Site icon edupedo

अध्याय:10 उपनिवेशवाद और देहात

NCERT SOLUTION CLASS XII HISTORY IN HINDI

अध्याय:10 उपनिवेशवाद और देहात

1.ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती क्यों थी ?

उत्तर : ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती इसलिय थे, कियोंकि :

1.        18वीं शताब्दी के अंत में जहाँ एक ओर कई जमींदार आर्थिक दृष्टि से संकट की स्थिति से गुजर रहे थे वहीं जोतदार धनी किसानों के रूप में अनेक गाँवों में अपनी स्थति मजबूत किए हुए थे l

2.        19वीं शताब्दी के शुरू के वर्षों के आते-आते इन जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े भू-खंडों पर ( जो कभी कभी कई हजार एकड़ में फैले थे ) प्राप्त कर लिए थे l

3.        स्थानीय व्यापार और साहूकार के कारोबार पर भी इन जोतदारों का नियंत्रण था l और इस तरह के अनेक क्षेत्रों को गरीब काश्तकारों पर व्यापक शक्ति का प्रयोग किया करते थे l

4.        ये जोतदार अपनी जमीन का बहुत बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जुतवाते थे l ये बटाईदार एक तरह से जोतदारों के अधीन होते थे l बटाईदार उनके खेतों पर मेहनत करते थे l अपने हल तथा बैल आदि लाते थे फसल के बाद कुल आधा भाग जोत्दोरों को दे देते थे l

2. जमीदार  लोग अपनी जमींदारियों पर किस प्रकार नियंत्रण बनाये रखते थे ?

उत्तर : जमींदार लोग अपने जमींदारियों पर नियंत्रण करने के लिए निम्न कदम उठाते थे l

1.        जमींदारों को अपनी जमींदारियों को बचाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल करते थे l इन्हीं रणनीतियों में से एक रणनीति फर्जी बिक्री की तकनीक थी l 

2.        फर्जी तकनीककेअंतर्गतजमींदार कई हथकंडे अपनाते थे उदाहरण केलिए जमींदार अपनी जमींदारी का कुछ हिस्सा अपनी माता को दे दिया करते थे l वो ऐा इसलिय करते थे कियोंकि अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने फैसला ले रखा था की स्त्रियों की सम्म्पति को छिना नही जाएगा l

3.        कई बार कम्पनी की राजस्व माँगको जान बुझकर जमींदारों के जरिये रोक लिया जाता था l और फिर राशी बढने के कारण कम्पनी के कुछ आदमी जमीन के कुछ भाग की नीलामी करते थे और जो जमींदारों के आदमियों के जरिये खरीद लिया जाता था और फिर राशी देने से मना करदिया जाता था l ऐसा कई बार चलता फिर कम्पनी के लोगों के जरिये मजबूरी में वो जमीन कम दाम पर उसी जमींदार को देदि जाती थी l

3.पहाड़ियालोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर कैसी प्रतिक्रिया दर्शाई ? 

उत्तर : पहाड़िया लोगों ने बहारिये लोगों के आगमन पर निम्न प्रक्रिया दर्शाई l

1.        18वीं शताब्दी में पहाड़ी लोगों को पहाड़िया कहा जाता था lवे राजमहल की पहाड़ियों के आस पास ही रहते थे और पहाड़ियों को अपना मूल आधार बनाकर आस-पास के मैदानों पर हमले बोलते रहते थे क्योंकिबाहरी किसान एक ही स्थान पर बस कर खेतीबाड़ी करते थे l वे लोग आकाल के दिनों में बहारिय लोगों पर हमला करके जबरदस्ती अनाज, पशु, धन-दौलत लुट ले जाते थे l

2.        वे बहारिये लोगो के साथ संबंध बनाने के लिए भी हमले करते थे l मैदानों में रहने वाले जमींदारों को पहाड़िया के मुखिया को भू-राजस्व देकर शांति खरीदनी पड़ती थी l

3.        कहा जाता है की बहारिय लोगों में कुछ व्यापारी भी होते थे जिन्हें पहाड़िया लोग अपने नियंत्रित मार्गों का प्रयोग करने की अनुमति देते थे और वो अपने वचन के बहुत पक्के होते थे वो वचन देते थे की व्यापारियों के माल को कोई नही लूटेगा l इस तरह कुछ ले दे कर दोनों इलाकों के लोगो में शांति बनी रहतीथी।

4.संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया ?

 उत्तर :

1.        संथाल लोगों ने पहाड़िया लोगों के सामने संघर्ष के समय झुककर जंगलों के अंदरूनी हिस्सों में स्थायी रूप से बसना शुरू कर दिया l और जमीनों को साफ कर वहाँ पर खेती बाड़ी करने लगे मगर लगान भुगतान करने के लिए संथालों को व्यापारियों और साहूकारों से ऊँची ब्याज दर पर कर्जा लेना होता था l सरकार भी उन्हीं का साथ देती थी l संथालों को दामिन इलाकों से धीरे धीरे अपने दावे छोड़ने के लिए मजबूर किया गया l

2.        1850 के दशक में संथालों ने औपनिवेशिक राज के विरुद्ध विद्रोह करने का निर्णय कर दीया गया, जिसके लिए 5500वर्गमील का क्षेत्र भालपुर और वीरभूम जिलों में से लिया गया l

5.दक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध क्यों थे ?

