव अनेक कस्बों पर भी पड़ा, वे हड़ताल पर चले गए l
6. असहयोग आंदोलन का प्रतिरोध देश के ग्रामीण क्षेत्र में भी दिखाई दे रहा था l अवध के किसानों ने कर नही चुकाया, कुमाऊँ के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारीयों का सामान ढोने से साफ मना कर दिया यह सब इस बात के उदाहरण है l
7.गोल मेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नही निकल पाया ?
उत्तर : इतिहास के रिकार्ड के अनुसार ब्रिटिश सरकार ने 1930 से लेकर 1931 तक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया था l
1. पहली गोलमेज वार्तालंदन में नवंबर 1930 में आयोजित की गयी थी जिसमे देश के प्रमुख नेता शामिल नही हुए। इस कारण यह बैठक निरर्थक साबित हुई l सरकार नही जानती थी की बिना प्रमुख नेताओं के लंदन में गोलमेज बुलाना निरर्थक होगा l
2. सरकार ने दुसरे गोलमेज सम्मेलन की तैयारी शुरू की l वायसराय लार्ड इर्विन ने जनवरी 1931 में ही महात्मा गाँधीको जेल से रिहा कर दिया l अगले महीने उन्होंने गाँधी जी के साथ कई लंबी बैठकों के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेना, सारे कैदियों की रिहाई और तटीय क्षेत्रों में नमक उत्पादन की अनुमति दी थी l
3. फिर 1931 के आखिर में ब्रिटेन की राजधानी लंदन में आयोजित हुआ l उसमें महात्मा गाँधी भारतीय राष्ट्रिय कोंग्रेज की ओर से प्रतिनिधित्व और नेतृत्व कर रहे थे l
8.महात्मा गाँधी ने राष्ट्रिय अंदोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला ?
उत्तर : गाँधी जी ने राष्ट्रिय आंदोलन के स्वरूप को निम्नलिखित विचारों, तरीकों, विचारधारा, कार्यप्रणाली, आंदोलनों आदि के द्वारा बदल डाला :
1. गाँधीजी स्वदेश आये और 1915 से लेकर जनवरी 1948 तक अपने दर्शन और विचारधारा से लोगों को विभिन्न माध्यमों से अवगत कराते रहे l उनके दर्शन के मुख्य सिद्धांत अथवा आधारभूत स्तंभ थे
a) सत्याग्रह
b) आहिंसा शांति
c) दरिद्रनारायण के प्रति सच्ची हमदर्दी
d) महिलाओं का सशक्तिकरण
e) साम्प्रदयिक सदभाव
2. भारतीय ग्रामीण क्षेत्र एंव उनमे रहने वाले लोगों के हितों के बारे में सोचना, करना और लोगों को प्रेरणा देना l गाँधीजी ने भारत आने से पहले ही दक्षिण अफ्रीका में अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई l उन्होंने मानववाद, समानता, आदि के लिए प्रयास किए तथा रंग भेदभाव, जाती भेदभाव के विरुद्ध सत्याग्रह किया और विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त की l
3. गाँधीजी ने अपने भाषणों पत्र-पत्रिकाओं में लिखे लेखों, पुस्तकों आदि के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ताधारियों को यह जता दिया की भारत में जो सर्वत्र दरिद्रता, भुखमरी, निम्न जीवन स्तर, अशिक्षा, अन्धविश्वास और समाजिक फूट देखने को मिलती है उसके लिए ब्रिटिश शासन ही उत्तरदायी है क्योकि अंग्रेजों ने वर्षों से भारत का न केवल राजनैतिक शोषण किया हैं बल्कि इसका आर्थिक, समाजिक, संस्कृतिक और अध्यात्मिक शोषण भी किया है l
9. निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है ? ये स्रोत सरकारी ब्यौरों से किस तरह भिन्न होते हैं ?
उत्तर : निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में निम्न तथ्यों का पता चलता है :
1. जिस भाषा में पत्र और आत्मकथा लिखी जाती है उससे संबंधित उस व्यक्ति की जानकारी के बारे में हमें पता चलता है l उसको पढकर हम उन व्यक्तियों के भाषा स्तर आदि को भीजान सकते हैं l
2. आत्मकथाएँ व्यक्ति के संपूर्ण जीवनकाल, जन्मस्थान, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, व्यवसाय, रुचियों, प्राथमिकताओं, कठिनाइयों, जीवन में आए उतार-चढ़ाव, जीवन से जुडी घटनाओं आदि के बारे में भी बताती हैं l
3. निजी पत्र राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान जो डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने जवाहरलाल नहरूको लिखे उसमें उन्होंने कोंग्रेज के कार्यक्रम, उनकी प्राथमिकताएँ आदि के बारे में जानकारी दी l इसी तरह जो निजी पत्र जवाहरलाल ने महात्मा गाँधी को लिखाउनमें भी विभिन्न नेताअपने विचार, कार्यक्रम, कार्यक्षमता आदि की जानकारी दी l
4. सरकारी ब्यौरों से स्रोतों के रूप में निजी पत्र और आत्मकथाएँ पूरी तरह भिन्न होती हैं l सरकारी ब्यौरे प्राय: गुप्त रूप से लिखे जाते हैं। ये लिखाने वाली सरकारे या लिखने वालें विवरणदाता या लेखकों के पूर्वाग्रहों, नीतियों, दृष्टिकोणों आदि से प्रभावित होते हैं l जबकि निजी पत्र दो व्यक्तियों के बिच में आपसी संबंध, विचारों के आदान-प्रदान और निजी स्तर से जुडी सूचनाएँ देने के लिए होते हैं l