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Class 9 Social Science Chapter 6 in Hindi लोकतांत्रिक अधिकार कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान

लोकतांत्रिक अधिकार कक्षा 9 सामाजिक विज्ञान

अधिकार लोकतांत्रिक मौलिक कानूनी


ग्वांतानामो बे जेल और एमनेस्टी इंटरनेशनल

निष्कर्ष :

इस उदाहरण में एक देश दूसरे देशों के अधिकारों का हनन कर रहा है ।
सऊदी अरब में नागरिक अधिकार

निष्कर्ष :

यहां के नागरिकों को कोई भी राजनैतिक कानूनी या संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है ।

कोसोवो का नरसंहार

निष्कर्ष

लोकतंत्र को सही से लागू न कर पाने के कारण युगोस्लाविया के कई टुकड़े हो गए ।

अधिकार

ये लोगों के तार्किक दावे हैं इन्हें समाज में स्वीकृति और अदालतों द्वारा मान्यता मिली होती है । अधिकार हमें खुशी से बिना डर भय के और अपमानजनक व्यवहार से बचकर जीने में मदद करते हैं इसके साथ ही अधिकार वे हैं जो दूसरों के अधिकारों के भी आदर और सम्मान करें न कि उनके अधिकारों का हनन करे ।

भारतीय संविधान में अधिकार

भारतीय संविधान में नागरिकों को 3 प्रकार के अधिकार प्राप्त है :

मौलिक

कानूनी

राजनैतिक

कानूनी अधिकार

वे अधिकार जो सरकार बनाती है जो जनता यानी समाज की भलाई के लिए जरूरी होते हैं ऐसे अधिकारों के लिए नागरिक न्यायालय में मुकद्दमा नहीं कर सकता सरकार के ख़िलाफ़ नहीं जा सकता है । बशर्ते इन क़ानूनों में मौलिक अधिकारों का हनन न हो रहा हो ।

राजनैतिक अधिकार


भारतीय संविधान में नागरिकों को राजनैतिक अधिकार के रूप में वोट यानि कि मतदान करने का अधिकार दिया गया है जो कि संविधान के द्वारा दिया गया एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अधिकार है ।

मौलिक अधिकार

वे अधिकार जो मनुष्य के जीवन जीने के लिए बुनियादी अधिकार होते हैं उन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है । भारतीय संविधान में 6 प्रकार के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है प्रारम्भ में भारतीय संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे जिसमें 1 सम्पत्ति का अधिकार भी मौलिक अधिकार था ।

समानता का

स्वतंत्रता का

धार्मिक स्वतंत्रता का

शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक

शोषण के विरूद्ध

संवैधानिक उपचारो का

समानता का अधिकार


समानता के अधिकार के अनुसार देश में छुआछूत ऊंच नीच और अपृश्यता को गैरकानूनी करार दिया गया है भारत के सभी नागरिक चाहे वो किसी भी जाति किसी भी धर्म किसी भी वर्ग या समुदाय से सम्बन्ध रखते हों को एक समान माना गया है संविधान की दृष्टि में सभी नागरिक एक समान है चाहे वो अमीर हो या गरीब ।
स्वतन्त्रता का अधिकार
स्वतन्त्रता के अधिकार के अन्तर्गत देश में कोई भी नागरिक बिना रोक टोक के कहीं भी आ जा सकते हैं कोई भी कार्य यानी कि रोज़गार कर सकते हैं अपनी अभिव्यक्ति को प्रकट कर सकते हैं । स्वतन्त्रता के अधिकार के अन्तर्गत कई प्रकार की स्वतन्त्रता दी गयी है जो निम्नलिखित हैं :

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

शांतिपूर्ण ढंग से जमा होने की स्वतंत्रता

कोई भी संस्थान या संगठन या संघ बनाने की स्वतन्त्रता

देश में कहीं भी आने जाने की स्वतंत्रता

कोई भी धंधा या पेशे चुनने की स्वतन्त्रता

शोषण के विरूद्ध अधिकार

कोई भी रहने और बसने की स्वतन्त्रता


समानता और स्वतंत्रता का अधिकार देते समय संविधान निर्माताओं ने इसका ख्याल रखा कि किसी भी नागरिक का शोषण न हो सके ताकि शक्तिशाली वर्ग कमज़ोर वर्गों के लोगों का शोषण न कर सके खासतौर से महिलाओं का शोषण ।

शोषण के विरूद्ध अधिकार के अन्तर्गत बंधुआ मजदूरी पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है

ऐसे किसी भी स्थान पर 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को नहीं लगाया जा सकता काम पर जहां उनकी जान को ख़तरा हो ।

मानव तस्करी पर पूर्णरूप से प्रतिबंध लगा दिया गया अर्थात किसी भी कार्य के लिए चाहे नैतिक और अनैतिक हो किसी मानव की खरीद और फरोख्त नहीं की जाएगी ।

धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार


भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी धर्म को संरक्षण नहीं प्रदान किया गया है अर्थात व्यक्ति अपने धर्मों का पालन स्वयं कर सकते हैं उनको किसी प्रकार की रोकटोक नहीं है । धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत देश में किसी भी नागरिक को कोई भी धर्म अपनाने उसको मानने और उसका प्रचार प्रसार करने की छूट दी गई है ।

आस्था और प्रार्थना करने की आज़ादी

किसी भी धर्म को मानने उसका प्रचार प्रसार करने की आज़ादी

किसी भी धर्म के प्रचार प्रसार करने के लिए संस्था या संगठन बनाने की आज़ादी

शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक अधिकार


भारतीय संविधान में शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक अधिकार विशिष्ट तौर से अल्पसंख्यकों की संस्कृति को बचाए रखने के लिए बनाया गया है ।

अल्पसंख्यकों की संस्कृति एवं भाषा संरक्षण का अधिकार दिया गया है ।

अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षिक संस्थाएं स्थापित करने का अधिकार दिया गया है ।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार

संवैधानिक उपचारों के अन्तर्गत सभी नागरिकों को अगर उनके अधिकारों का हनन होता प्रतीत होता है या उनके अधिकारों का हनन हो रहा है तो वह न्यायालय की शरण में आ सकते हैं मौलिक अधिकारों की सुनवाई सीधा सर्वोच्च न्यायालय या हाईकोर्ट यानि की उच्च न्यायालय में हो सकती है ।
मौलिक अधिकार लागू करवाने के लिए कोई भी नागरिक न्यायालय की शरण में जा सकता है ।


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