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स्थानीय शासन कक्षा 11 राजनीति

स्थानीय शासन के इस अध्याय में पंचायती राज की संरचना, कार्य, और महत्त्व पर चर्चा की गयी है l राज्य वित्त आयोग का स्थानीय शासन में योगदान l दिन प्रतिदिन के राजनितिक निर्णय और कार्यों में इसकी बढ़ती भूमिका विकेंद्रीकरण का नया पर्याय बन चुकी है l 

संदर्भ

भारत में यह मत रहा है कि स्थानीय निकाय केंद्र सरकार और राज्य सरकार की शक्तियों को कम करता है l  यही कारण है कि भारत में स्थानीय शासन को जो महत्व मिलना चाहिए वह अब तक नहीं मिल पाया है l  भारत में स्थानीय शासन के संरचना का मॉडल कुछ इस तरीके का है l  स्थानीय शासन के पास अपने खुद के आय के संसाधन कम है l आय के सीमित संसाधन होने के बावजूद स्थानीय शासन का महत्व कम नहीं होता है l  ऐसे बहुत से मौके आए जब यह देखने में आया कि स्थानीय स्तर पर कई मुद्दों को निपटाया गया l 

स्थानीय शासन क्या और क्यों?

लोकतंत्र का प्रतीक: स्थानीय शासन

लोकतंत्र का अर्थ होता है सार्थक भागीदारी और जवाबदेही l जीवन तर मजबूत साथ स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्य पूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है l जो काम स्थानीय स्तर पर किए जा सकते हैं वह काम स्थानीय लोगों तथा उनके प्रतिनिधियों के हाथ में ही रहने चाहिए l आम जनता राज्य सरकार या केंद्र सरकार से कहीं ज्यादा स्थानीय  समस्याओं और आवश्यकताओं से परिचित होती है l 

भारत में स्थानीय शासन की शुरुआत

स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन का गठन

एक गाँव के बाजार का दृश्य

स्थानीय शासन के अंतर्गत विषय

इसके अंतर्गत कुछ विषयों को शामिल किया गया है l  इन विषयों को राज्य की राज्य सूची से लिया गया है l  कुल मिलाकर 29 विषय चिन्हित किए गए हैं जिनको इसमें के अंतर्गत  रखा गया है l 

स्थानीय शासन के 29 विषय स्थानीय शासन के 29 विषय

73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन

सन 1989 में पी के थुंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की l संविधान का 73वाँ और 74वाँ संशोधन सन 1992 में किया गया l संशोधन के द्इवारा संविधान में 11वीं और 12वीं अनुसूची जोड़ी गयी l सके अंतर्गत 73वें संशोधन के अंतर्गत गांव के स्थानीय शासन को मान्यता दी गई l जबकि 74वें  संविधान संशोधन के तहत शहरी स्थानीय शासन को मान्यता प्रदान की गई l

स्थानीय शासन : शहरी क्षेत्र

ग्रामीण स्थानीय शासन को पंचायती राज भी कहा जाता है l आइए विस्तार से पंचायती राज अर्थात ग्रामीण स्थानीय शासन की संरचना की चर्चा करते हैं l

पंचायती राज की संरचना को समझने के लिए हमें इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करनी होगी l जो निम्नलिखित बिंदुओं के तहत समझे जा सकते हैं :

त्रिस्तरीय ढांचा

संविधान संशोधन होने के पश्चात पंचायती राज की संरचना की एक निश्चित संरचना अस्तित्व में आई l पंचायती राज की संरचना को तीन विभिन्न चरणों में बांटा गया है l इसके आधार पर ग्राम सभा, द्वितीय पायदान पर ब्लॉक समिति और तृतीय पायदान पर जिला पंचायत होती है l पंचायती राज की संरचना पिरामिड नुमा बनाई गई है l जिसके पायदान पर ग्रामसभा और शीर्ष पर जिला परिषद होती है l

चुनाव प्रणाली

आरक्षण की व्यवस्था

प्रारंभ में भारत के अनेक प्रदेशों की आदिवासी जनसंख्या को स्थानीय शासन से 73वें संविधान संशोधन के प्रावधानों से अलग रखा गया था l लेकिन 1996 में कानून बनाकर उनको भी पंचायती राज के प्रावधानों में सम्मिलित किया गया l

राज्य निर्वाचन आयोग

 राज्य निर्वाचन आयुक्त  कार्यकाल

मुख्य कार्य

राज्य वित्त आयोग 

सन 1993 से संविधान के अनुच्छेद 280 I(आई) के तहत सभी राज्यों में वित्त आयोग का गठन किया जाएगा l  वित्त आयोग में एक अध्यक्ष और 4 सदस्य होते हैं l  जिसमें 2 सदस्य पूर्णकालिक और दो अंशकालिक होते हैं l  वित्त आयोग का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है l  प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात वित्त आयोग का गठन किया जाता है l 

 वित्त आयोग के प्रमुख कार्य

 राज्य वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिशें 

भारत में 74वें संविधान संशोधन का लागू होना l 

74वें संविधान संशोधन शहरी निकायों के लिए किया गया है l  शहरों में नगर निगम और नगर पालिकाओं के द्वारा इसे लागू किया जाता है l  सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 31.16 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में निवास करती है l भारत की जनगणना 2011 के अनुसार शहरी परिभाषा के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को जरूरी माना गया है:

शहरी निकाय के कुछ आँकड़ें

स्थानीय शासन के चुनाव में लाखों प्रतिनिधि जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते है l इसमें महिलाओं और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए सीटे आरक्षित होती है l स्थानीय शासन में महिलाओं को आरक्षण मिलने से उनकी राजनितिक नेतृत्व की क्षमता का पता चलता है l

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