उत्तर : दक्कनकेरैयतऋणदाताओंकेप्रतिनिम्नकारणोंसेक्रुद्धथे।

1.        खेती की कीमत या लागतें बढ़ रही थीं l दक्कन में कम्पनी ने रैयतवाड़ी प्रथा लागु की l उपज का लगभग 50 प्रतिशत कम्पनी रैयतों से छीन लेती थी l इतनी भारी भू-राजव की रकम अदा कर पाना रैयतों के लिए काफी मुश्किल और आर्थिक दृष्टि से कष्टकारी था l

2.        1832 के बाद कृषि उत्पादों की कीमतों में तेजी से गिरावट आई और अगले 15 वर्षों तक इस स्तिथि में कोई सुधार नही आया l इसके परिणामस्वरूप किसानों की आमदनी में और भी गिरावट आ गई l इसी दौरान 1832-34 के दो-तीन वर्षों के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में भयंकर आकाल फैल गया l

3.        ऋणदाता के जरिये ऋण देने से इंकार किये जाने पर रैयत समुदाय को बहुत गुस्सा आया l वे इस बात के लिए ही क्रुद्ध नहीं थे की वे ऋण के गर्त में गहरे से गहरे डूबे जा रहे थे l अपने जीवन को बचाने के लिए ऋणदाता पर ही निर्भर थे बल्कि वो इस बात से ज्यादा नाराज थे की ऋणदाता वर्ग को उनकी हालत पर तरसभी नही आरहा l

7.पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालो की आजीविका से किस रूप में भिन्न थी ?

उत्तर : पहाड़िया लोगों के आजीविका संथालों की आजीविका से निम्न प्रकार से भिन्न थी l

पहाड़िया लोगों के आजीविका

1.        पहाड़िया लोगों के पास ऊँचाई पर स्थित सूबे वाले भू-भाग थे l

2.        वे कुछ समय बाद स्थायी कृषि क्षेत्र से हट कर झूम कृषि क्षेत्र पर अपनी आजीविका के लिए केंद्रित हो गये।

3.        जंगल और चरागाह पहाड़ियों की अर्थव्यवस्था के अटूट हिस्से थे l पहाड़िया लोग अपनी झूम खेती के लिए कुदाल का प्रयोग करते थे

4.        पहाड़िया लोग कम्पनी के अधिकारीयों के प्रति आशंकित रहते थे और उनसे बातचीत करने के लिए आसानी से तैयार नहीं होते थे l

5.        पहाड़ी लोग जंगल के उपज से अपनी गुजर-बसर करते थे l और प्राय: झूम खेती किया करते थे l वे जंगल के छोटे से हिस्से में झाड़ियों को काटकर और घास-फूस को जलाकर जमीन साफ करलेते थे

6.        पहाड़ी लोग अपनी कुदाल से जमीन को थोडा खुरच लेते थे कुछ वर्षौं तक साफ जमीन पर खेती करते थे और फिर उसे वर्षों के लिए छोडकर नये इलाके में चले जाते थे l

7.        पहाड़िया लोग पुरे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे l और ये भूमि उनकी पहचान और जीवन का आधार थी l वह बहारिय लोग के प्रवेश का विरोद्ध करते थे l उनके मुखिया लोग एकता बनाए रखते थे l आपसी लड़ाई-झगड़े निपटा देते थे l

संथालों की आजीविका


1.        राजमहल की पहाड़ियों में संथाल लोग जम गएl

2.        संथाल लोग आस-पास के जंगलों का सफाया करते हुए इमारती लकड़ी को काट ते थे l जमीन जोतते हुए उसमे चावल तथा कपास की खेती करते थे l

3.        संथाल के लोगों ने निचली पहाड़ियों पर अपना कब्जा जमा लिया था l संथाल लोग खेती में हल का प्रयोग करते थे lऔर इनका चिंह भी हल था l

4.        संथालों ने परिश्रम करके आंतरिक भू-भागों में गहरी जुताई करने के बाद कृषि योग्य भूमि को शानदार बना दिया l पहाड़िया लोग जब भी निचले इलाकों में घुसने की हिम्मत कतरे थे तो वो उन्हें भगा देते थे l

5.        संथालों ने अपने से पहले राजमहल की पहाड़ियों पर बसने वाले पहाड़ी लोगों को चट्टानी और अधिक बंजर भीतरी शुष्क भागों तक सिमित कर दिया l

6.        संथालों के पास पहाड़िया लोगों के मुकाबले अधिक उपजाऊ भूमि होती थी जिसके कारण पहाड़िया लोग खेती के अपने तरीकों को आगे सफलतापुर्वक नही चला सके l

7.        जिस भूमि पर संथालों ने अधिकार कर लिया वे स्थायी खेती करने वाले, अपनी स्वयत्ता स्वयं स्थापित करने वाले आदिवासियों के रोल में उभरते चले गये l 

6. इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद बहुत सी जमींदरियाँक्यों नीलाम कर दी गई ?

