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किसान जमीदार और राज्य

NCERT SOLUTION

अध्याय:8 किसान जमीदार और राज्य


1.कृषि इतिहास लिखने के लिए आइन को स्रोत के रूप में इस्तेमाल करने में कौन सी समस्याँ हैं ? इतिहासकार इन समस्याओं से कैसे निपटते हैं ?

उत्तर :मुगलकालीन कृषि इतिहास लिखने के लिए आइन-ए-अकबरी को प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत के रूप में प्रयोग करने में चाहेविद्वानोंको अनेक समस्याएँ आती हैं तो भी वह इसे महत्त्वपूर्ण स्रोत मानते हैं l

1.      आइन जिसे अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फज्ज्ल ने लिखा था l खेतों की नियमित जुताई की तसल्ली करने के लिए, राज्य के नुमाइन्दों के जरिये करों की उगाही के लिए और राज्य व ग्रामीण स्त्तापोशों यानी की जिमिंदारों के बीके रिश्तों के नियमन के लिए जो इंतजाम राज्य ने किये थे, उसका लिखा-जोखा इस ग्रंथ में बड़ी सावधानी से पेश किया गया है l

2.      आइन का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य का एक ऐसा खाका पेश करना था जहाँ एक मजबूत सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बनाए रखता था l

3.      खुशकिस्मती से आइन की जानकारी के साथ-साथ हम उन स्रोतों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं जो मुगलों की राजधानी से दूर के इलाकों में लिखे गये थे

2.सोलहवीं-सत्रहवीं सदी में कृषि उत्पादन को किस हद तक महज गुजारे के लिए खेती कह सकते हैं ? अपने उत्तर के कारण सपष्ट कीजिए l

उत्तर:

1.      ऐसा नहीं हैं की मध्यकालीन भारत में खेती सिर्फ गुजारा करने के लिए की जाती थी l स्रोतों में हमे अक्सर जिन्स-ए-कामिल जैसे लफ्ज मिलते हैं l

2.      मुगल राज्य भी किसानों को ऐसी फसलों की खेती करने को बढ़ावा देतेथे क्योंकि इनसे राज्य को ज्यादा कर मिलता था l कपास और गन्ने जैसी फसले बेहतरीन जिन्स-ए-कामिल थीं l

3.      मध्य भारत और दक्कनी पठार में फैले हुए जमीन के बड़े-बड़े टुकड़ों पर कपास उगाई जाती थी,जबकि बंगाल अपनी चीनी के लिए मशहूर था l तिलहन और दलहन भी नकदी फसलों में आतीं थी l इससे यह पता चलता है की एक औसत किसान का पेट भरने के लिए होने वाले उत्पादन और व्यापार के लिए किए जाने वाले उत्पादन एक दुसरे से जुड़े थे l

4.      मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी : एक खरीफ और दुसरी रबी l यानि सूखे इलाकों और बंजर जमीन को छोड़ दे तो ज्यादातर जगहों पर साल में कम सेकम दो फसलें होती थीं l

3. कृषि उत्पादन में महिलाओं का विवरण दीजिये l

उत्तर:

1.      समाजों में आपने गौर किया होगा, उत्पादन की प्रक्रिया में मर्द और महिलाओं का खास योगदान रहता है यहाँ पुरुष और महिलाएँ कंधे से कंधा मिलाकर खेतों में काम करते हैं l

2.      महिलाएँ बुआई, निराई और कटाई के साथ-साथ पकी हुई फसल का दाना निकालने का काम करतीं हैं l सूत काटना, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने और गूंधने, और कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के काम उत्पादन के ऐसे पहलू थे जो महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे l

3.      महिलाओं की जैव वैज्ञानिक क्रियाओं को लेकर लोगों के मन में पूर्वाग्रह बने रहे l पश्चमी भारत में, रजस्वला महिलाओं को हल या कुम्हार का चाक छूने की इजाजत नही थीं l इसी तरह बंगाल में अपने मासिक-धर्म के समय महिलाएँ पानके बगान में नही घुस सकती थीं

4.विचाराधीनकाल में मौद्रिक कारोबार की अहमियत की विवेचना उदाहरण देकर कीजिए l

उत्तर : सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में मौद्रिक कारोबार की अहमियत:

1.      सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में किसानों को नकदी अथवा भू-राजस्वअदाकरने के छूट दी गई थी l किसानों को नकदी में भूराजस्व भुगतान की सुविधा के कारण मौद्रिक कारोबार को भारतीय अवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करने का अवसर मिला l

2.      ग्रामीण शिल्पकार ग्रामीण लोगों को विशेष प्रकार की सेवाएँ प्रदान करते थे l फसल कटने और पकने पर प्राय: उन्हें फसल का एक हिस्सा दिया जाता था लेकिन इस व्यवस्था के साथ-साथ किसान और शिल्पकार परस्पर लेन-देन के बारे में आपस में शर्तें तय करके लोगों को नकदी भुगतान करते थे l

3.      उदाहरण के तौर पर, अठारहवीं सदी के स्रोत बताते हैं की बंगाल में जमींदार उनकी सेवाओं के बदले लोहारों, बढ़ई और सुनारों तक को रोज का भत्ता और खाने के लिए नकदी देते थे l इस व्यवस्था को जजमानी कहते थे l

5.उन सबूतों की जाँच कीजिए जो ये सुझाते हैं की मुगल राजकोषीय व्यवस्था के लिए भू-राजस्व बहुत महत्त्वपूर्ण था l

उत्तर: मुगल राजकोषीय व्यवस्था के लिए भू-राजस्व का महत्त्व:

1.      जमीन से मिलने वाला राजस्व मुगल साम्राज्य की आर्थिक बुनियाद थी इस कारण से, कृषि उत्पादन पर नियंत्रण रखने के लिए और तेजी से फैलते साम्राज्य के सारे क्षेत्रों में राजस्व आकलन व वसूली के लिए यह जरुरी था की राज्य एकप्रषासनिकतंत्र खड़ा करे ।

2.      दीवान, जिसके दफ्तर पर पुरे राज्य की वित्तीय व्यवस्था के देख-रेख की जिम्मेदारी थीं ,इस तंत्र में शामिल था l इस तरह हिसाब रखने वाले और राजस्व अधिकारी खेती की दुनिया में दाखिल हुए और कृषि संबंधों को शक्ल देने में एक निर्णायक ताकत के रूप में उभरे l

3.      लोगों पर कर का बोझ निर्धारित करने से पहले मुगल राज्य ने जमीन और उस पर होने वाले उत्पादन के बारे में खास किस्म की सूचनाएँ इकट्ठाकरने की कोशिश की l भू-राजस्व के इंतजामात में दो चरण थे : पहला, कर निर्धारण और दूसरा वास्तविक वसूली l

6.आपके मुताबिक कृषि समाज में सामाजिक व आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने में जाती किस हद तक एक कारक थी ?

उत्तर: कृषि समाज के विभिन्न संबंधों को प्रभावित करने मेंएक कारक के रूप में जाती की भूमिका :

1.      जाति और जाति जैसे अन्य भेदभावों की वजह से खेतिहर किसान कई तरह के समूहों में बटें थे l खेतों की जुताई करने वालों में एक बड़ी तादाद ऐसे लोगों की थी जो नीच समझे जाने वाले कामों में लगे थे, या फिर खेतोंमें मजदूरी करते थे l

2.      यद्द्पिखेती लायक जमीन की कमी नहीं थी, फिर भी कुछ जाति के लोगों को सिर्फ नीच समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे l इस तरह वे गरीब रहने के लिए मजबूर थे l जनगणन तो उस वक्त नहीं होती थी, पर जो थोड़े बहुत आँकड़े और तथ्य हमारे पास हैं उनसे पता चलता है की गाँव की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसे ही समूहों का था l