उत्तर : इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद जमींदारियों के नीलामी के मुख्य कारण :

1.        ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन सर्वप्रथम बंगाल में स्थापित किया गया था l वहाँ 1993 में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया गया था l

2.        इस्तमरारी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजस्व की राशी निश्चित कर दी थी l जो प्रत्येक जमींदार कोअदाकरनी होती थी l जो जमींदार अपनी निश्चित राशी नही चूका पाते थे l उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी भू-संपदाएँ नीलाम कर दी जाती थीं l जब भू-संपदा या नीलाम की जाती थी तो कम्पनी सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को वह भू-संपदा या जमींदारी बेच देती थी l

3.        इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किए जाने पर जो भी समय पर भू-स्वराज की रकम अदा नहीं करता था उस की जमींदारियों में से 75 प्रतिशत से अधिक जमींदरियाँ नए जमींदारों को देदी जाती थी l

4.        जमींदार से यह अपेक्षा की जाती थी की वह कम्पनी को नियमित रूप से राजस्व राशी करेगा और यदि वहऐसानहीं करेगा तो उसकी सम्पदानीलाम की जा सकती है l

8. अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित किया ?

उत्तर :अमेरिकीगृहयुद्धनेभारतमेंरैयतसमुदायकेजीवनकोनिम्नकारणोंसेप्रभावितहुआ।

1.        1861 में संयुक्त राज्य अमेरिका में गृहयुद्ध छिड़ गया तो ब्रिटेन के कपास क्षेत्र में तहलका मच गया l

2.        अमेरिका से आने वाली कच्ची कपास के आयात में भारी गिरावट आई l

3.        बंबई में कपास के सौदागरों ने कपास की आपूर्ति का आकलन करने और कपास की खेती को आधिकाधिक प्रोत्साहन देने के लिए कपास पैदा करने वाले जिलों का दौरा किया l जब कपास की कीमतों में उछाल आया तो बंबई के कपास निर्यातकों ने ब्रिटेन की माँग को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक कपास खरीदने का प्रयास किया l

4.        इन बातों का दक्कन के देहाती इलाकों में काफी असर हुआ l दक्कन के गाँवों के रैयतों को अचानक असीमित ऋण उपलब्ध होने लगा l उन्हें कपास उगाई जाने वाले प्रत्येक एकड़ के लिए 100 रु. अग्रिम राशि दी जाने लगी l साहूकार भी लम्बे समय तक ऋण देने के लिए एकदम तैयार थे l

5.        जब अमेरिका में संकट की स्थिति बनी रही तो बंबई दक्कन में कपास का उत्पादन बढ़ता गया l 1860 से 1864 के दौरान कपास उगाने वाले आकड़ों की संख्या दोगुनी हो गई l 1862 तक स्थिति यह आई की ब्रिटेन में जितना भी कपास का आयात होता था उसका 90 प्रतिशत भाग अकेले भारत से जाता था l 

9. किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में क्या समस्याएँ आती हैं ?

उत्तर :  किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में निम्न समस्याएँ आती हैं l

1.        किसानों सेसंबंधी इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के दौरान आने वाले समस्याएँ: किसानों से संबंधित इतिहास लिखने के कई स्रोत हैं जिनमें सरकार के द्वारा रखे गए राजस्व अभिलेख सरकार के जरिए नियुक्त सर्वेक्षणकर्ताओं के जरीये दी गई रिपोर्टों व पत्रिकाएँ जिन्हें हम सरकार की पक्षधर कह सकते हैं, सरकार के जरिये नियुक्त जाँच आयोग की रिपोर्ट अथवा सरकार के हित में पूर्वाग्रह या सोच रखने वाले अंग्रेजी यात्रियों के विवरण और रिपोर्ट आदि शामिल हैं l ऐसे एतिहासिक स्रोतों पर दृष्टिपात करते समय हमें यह याद रखना होगा की ये सरकारी स्रोत हैं और वे घटनाओं के बारे में सरकारी सरोकार और अर्थ प्रतिबिंबित करते हैं l

2.        उदाहरणार्थ: दक्कन आयोग से विशेष रूप से यह जाँच करने के लिए कहा गया था की क्या सरकारी राजस्व की माँग का स्तर विद्रोह का कारण था l संपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद आयोग ने यह सूचित किया था की माँग किसानों के गुस्से की वजह नहीं थी l

रिपोर्ट का मुख्य सार एवं दोष : इनमें सारा दोष ऋणदाताओं या साहूकारों का ही था l इससे यह बात सपष्ट होती है की औपनिवेशिक सरकार यह मानने को कभी भीतैयार नहीं थी की जनता में असंतोष या रोष कभी सरकारी कार्यवाही के कारण भी उत्पन्न हुआ था l



Exit mobile version