3.      दुसरे संप्रदायों में भी भेदभाव फैलने लगे थे l मुसलमान समुदायों में हलालखोरान जैसे ‘नीच’ कामों से जुड़े समूह गाँव की हदों के बाहर ही रह सकते थे ; इसी तरह बिहार में मल्लाहजदाओं की तुलना दासों से की जा सकती थी l

4.      समाज के निचले तबकों में जाती, गरीबी और सामाजिक हैसियत के बिच सीधा रिश्ता थाl सत्रहवीं सदी में माड़वाड़ में लिखी गई एक किताब राजपूतों की चर्चा किसानों के रूपमें करती है l इस किताब के मुताबिक जाट भीकिसा थे मगर जाति व्यवस्था में उनकी जगह राजपूतों के मुकाबले नीची थी l

7.सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में जंगलवासियों की जिंदगी किस तरह बदल गई l

उत्तर :

1.      सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अखिल भारतीय स्तर पर जंगलों के फैलाव का औसत निकालना लगभग असंभव है , फिर भी समसयामिक स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर ये अंदाजा लगाया जा सकता है की यह औसत करीब-करीब 40 फीसदी था l

2.      समसामयिक रचनाएँ जंगल में रहने वालों के लिए जंगली शब्द का इस्तेमाल करती है l लेकिन जंगली होने का मतलब सभ्यता का न होना बिलकुल नही था, वैसे आजकल इस शब्द का प्रचलित अर्थ यही है l उन दिनों इस शब्द का इस्तेमाल ऐसे लोगों के लिए होता था जिनका गुजारा जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानांतरिय खेती से होता था l

3.      उदहारण के तौर पर भीलों में, बसंत के मौसम में जंगल के उत्पाद इकट्ठा किए जाते, गर्मियों में मछली पकड़ी जाती, मानसून के महीनों में खेती की जाती, और शरद व जोड़े के महीनों में शिकार किया जाता था l यह सिलसिला लगातार गतिशीलता की बुनियाद पर खड़ा था

4.      जहाँ तक राज्य का सवाल है, उसके लिए जंगल उल्ट फेर वाला इलाका था : बदमाशों को शरण देने वाला अड्डा l

5.      सामाजिक कारणों से भी जंगलवासियों के जीवन में बदलाव आए l कबीलों के भी सरदार होते थे, बहुत कुछ ग्रामीण समुदाय के “बड़े आदमियों” की तरह l कई कबीलों के सरदार जमींदार बन गये और कुछ तो राजा भी हो गये l और एक बड़ी सेना के निर्माण के लिए अपने ही भाई-बंधुओं को भर्ती करते थे ।

8. मुगल भारत में जमींदारों की भूमिका की जाँच कीजिए l

उत्तर :मुगल भारत में जमींदारों की भूमिका

1.      मुगल काल के भारत में जमींदार जमीन के मालिक होते थे l

2.      ग्रामीण समाज में उनकी ऊँची हैसियत होती थी l जमींदारों की समृद्धि का मुख्य कारण था, उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन जिसे ‘ मिल्कियत’ कहा जाता था l मिल्कियत जमीन पर दिहाड़ी मजदूर काम करते थे l

3.      जमींदारों को राज्य की ओर से कर वसूलने का अधिकार था l इसके बदले मेंउन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था l जमींदारों के पास अपने किले भी होते थे l अधिकांश जमींदार अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भी रखते थे l

4.      जमींदारों ने खेती लायक जमीनों को बसने में अगुआई की और खेतिहरों को खेती में साजो-सामान व उधादेकर उन्हें वहाँ बसने में भी मदद की l जमींदारों की खरीद-बिक्री से गाँवों में मौद्रिकरणकी प्रक्रिया में तेजी आई l

5.      जमींदार एक प्रकार का बाजार स्थापित करते थे जहाँ किसान अपनी फसलें बेचने आते थे l इसमें कोई संदेह नही हैं की जमींदार शोषणकारी निति अपनाते थे लेकिन किसानों के साथ उनके रिश्ते में पारस्परिकता, पैतृकवाद और संरक्षण की भावना रहती थी l दो पहलु इस बात की पुष्टि करते हैं l प्रथम, भक्ति संतों ने जहाँ बेबाकी से जातिगत और दूसरी किस्मों के अत्याचारों की नजिंदाकी l

6.      जमिंदोरों की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की वे अक्सर राज्य की ओर से कर वसूल कर सकते थे l इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था l सैनिक संसाधन उनकी ताकत का एक और जरिया था l ज्यादातरजमींदारों के पास अपने कीलें भी थी और सैनिक टुकड़ियाँ भी जिसमें घुड़सवारों, तोपखाने और पैदल सिपाहियों के जत्थे होते थे l

7.      इस तरह, अगर हम मुगलकालीन गाँवों में सामाजिक संबंधों की कल्पना एक पिरामिड के रूप में करें, तो जमींदार इसके संकरे मेंशीर्ष का हिस्सा थे l

9.पंचायत और गाँव का मुखिया किस तरह से ग्रामीण समाज का नियमन करते थे ? विवेचना कीजिए l

उत्तर :ग्रामीण समाज का पंचायत और मुखिया के जरिये निगमन

1.      पंचायत: गाँव की पंचायत में बुजुर्गें का जमावड़ा होता था l आमतौर पर वे गाँव के महत्त्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी संपत्ति के पुश्तैनी अधिकार होते थे l जिन गाँवों में कई जातियों के लोग रहते थे, वहाँ अक्सर पंचायत में भी विविधता पाई जाते थी l

2.      अल्पतंत्र: यह एक ऐसाअल्पतंत्र था जिसमें गाँवों के अलग-अलग संप्रदायों और जातियों की नुमाइंदगी होती थी फिर भी इसकी संभावना कम ही है l की छोटे-मोटे और ‘नीच’ काम करने वाले खेतिहर मजदूरों के लिए इनमे कोई जगह होती होगी l

3.      मुख्या या मुकद्दम : पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था l जिसे मुकद्दम या मंडल कहते थे l कुछ स्रोतोंसे ऐसा लगता है की मुख्या का चुनाव गाँव के बुजुर्गों की आम सहमती से होता था 

4.      कार्यकाल: मुखिया अपने ओहदे पर तभी तक बना रहता था जब तक गाँव के बुजुगों को उस पर भरोसा था l एसा नही है की बुजुर्ग उसे बर्खास्त कर सकते थे l गाँव के आमदनी व खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का मुख्य काम था l और इसमें पंचायत का पटवारी उसकी मदद करता था l

5.      खर्चा: पंचायत का खर्चा गाँव के उस आम खजाने से चलता था जिसमे हर व्यक्ति अपना योगदान देता था l इस खजाने से उन कर अधिकारियों की खातिरदारी का खर्चा भी किया जाता था जो समय-समय पर गाँव का दौरा किया करते थे l

6.      कार्य और उत्तरदायित्त्व: पंचायत का एक बड़ा कामयह तसल्ली करना था की गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोग अपने जाती की हदों के अंदर रहें l पूर्वी भारत में सभी शादियाँ मंडल की मौजूदगी में होती थीं l

7.      आय के स्रोत : पंचायतों को जुरमाना लगाने और समुदाय से निष्कासित करने जैसे ज्यादा गंभीर दंड देने के अधिकार थे l समुदाय से बाहर निकालना एक कड़ा कदम था जो एक सीमित समय के लिए लागु किया जाता था l इसके तहत दंडित व्यक्ति को गाँव छोड़नापड़ता था 


8.      जातिगत पंचायतें : ग्राम पंचायत के आलावा गाँव में हर जाति के अपनी पंचायत होती थी l समाज में ये पंचायतें काफी ताकतवर होती थीं l राजस्थान में जाती पंचायतें अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थी l 

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